2Corinthians (1/13)  

1. यह ख़त पौलुस की तरफ़ से है, जो अल्लाह की मर्ज़ी से मसीह ईसा का रसूल है। साथ ही यह भाई तीमुथियुस की तरफ़ से भी है। मैं कुरिन्थुस में अल्लाह की जमाअत और सूबा अख़या में मौजूद तमाम मुक़द्दसीन को यह लिख रहा हूँ।
2. ख़ुदा हमारा बाप और ख़ुदावन्द ईसा मसीह आप को फ़ज़्ल और सलामती अता करें।
3. हमारे ख़ुदावन्द ईसा मसीह के ख़ुदा और बाप की तम्जीद हो, जो रहम का बाप और तमाम तरह की तसल्ली का ख़ुदा है।
4. जब भी हम मुसीबत में फंस जाते हैं तो वह हमें तसल्ली देता है ताकि हम औरों को भी तसल्ली दे सकें। फिर जब वह किसी मुसीबत से दोचार होते हैं तो हम भी उन को उसी तरह तसल्ली दे सकते हैं जिस तरह अल्लाह ने हमें तसल्ली दी है।
5. क्यूँकि जितनी कस्रत से मसीह की सी मुसीबतें हम पर आ जाती हैं उतनी कस्रत से अल्लाह मसीह के ज़रीए हमें तसल्ली देता है।
6. जब हम मुसीबतों से दोचार होते हैं तो यह बात आप की तसल्ली और नजात का बाइस बनती है। जब हमारी तसल्ली होती है तो यह आप की भी तसल्ली का बाइस बनती है। यूँ आप भी सब्र से वह कुछ बर्दाश्त करने के क़ाबिल बन जाते हैं जो हम बर्दाश्त कर रहे हैं।
7. चुनाँचे हमारी आप के बारे में उम्मीद पुख़्ता रहती है। क्यूँकि हम जानते हैं कि जिस तरह आप हमारी मुसीबतों में शरीक हैं उसी तरह आप उस तसल्ली में भी शरीक हैं जो हमें हासिल होती है।
8. भाइयो, हम आप को उस मुसीबत से आगाह करना चाहते हैं जिस में हम सूबा आसिया में फंस गए। हम पर दबाओ इतना शदीद था कि उसे बर्दाश्त करना नामुम्किन सा हो गया और हम जान से हाथ धो बैठे।
9. हम ने मह्सूस किया कि हमें सज़ा-ए-मौत दी गई है। लेकिन यह इस लिए हुआ ताकि हम अपने आप पर भरोसा न करें बल्कि अल्लाह पर जो मुर्दों को ज़िन्दा कर देता है।
10. उसी ने हमें ऐसी हैबतनाक मौत से बचाया और वह आइन्दा भी हमें बचाएगा। और हम ने उस पर उम्मीद रखी है कि वह हमें एक बार फिर बचाएगा।
11. आप भी अपनी दुआओं से हमारी मदद कर रहे हैं। यह कितनी ख़ूबसूरत बात है कि अल्लाह बहुतों की दुआओं को सुन कर हम पर मेहरबानी करेगा और नतीजे में बहुतेरे हमारे लिए शुक्र करेंगे।
12. यह बात हमारे लिए फ़ख़र का बाइस है कि हमारा ज़मीर साफ़ है। क्यूँकि हम ने अल्लाह के सामने सादादिली और ख़ुलूस से ज़िन्दगी गुज़ारी है, और हम ने अपनी इन्सानी हिक्मत पर इन्हिसार नहीं किया बल्कि अल्लाह के फ़ज़्ल पर। दुनिया में और ख़ासकर आप के साथ हमारा रवय्या ऐसा ही रहा है।
13. हम तो आप को ऐसी कोई बात नहीं लिखते जो आप पढ़ या समझ नहीं सकते। और मुझे उम्मीद है कि आप को पूरे तौर पर समझ आएगी,
14. अगरचि आप फ़िलहाल सब कुछ नहीं समझते। क्यूँकि जब आप को सब कुछ समझ आएगा तब आप ख़ुदावन्द ईसा के दिन हम पर उतना फ़ख़र कर सकेंगे जितना हम आप पर।
15. चूँकि मुझे इस का पूरा यक़ीन था इस लिए मैं पहले आप के पास आना चाहता था ताकि आप को दुगनी बर्कत मिल जाए।
16. ख़याल यह था कि मैं आप के हाँ से हो कर मकिदुनिया जाऊँ और वहाँ से आप के पास वापस आऊँ। फिर आप सूबा यहूदिया के सफ़र के लिए तय्यारियाँ करने में मेरी मदद करके मुझे आगे भेज सकते थे।
17. आप मुझे बताएँ कि क्या मैं ने यह मन्सूबा यूँ ही बनाया था? क्या मैं दुनियावी लोगों की तरह मन्सूबे बना लेता हूँ जो एक ही लम्हे में “जी हाँ” और “जी नहीं” कहते हैं?
18. लेकिन अल्लाह वफ़ादार है और वह मेरा गवाह है कि हम आप के साथ बात करते वक़्त “नहीं” को “हाँ” के साथ नहीं मिलाते।
19. क्यूँकि अल्लाह का फ़र्ज़न्द ईसा मसीह जिस की मुनादी मैं, सीलास और तीमुथियुस ने की वह भी ऐसा नहीं है। उस ने कभी भी “हाँ” को “नहीं” के साथ नहीं मिलाया बल्कि उस में अल्लाह की हत्मी “जी हाँ” वुजूद में आई।
20. क्यूँकि वही अल्लाह के तमाम वादों की “हाँ” है। इस लिए हम उसी के वसीले से “आमीन” (जी हाँ) कह कर अल्लाह को जलाल देते हैं।
21. और अल्लाह ख़ुद हमें और आप को मसीह में मज़्बूत कर देता है। उसी ने हमें मसह करके मख़्सूस किया है।
22. उसी ने हम पर अपनी मुहर लगा कर ज़ाहिर किया है कि हम उस की मिल्कियत हैं और उसी ने हमें रूह-उल-क़ुद्स दे कर अपने वादों का बैआना अदा किया है।
23. अगर मैं झूट बोलूँ तो अल्लाह मेरे ख़िलाफ़ गवाही दे। बात यह है कि मैं आप को बचाने के लिए कुरिन्थुस वापस न आया।
24. मतलब यह नहीं कि हम ईमान के मुआमले में आप पर हुकूमत करना चाहते हैं। नहीं, हम आप के साथ मिल कर ख़िदमत करते हैं ताकि आप ख़ुशी से भर जाएँ, क्यूँकि आप तो ईमान की मारिफ़त क़ाइम हैं।

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