2Samuel (1/24)  

1. जब दाऊद अमालीक़ियों को शिकस्त देने से वापस आया तो साऊल बादशाह मर चुका था। वह अभी दो ही दिन सिक़्लाज में ठहरा था
2. कि एक आदमी साऊल की लश्करगाह से पहुँचा। दुख के इज़्हार के लिए उस ने अपने कपड़ों को फाड़ कर अपने सर पर ख़ाक डाल रखी थी। दाऊद के पास आ कर वह बड़े एहतिराम के साथ उस के सामने झुक गया।
3. दाऊद ने पूछा, “आप कहाँ से आए हैं?” आदमी ने जवाब दिया, “मैं बाल बाल बच कर इस्राईली लश्करगाह से आया हूँ।”
4. दाऊद ने पूछा, “बताएँ, हालात कैसे हैं?” उस ने बताया, “हमारे बहुत से आदमी मैदान-ए-जंग में काम आए। बाक़ी भाग गए हैं। साऊल और उस का बेटा यूनतन भी हलाक हो गए हैं।”
5. दाऊद ने सवाल किया, “आप को कैसे मालूम हुआ कि साऊल और यूनतन मर गए हैं?”
6. जवान ने जवाब दिया, “इत्तिफ़ाक़ से मैं जिल्बूअ के पहाड़ी सिलसिले पर से गुज़र रहा था। वहाँ मुझे साऊल नज़र आया। वह नेज़े का सहारा ले कर खड़ा था। दुश्मन के रथ और घुड़सवार तक़्रीबन उसे पकड़ने ही वाले थे
7. कि उस ने मुड़ कर मुझे देखा और अपने पास बुलाया। मैं ने कहा, ‘जी, मैं हाज़िर हूँ।’
8. उस ने पूछा, ‘तुम कौन हो?’ मैं ने जवाब दिया, ‘मैं अमालीक़ी हूँ।’
9. फिर उस ने मुझे हुक्म दिया, ‘आओ और मुझे मार डालो! क्यूँकि गो मैं ज़िन्दा हूँ मेरी जान निकल रही है।’
10. चुनाँचे मैं ने उसे मार दिया, क्यूँकि मैं जानता था कि बचने का कोई इम्कान नहीं रहा था। फिर मैं उस का ताज और बाज़ूबन्द ले कर अपने मालिक के पास यहाँ ले आया हूँ।”
11. यह सब कुछ सुन कर दाऊद और उस के तमाम लोगों ने ग़म के मारे अपने कपड़े फाड़ लिए।
12. शाम तक उन्हों ने रो रो कर और रोज़ा रख कर साऊल, उस के बेटे यूनतन और रब्ब के उन बाक़ी लोगों का मातम किया जो मारे गए थे।
13. दाऊद ने उस जवान से जो उन की मौत की ख़बर लाया था पूछा, “आप कहाँ के हैं?” उस ने जवाब दिया, “मैं अमालीक़ी हूँ जो अजनबी के तौर पर आप के मुल्क में रहता हूँ।”
14. दाऊद बोला, “आप ने रब्ब के मसह किए हुए बादशाह को क़त्ल करने की जुरअत कैसे की?”
15. उस ने अपने किसी जवान को बुला कर हुक्म दिया, “इसे मार डालो!” उसी वक़्त जवान ने अमालीक़ी को मार डाला।
16. दाऊद ने कहा, “आप ने अपने आप को ख़ुद मुज्रिम ठहराया है, क्यूँकि आप ने अपने मुँह से इक़्रार किया है कि मैं ने रब्ब के मसह किए हुए बादशाह को मार दिया है।”
17. फिर दाऊद ने साऊल और यूनतन पर मातम का गीत गाया।
18. उस ने हिदायत दी कि यहूदाह के तमाम बाशिन्दे यह गीत याद करें। गीत का नाम ‘कमान का गीत’ है और ‘याशर की किताब’ में दर्ज है। गीत यह है,
19. “हाय, ऐ इस्राईल! तेरी शान-ओ-शौकत तेरी बुलन्दियों पर मारी गई है। हाय, तेरे सूर्मे किस तरह गिर गए हैं!
20. जात में जा कर यह ख़बर मत सुनाना। अस्क़लून की गलियों में इस का एलान मत करना, वर्ना फ़िलिस्तियों की बेटियाँ ख़ुशी मनाएँगी, नामख़्तूनों की बेटियाँ फ़त्ह के नारे लगाएँगी।
21. ऐ जिल्बूअ के पहाड़ो! ऐ पहाड़ी ढलानो! आइन्दा तुम पर न ओस पड़े, न बारिश बरसे। क्यूँकि सूर्माओं की ढाल नापाक हो गई है। अब से साऊल की ढाल तेल मल कर इस्तेमाल नहीं की जाएगी।
22. यूनतन की कमान ज़बरदस्त थी, साऊल की तल्वार कभी ख़ाली हाथ न लौटी। उन के हथियारों से हमेशा दुश्मन का ख़ून टपकता रहा, वह सूर्माओं की चर्बी से चमकते रहे।
23. साऊल और यूनतन कितने पियारे और मेहरबान थे! जीते जी वह एक दूसरे के क़रीब रहे, और अब मौत भी उन्हें अलग न कर सकी। वह उक़ाब से तेज़ और शेरबबर से ताक़तवर थे।
24. ऐ इस्राईल की ख़वातीन! साऊल के लिए आँसू बहाएँ। क्यूँकि उसी ने आप को क़िर्मिज़ी रंग के शानदार कपड़ों से मुलब्बस किया, उसी ने आप को सोने के ज़ेवरात से आरास्ता किया।
25. हाय, हमारे सूर्मे लड़ते लड़ते शहीद हो गए हैं। हाय ऐ इस्राईल, यूनतन मुर्दा हालत में तेरी बुलन्दियों पर पड़ा है।
26. ऐ यूनतन मेरे भाई, मैं तेरे बारे में कितना दुखी हूँ। तू मुझे कितना अज़ीज़ था। तेरी मुझ से मुहब्बत अनोखी थी, वह औरतों की मुहब्बत से भी अनोखी थी।
27. हाय, हाय! हमारे सूर्मे किस तरह गिर कर शहीद हो गए हैं। जंग के हथियार तबाह हो गए हैं।”

      2Samuel (1/24)