2Kings (22/25)  

1. यूसियाह 8 साल की उम्र में बादशाह बना, और यरूशलम में रह कर उस की हुकूमत का दौरानिया 31 साल था। उस की माँ यदीदा बिन्त अदायाह बुस्क़त की रहने वाली थी।
2. यूसियाह वह कुछ करता रहा जो रब्ब को पसन्द था। वह हर बात में अपने बाप दाऊद के अच्छे नमूने पर चलता रहा और उस से न दाईं, न बाईं तरफ़ हटा।
3. अपनी हुकूमत के 18वें साल में यूसियाह बादशाह ने अपने मीरमुन्शी साफ़न बिन असलियाह बिन मसुल्लाम को रब्ब के घर के पास भेज कर कहा,
4. “इमाम-ए-आज़म ख़िलक़ियाह के पास जा कर उसे बता देना कि उन तमाम पैसों को गिन लें जो दरबानों ने लोगों से जमा किए हैं।
5. फिर पैसे उन ठेकेदारों को दे दें जो रब्ब के घर की मरम्मत करवा रहे हैं ताकि वह कारीगरों, तामीर करने वालों और राजों की उजरत अदा कर सकें। इन पैसों से वह दराड़ों को ठीक करने के लिए दरकार लकड़ी और तराशे हुए पत्थर भी खरीदें।
6. फिर पैसे उन ठेकेदारों को दे दें जो रब्ब के घर की मरम्मत करवा रहे हैं ताकि वह कारीगरों, तामीर करने वालों और राजों की उजरत अदा कर सकें। इन पैसों से वह दराड़ों को ठीक करने के लिए दरकार लकड़ी और तराशे हुए पत्थर भी खरीदें।
7. ठेकेदारों को अख़्राजात का हिसाब-किताब देने की ज़रूरत नहीं है, क्यूँकि वह क़ाबिल-ए-एतिमाद हैं।”
8. जब मीरमुन्शी साफ़न ख़िलक़ियाह के पास पहुँचा तो इमाम-ए-आज़म ने उसे एक किताब दिखा कर कहा, “मुझे रब्ब के घर में शरीअत की किताब मिली है।” उस ने उसे साफ़न को दे दिया जिस ने उसे पढ़ लिया।
9. तब साफ़न बादशाह के पास गया और उसे इत्तिला दी, “हम ने रब्ब के घर में जमाशुदा पैसे मरम्मत पर मुक़र्रर ठेकेदारों और बाक़ी काम करने वालों को दे दिए हैं।”
10. फिर साफ़न ने बादशाह को बताया, “ख़िलक़ियाह ने मुझे एक किताब दी है।” किताब को खोल कर वह बादशाह की मौजूदगी में उस की तिलावत करने लगा।
11. किताब की बातें सुन कर बादशाह ने रंजीदा हो कर अपने कपड़े फाड़ लिए।
12. उस ने ख़िलक़ियाह इमाम, अख़ीक़ाम बिन साफ़न, अक्बोर बिन मीकायाह, मीरमुन्शी साफ़न और अपने ख़ास ख़ादिम असायाह को बुला कर उन्हें हुक्म दिया,
13. “जा कर मेरी और क़ौम बल्कि तमाम यहूदाह की ख़ातिर रब्ब से इस किताब में दर्ज बातों के बारे में दरयाफ़्त करें। रब्ब का जो ग़ज़ब हम पर नाज़िल होने वाला है वह निहायत सख़्त है, क्यूँकि हमारे बापदादा न किताब के फ़रमानों के ताबे रहे, न उन हिदायात के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुज़ारी है जो उस में हमारे लिए दर्ज की गई हैं।”
14. चुनाँचे ख़िलक़ियाह इमाम, अख़ीक़ाम, अक्बोर, साफ़न और असायाह ख़ुल्दा नबिया को मिलने गए। ख़ुल्दा का शौहर सल्लूम बिन तिक़्वा बिन ख़र्ख़स रब्ब के घर के कपड़े सँभालता था। वह यरूशलम के नए इलाक़े में रहते थे।
15. ख़ुल्दा ने उन्हें जवाब दिया, “रब्ब इस्राईल का ख़ुदा फ़रमाता है कि जिस आदमी ने तुम्हें भेजा है उसे बता देना, ‘रब्ब फ़रमाता है कि मैं इस शहर और उस के बाशिन्दों पर आफ़त नाज़िल करूँगा। वह तमाम बातें पूरी हो जाएँगी जो यहूदाह के बादशाह ने किताब में पढ़ी हैं।
16. ख़ुल्दा ने उन्हें जवाब दिया, “रब्ब इस्राईल का ख़ुदा फ़रमाता है कि जिस आदमी ने तुम्हें भेजा है उसे बता देना, ‘रब्ब फ़रमाता है कि मैं इस शहर और उस के बाशिन्दों पर आफ़त नाज़िल करूँगा। वह तमाम बातें पूरी हो जाएँगी जो यहूदाह के बादशाह ने किताब में पढ़ी हैं।
17. क्यूँकि मेरी क़ौम ने मुझे तर्क करके दीगर माबूदों को क़ुर्बानियाँ पेश की हैं और अपने हाथों से बुत बना कर मुझे तैश दिलाया है। मेरा ग़ज़ब इस मक़ाम पर नाज़िल हो जाएगा और कभी ख़त्म नहीं होगा।’
18. लेकिन यहूदाह के बादशाह के पास जाएँ जिस ने आप को रब्ब से दरयाफ़्त करने के लिए भेजा है और उसे बता दें कि रब्ब इस्राईल का ख़ुदा फ़रमाता है, ‘मेरी बातें सुन कर
19. तेरा दिल नर्म हो गया है। जब तुझे पता चला कि मैं ने इस मक़ाम और इस के बाशिन्दों के बारे में फ़रमाया है कि वह लानती और तबाह हो जाएँगे तो तू ने अपने आप को रब्ब के सामने पस्त कर दिया। तू ने रंजीदा हो कर अपने कपड़े फाड़ लिए और मेरे हुज़ूर फूट फूट कर रोया। रब्ब फ़रमाता है कि यह देख कर मैं ने तेरी सुनी है।
20. जब तू मेरे कहने पर मर कर अपने बापदादा से जा मिलेगा तो सलामती से दफ़न होगा। जो आफ़त मैं शहर पर नाज़िल करूँगा वह तू ख़ुद नहीं देखेगा’।” अफ़्सर बादशाह के पास वापस गए और उसे ख़ुल्दा का जवाब सुना दिया।

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