2Kings (18/25)  

1. इस्राईल के बादशाह होसेअ बिन ऐला की हुकूमत के तीसरे साल में हिज़क़ियाह बिन आख़ज़ यहूदाह का बादशाह बना।
2. उस वक़्त उस की उम्र 25 साल थी, और वह यरूशलम में रह कर 29 साल हुकूमत करता रहा। उस की माँ अबी बिन्त ज़करियाह थी।
3. अपने बाप दाऊद की तरह उस ने ऐसा काम किया जो रब्ब को पसन्द था।
4. उस ने ऊँची जगहों के मन्दिरों को गिरा दिया, पत्थर के उन सतूनों को टुकड़े टुकड़े कर दिया जिन की पूजा की जाती थी और यसीरत देवी के खम्बों को काट डाला। पीतल का जो साँप मूसा ने बनाया था उसे भी बादशाह ने टुकड़े टुकड़े कर दिया, क्यूँकि इस्राईली उन अय्याम तक उस के सामने बख़ूर जलाने आते थे। (साँप नख़ुश्तान कहलाता था।)
5. हिज़क़ियाह रब्ब इस्राईल के ख़ुदा पर भरोसा रखता था। यहूदाह में न इस से पहले और न इस के बाद ऐसा बादशाह हुआ।
6. वह रब्ब के साथ लिपटा रहा और उस की पैरवी करने से कभी भी बाज़ न आया। वह उन अह्काम पर अमल करता रहा जो रब्ब ने मूसा को दिए थे।
7. इस लिए रब्ब उस के साथ रहा। जब भी वह किसी मक़्सद के लिए निकला तो उसे काम्याबी हासिल हुई। चुनाँचे वह असूर की हुकूमत से आज़ाद हो गया और उस के ताबे न रहा।
8. फ़िलिस्तियों को उस ने सब से छोटी चौकी से ले कर बड़े से बड़े क़िलआबन्द शहर तक शिकस्त दी और उन्हें मारते मारते ग़ज़्ज़ा शहर और उस के इलाक़े तक पहुँच गया।
9. हिज़क़ियाह की हुकूमत के चौथे साल में और इस्राईल के बादशाह होसेअ की हुकूमत के सातवें साल में असूर के बादशाह सल्मनसर ने इस्राईल पर हम्ला किया। सामरिया शहर का मुहासरा करके
10. वह तीन साल के बाद उस पर क़ब्ज़ा करने में काम्याब हुआ। यह हिज़क़ियाह की हुकूमत के छटे साल और इस्राईल के बादशाह होसेअ की हुकूमत के नव्वें साल में हुआ।
11. असूर के बादशाह ने इस्राईलियों को जिलावतन करके कुछ ख़लह के इलाक़े में, कुछ जौज़ान के दरया-ए-ख़ाबूर के किनारे पर और कुछ मादियों के शहरों में बसाए।
12. यह सब कुछ इस लिए हुआ कि वह रब्ब अपने ख़ुदा के ताबे न रहे बल्कि उस के उन के साथ बंधे हुए अह्द को तोड़ कर उन तमाम अह्काम के फ़रमाँबरदार न रहे जो रब्ब के ख़ादिम मूसा ने उन्हें दिए थे। न वह उन की सुनते और न उन पर अमल करते थे।
13. हिज़क़ियाह बादशाह की हुकूमत के 14वें साल में असूर के बादशाह सन्हेरिब ने यहूदाह के तमाम क़िलआबन्द शहरों पर धावा बोल कर उन पर क़ब्ज़ा कर लिया।
14. जब असूर का बादशाह लकीस के आस-पास पहुँचा तो यहूदाह के बादशाह हिज़क़ियाह ने उसे इत्तिला दी, “मुझ से ग़लती हुई है। मुझे छोड़ दें तो जो कुछ भी आप मुझ से तलब करेंगे मैं आप को अदा करूँगा।” तब सन्हेरिब ने हिज़क़ियाह से चाँदी के तक़्रीबन 10,000 किलोग्राम और सोने के तक़्रीबन 1,000 किलोग्राम माँग लिया।
15. हिज़क़ियाह ने उसे वह तमाम चाँदी दे दी जो रब्ब के घर और शाही महल के ख़ज़ानों में पड़ी थी।
16. सोने का तक़ाज़ा पूरा करने के लिए उस ने रब्ब के घर के दरवाज़ों और चौखटों पर लगा सोना उतरवा कर उसे असूर के बादशाह को भेज दिया। यह सोना उस ने ख़ुद दरवाज़ों और चौखटों पर चढ़वाया था।
17. फिर भी असूर का बादशाह मुत्मइन न हुआ। उस ने अपने सब से आला अफ़्सरों को बड़ी फ़ौज के साथ लकीस से यरूशलम को भेजा (उन की अपनी ज़बान में अफ़्सरों के उह्दों के नाम तर्तान, रब-सारिस और रबशाक़ी थे)। यरूशलम पहुँच कर वह उस नाले के पास रुक गए जो पानी को ऊपर वाले तालाब तक पहुँचाता है (यह तालाब उस रास्ते पर है जो धोबियों के घाट तक ले जाता है)।
18. इन तीन असूरी अफ़्सरों ने इत्तिला दी कि बादशाह हम से मिलने आए, लेकिन हिज़क़ियाह ने महल के इंचार्ज इलियाक़ीम बिन ख़िलक़ियाह, मीरमुन्शी शब्नाह और मुशीर-ए-ख़ास यूआख़ बिन आसफ़ को उन के पास भेजा।
19. रबशाक़ी ने उन के हाथ हिज़क़ियाह को पैग़ाम भेजा, “असूर के अज़ीम बादशाह फ़रमाते हैं, तुम्हारा भरोसा किस चीज़ पर है?
20. तुम समझते हो कि ख़ाली बातें करना फ़ौजी हिकमत-ए-अमली और ताक़त के बराबर है। यह कैसी बात है? तुम किस पर एतिमाद कर रहे हो कि मुझ से सरकश हो गए हो?
21. क्या तुम मिस्र पर भरोसा करते हो? वह तो टूटा हुआ सरकंडा ही है। जो भी उस पर टेक लगाए उस का हाथ वह चीर कर ज़ख़्मी कर देगा। यही कुछ उन सब के साथ हो जाएगा जो मिस्र के बादशाह फ़िरऔन पर भरोसा करें!
22. शायद तुम कहो, ‘हम रब्ब अपने ख़ुदा पर तवक्कुल करते हैं।’ लेकिन यह किस तरह हो सकता है? हिज़क़ियाह ने तो उस की बेहुरमती की है। क्यूँकि उस ने ऊँची जगहों के मन्दिरों और क़ुर्बानगाहों को ढा कर यहूदाह और यरूशलम से कहा है कि सिर्फ़ यरूशलम की क़ुर्बानगाह के सामने परस्तिश करें।
23. आओ, मेरे आक़ा असूर के बादशाह से सौदा करो। मैं तुम्हें 2,000 घोड़े दूँगा बशर्तीकि तुम उन के लिए सवार मुहय्या कर सको। लेकिन अफ़्सोस, तुम्हारे पास इतने घुड़सवार हैं ही नहीं!
24. तुम मेरे आक़ा असूर के बादशाह के सब से छोटे अफ़्सर का भी मुक़ाबला नहीं कर सकते। लिहाज़ा मिस्र के रथों पर भरोसा रखने का क्या फ़ाइदा?
25. शायद तुम समझते हो कि मैं रब्ब की मर्ज़ी के बग़ैर ही इस जगह पर हम्ला करने आया हूँ ताकि सब कुछ बर्बाद करूँ। लेकिन ऐसा हरगिज़ नहीं है! रब्ब ने ख़ुद मुझे कहा कि इस मुल्क पर धावा बोल कर इसे तबाह कर दे।”
26. यह सुन कर इलियाक़ीम बिन ख़िलक़ियाह, शब्नाह और यूआख़ ने रबशाक़ी की तक़रीर में दख़ल दे कर कहा, “बराह-ए-करम अरामी ज़बान में अपने ख़ादिमों के साथ गुफ़्तगु कीजिए, क्यूँकि हम यह अच्छी तरह बोल लेते हैं। इब्रानी ज़बान इस्तेमाल न करें, वर्ना शहर की फ़सील पर खड़े लोग आप की बातें सुन लेंगे।”
27. लेकिन रबशाक़ी ने जवाब दिया, “क्या तुम समझते हो कि मेरे मालिक ने यह पैग़ाम सिर्फ़ तुम्हें और तुम्हारे मालिक को भेजा है? हरगिज़ नहीं! वह चाहते हैं कि तमाम लोग यह बातें सुन लें। क्यूँकि वह भी तुम्हारी तरह अपना फ़ुज़्ला खाने और अपना पेशाब पीने पर मज्बूर हो जाएँगे।”
28. फिर वह फ़सील की तरफ़ मुड़ कर बुलन्द आवाज़ से इब्रानी ज़बान में अवाम से मुख़ातिब हुआ, “सुनो, शहनशाह, असूर के बादशाह के फ़रमान पर ध्यान दो!
29. बादशाह फ़रमाते हैं कि हिज़क़ियाह तुम्हें धोका न दे। वह तुम्हें मेरे हाथ से बचा नहीं सकता।
30. बेशक वह तुम्हें तसल्ली दिलाने की कोशिश करके कहता है, ‘रब्ब हमें ज़रूर छुटकारा देगा, यह शहर कभी भी असूरी बादशाह के क़ब्ज़े में नहीं आएगा।’ लेकिन इस क़िस्म की बातों से तसल्ली पा कर रब्ब पर भरोसा मत करना।
31. हिज़क़ियाह की बातें न मानो बल्कि असूर के बादशाह की। क्यूँकि वह फ़रमाते हैं, मेरे साथ सुलह करो और शहर से निकल कर मेरे पास आ जाओ। फिर तुम में से हर एक अंगूर की अपनी बेल और अन्जीर के अपने दरख़्त का फल खाएगा और अपने हौज़ का पानी पिएगा।
32. फिर कुछ देर के बाद मैं तुमहें एक ऐसे मुल्क में ले जाऊँगा जो तुम्हारे अपने मुल्क की मानिन्द होगा। उस में भी अनाज, नई मै, रोटी और अंगूर के बाग़, ज़ैतून के दरख़्त और शहद है। ग़रज़, मौत की राह इख़तियार न करना बल्कि ज़िन्दगी की राह। हिज़क़ियाह की मत सुनना। जब वह कहता है, ‘रब्ब हमें बचाएगा’ तो वह तुम्हें धोका दे रहा है।
33. क्या दीगर अक़्वाम के देवता अपने मुल्कों को शाह-ए-असूर से बचाने के क़ाबिल रहे हैं?
34. हमात और अर्फ़ाद के देवता कहाँ रह गए हैं? सिफ़र्वाइम, हेना और इव्वा के देवता क्या कर सके? और क्या किसी देवता ने सामरिया को मेरी गिरिफ़्त से बचाया?
35. नहीं, कोई भी देवता अपना मुल्क मुझ से बचा न सका। तो फिर रब्ब यरूशलम को किस तरह मुझ से बचाएगा?”
36. फ़सील पर खड़े लोग ख़ामोश रहे। उन्हों ने कोई जवाब न दिया, क्यूँकि बादशाह ने हुक्म दिया था कि जवाब में एक लफ़्ज़ भी न कहें।
37. फिर महल का इंचार्ज इलियाक़ीम बिन ख़िलक़ियाह, मीरमुन्शी शब्नाह और मुशीर-ए-ख़ास यूआख़ बिन आसफ़ रंजिश के मारे अपने लिबास फाड़ कर हिज़क़ियाह के पास वापस गए। दरबार में पहुँच कर उन्हों ने बादशाह को सब कुछ कह सुनाया जो रबशाक़ी ने उन्हें कहा था।

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