2Corinthians (11/13)  

1. ख़ुदा करे कि जब मैं अपनी हमाक़त का कुछ इज़्हार करता हूँ तो आप मुझे बर्दाश्त करें। हाँ, ज़रूर मुझे बर्दाश्त करें,
2. क्यूँकि मैं आप के लिए अल्लाह की सी ग़ैरत रखता हूँ। मैं ने आप का रिश्ता एक ही मर्द के साथ बाँधा, और मैं आप को पाकदामन कुंवारी की हैसियत से उस मर्द मसीह के हुज़ूर पेश करना चाहता था।
3. लेकिन अफ़्सोस, मुझे डर है कि आप हव्वा की तरह गुनाह में गिर जाएँगे, कि जिस तरह साँप ने अपनी चालाकी से हव्वा को धोका दिया उसी तरह आप की सोच भी बिगड़ जाएगी और वह ख़ुलूसदिली और पाक लगन ख़त्म हो जाएगी जो आप मसीह के लिए मह्सूस करते हैं।
4. क्यूँकि आप ख़ुशी से हर एक को बर्दाश्त करते हैं जो आप के पास आ कर एक फ़र्क़ क़िस्म का ईसा पेश करता है, एक ऐसा ईसा जो हम ने आप को पेश नहीं किया था। और आप एक ऐसी रूह और ऐसी “ख़ुशख़बरी” क़बूल करते हैं जो उस रूह और ख़ुशख़बरी से बिलकुल फ़र्क़ है जो आप को हम से मिली थी।
5. मेरा नहीं ख़याल कि मैं इन नाम-निहाद ‘ख़ास’ रसूलों की निस्बत कम हूँ।
6. हो सकता है कि मैं बोलने में माहिर नहीं हूँ, लेकिन यह मेरे इल्म के बारे में नहीं कहा जा सकता। यह हम ने आप को साफ़ साफ़ और हर लिहाज़ से दिखाया है।
7. मैं ने अल्लाह की ख़ुशख़बरी सुनाने के लिए आप से कोई भी मुआवज़ा न लिया। यूँ मैं ने अपने आप को नीचा कर दिया ताकि आप को सरफ़राज़ कर दिया जाए। क्या इस में मुझ से ग़लती हुई?
8. जब मैं आप की ख़िदमत कर रहा था तो मुझे ख़ुदा की दीगर जमाअतों से पैसे मिल रहे थे, यानी आप की मदद करने के लिए मैं उन्हें लूट रहा था।
9. और जब मैं आप के पास था और ज़रूरतमन्द था तो मैं किसी पर बोझ न बना, क्यूँकि जो भाई मकिदुनिया से आए उन्हों ने मेरी ज़रूरियात पूरी कीं। माज़ी में मैं आप पर बोझ न बना और आइन्दा भी नहीं बनूँगा।
10. मसीह की उस सच्चाई की क़सम जो मेरे अन्दर है, अख़या के पूरे सूबे में कोई मुझे इस पर फ़ख़र करने से नहीं रोकेगा।
11. मैं यह क्यूँ कह रहा हूँ? इस लिए कि मैं आप से मुहब्बत नहीं रखता? ख़ुदा ही जानता है कि मैं आप से मुहब्बत रखता हूँ।
12. और जो कुछ मैं अब कर रहा हूँ वही करता रहूँगा, ताकि मैं नाम-निहाद रसूलों को वह मौक़ा न दूँ जो वह ढूँड रहे हैं। क्यूँकि यही उन का मक़्सद है कि वह फ़ख़र करके यह कह सकें कि वह हम जैसे हैं।
13. ऐसे लोग तो झूटे रसूल हैं, धोकेबाज़ मज़्दूर जिन्हों ने मसीह के रसूलों का रूप धार लिया है।
14. और क्या अजब, क्यूँकि इब्लीस भी नूर के फ़रिश्ते का रूप धार कर घूमता फिरता है।
15. तो फिर यह बड़ी बात नहीं कि उस के चेले रास्तबाज़ी के ख़ादिम का रूप धार कर घूमते फिरते हैं। उन का अन्जाम उन के आमाल के मुताबिक़ ही होगा।
16. मैं दुबारा कहता हूँ कि कोई मुझे अहमक़ न समझे। लेकिन अगर आप यह सोचें भी तो कम अज़ कम मुझे अहमक़ की हैसियत से क़बूल करें ताकि मैं भी थोड़ा बहुत अपने आप पर फ़ख़र करूँ।
17. असल में जो कुछ मैं अब बयान कर रहा हूँ वह ख़ुदावन्द को पसन्द नहीं है, बल्कि मैं अहमक़ की तरह बात कर रहा हूँ।
18. लेकिन चूँकि इतने लोग जिस्मानी तौर पर फ़ख़र कर रहे हैं इस लिए मैं भी फ़ख़र करूँगा।
19. बेशक आप ख़ुद इतने दानिशमन्द हैं कि आप अहमक़ों को ख़ुशी से बर्दाश्त करते हैं।
20. हाँ, बल्कि आप यह भी बर्दाश्त करते हैं जब लोग आप को ग़ुलाम बनाते, आप को लूटते, आप से ग़लत फ़ाइदा उठाते, नख़रे करते और आप को थप्पड़ मारते हैं।
21. यह कह कर मुझे शर्म आती है कि हम इतने कमज़ोर थे कि हम ऐसा न कर सके। लेकिन अगर कोई किसी बात पर फ़ख़र करने की जुरअत करे (मैं अहमक़ की सी बात कर रहा हूँ) तो मैं भी उतनी ही जुरअत करूँगा।
22. क्या वह इब्रानी हैं? मैं भी हूँ। क्या वह इस्राईली हैं? मैं भी हूँ। क्या वह इब्राहीम की औलाद हैं? मैं भी हूँ।
23. क्या वह मसीह के ख़ादिम हैं? (अब तो मैं गोया बेख़ुद हो गया हूँ कि इस तरह की बातें कर रहा हूँ!) मैं उन से ज़ियादा मसीह की ख़िदमत करता हूँ। मैं ने उन से कहीं ज़ियादा मेहनत-मशक़्क़त की, ज़ियादा दफ़ा जेल में रहा, मेरे ज़ियादा सख़्ती से कोड़े लगाए गए और मैं बार बार मरने के खतरों में रहा हूँ।
24. मुझे यहूदियों से पाँच दफ़ा 39 कोड़ों की सज़ा मिली है।
25. तीन दफ़ा रोमियों ने मुझे लाठी से मारा। एक बार मुझे संगसार किया गया। जब मैं समुन्दर में सफ़र कर रहा था तो तीन मर्तबा मेरा जहाज़ तबाह हुआ। हाँ, एक दफ़ा मुझे जहाज़ के तबाह होने पर एक पूरी रात और दिन समुन्दर में गुज़ारना पड़ा।
26. मेरे बेशुमार सफ़रों के दौरान मुझे कई तरह के खतरों का सामना करना पड़ा, दरयाओं और डाकुओं का ख़त्रा, अपने हमवतनों और ग़ैरयहूदियों के हम्लों का ख़त्रा। जहाँ भी मैं गया हूँ वहाँ यह ख़त्रे मौजूद रहे, ख़्वाह मैं शहर में था, ख़्वाह ग़ैरआबाद इलाक़े में या समुन्दर में। झूटे भाइयों की तरफ़ से भी ख़त्रे रहे हैं।
27. मैं ने जाँफ़िशानी से सख़्त मेहनत-मशक़्क़त की है और कई रात जागता रहा हूँ, मैं भूका और पियासा रहा हूँ, मैं ने बहुत रोज़े रखे हैं। मुझे सर्दी और नंगेपन का तजरिबा हुआ है।
28. और यह उन फ़िक़्रों के इलावा है जो मैं ख़ुदा की तमाम जमाअतों के लिए मह्सूस करता हूँ और जो मुझे दबाती रहती हैं।
29. जब कोई कमज़ोर है तो मैं अपने आप को भी कमज़ोर मह्सूस करता हूँ। जब किसी को ग़लत राह पर लाया जाता है तो मैं उस के लिए शदीद रंजिश मह्सूस करता हूँ।
30. अगर मुझे फ़ख़र करना पड़े तो मैं उन चीज़ों पर फ़ख़र करूँगा जो मेरी कमज़ोर हालत ज़ाहिर करती हैं।
31. हमारा ख़ुदा और ख़ुदावन्द ईसा का बाप (उस की हम्द-ओ-सना अबद तक हो) जानता है कि मैं झूट नहीं बोल रहा।
32. जब मैं दमिश्क़ शहर में था तो बादशाह अरितास के गवर्नर ने शहर के तमाम दरवाज़ों पर अपने पहरेदार मुक़र्रर किए ताकि वह मुझे गिरिफ़्तार करें।
33. लेकिन शहर की फ़सील में एक दरीचा था, और मुझे एक टोकरे में रख कर वहाँ से उतारा गया। यूँ मैं उस के हाथों से बच निकला।

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