2Corinthians (2/13)  

1. चुनाँचे मैं ने फ़ैसला किया कि मैं दुबारा आप के पास नहीं आऊँगा, वर्ना आप को बहुत ग़म खाना पड़ेगा।
2. क्यूँकि अगर मैं आप को दुख पहुँचाऊँ तो कौन मुझे ख़ुश करेगा? यह वह शख़्स नहीं करेगा जिसे मैं ने दुख पहुँचाया है।
3. यही वजह है कि मैं ने आप को यह लिख दिया। मैं नहीं चाहता था कि आप के पास आ कर उन ही लोगों से ग़म खाऊँ जिन्हें मुझे ख़ुश करना चाहिए। क्यूँकि मुझे आप सब के बारे में यक़ीन है कि मेरी ख़ुशी आप सब की ख़ुशी है।
4. मैं ने आप को निहायत रंजीदा और परेशान हालत में आँसू बहा बहा कर लिख दिया। मक़्सद यह नहीं था कि आप ग़मगीन हो जाएँ बल्कि मैं चाहता था कि आप जान लें कि मैं आप से कितनी गहरी मुहब्बत रखता हूँ।
5. अगर किसी ने दुख पहुँचाया है तो मुझे नहीं बल्कि किसी हद्द तक आप सब को (मैं ज़ियादा सख़्ती से बात नहीं करना चाहता)।
6. लेकिन मज़्कूरा शख़्स के लिए यह काफ़ी है कि उसे जमाअत के अक्सर लोगों ने सज़ा दी है।
7. अब ज़रूरी है कि आप उसे मुआफ़ करके तसल्ली दें, वर्ना वह ग़म खा खा कर तबाह हो जाएगा।
8. चुनाँचे मैं इस पर ज़ोर देना चाहता हूँ कि आप उसे अपनी मुहब्बत का इह्सास दिलाएँ।
9. मैं ने यह मालूम करने के लिए आप को लिखा कि क्या आप इमतिहान में पूरे उतरेंगे और हर बात में ताबे रहेंगे।
10. जिसे आप कुछ मुआफ़ करते हैं उसे मैं भी मुआफ़ करता हूँ। और जो कुछ मैं ने मुआफ़ किया, अगर मुझे कुछ मुआफ़ करने की ज़रूरत थी, वह मैं ने आप की ख़ातिर मसीह के हुज़ूर मुआफ़ किया है
11. ताकि इब्लीस हम से फ़ाइदा न उठाए। क्यूँकि हम उस की चालों से ख़ूब वाक़िफ़ हैं।
12. जब मैं मसीह की ख़ुशख़बरी सुनाने के लिए त्रोआस गया तो ख़ुदावन्द ने मेरे लिए आगे ख़िदमत करने का एक दरवाज़ा खोल दिया।
13. लेकिन जब मुझे अपना भाई तितुस वहाँ न मिला तो मैं बेचैन हो गया और उन्हें ख़ैरबाद कह कर सूबा मकिदुनिया चला गया।
14. लेकिन ख़ुदा का शुक्र है! वही हमारे आगे आगे चलता है और हम मसीह के क़ैदी बन कर उस की फ़त्ह मनाते हुए उस के पीछे पीछे चलते हैं। यूँ अल्लाह हमारे वसीले से हर जगह मसीह के बारे में इल्म ख़ुश्बू की तरह फैलाता है।
15. क्यूँकि हम मसीह की ख़ुश्बू हैं जो अल्लाह तक पहुँचती है और साथ साथ लोगों में भी फैलती है, नजात पाने वालों में भी और हलाक होने वालों में भी।
16. बाज़ लोगों के लिए हम मौत की मुहलक बू हैं जबकि बाज़ के लिए हम ज़िन्दगीबख़्श ख़ुश्बू हैं। तो कौन यह ज़िम्मादारी निभाने के लाइक़ है?
17. क्यूँकि हम अक्सर लोगों की तरह अल्लाह के कलाम की तिजारत नहीं करते, बल्कि यह जान कर कि हम अल्लाह के हुज़ूर में हैं और उस के भेजे हुए हैं हम ख़ुलूसदिली से लोगों से बात करते हैं।

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