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1. | यह देख कर सुलेमान ने दुआ की, “रब्ब ने फ़रमाया है कि मैं घने बादल के अंधेरे में रहूँगा। |
2. | मैं ने तेरे लिए अज़ीम सुकूनतगाह बनाई है, एक मक़ाम जो तेरी अबदी सुकूनत के लाइक़ है।” |
3. | फिर बादशाह ने मुड़ कर रब्ब के घर के सामने खड़ी इस्राईल की पूरी जमाअत की तरफ़ रुख़ किया। उस ने उन्हें बर्कत दे कर कहा, |
4. | “रब्ब इस्राईल के ख़ुदा की तारीफ़ हो जिस ने वह वादा पूरा किया है जो उस ने मेरे बाप दाऊद से किया था। क्यूँकि उस ने फ़रमाया, |
5. | ‘जिस दिन मैं अपनी क़ौम को मिस्र से निकाल लाया उस दिन से ले कर आज तक मैं ने न कभी फ़रमाया कि इस्राईली क़बीलों के किसी शहर में मेरे नाम की ताज़ीम में घर बनाया जाए, न किसी को मेरी क़ौम इस्राईल पर हुकूमत करने के लिए मुक़र्रर किया। |
6. | लेकिन अब मैं ने यरूशलम को अपने नाम की सुकूनतगाह और दाऊद को अपनी क़ौम इस्राईल का बादशाह बनाया है।’ |
7. | मेरे बाप दाऊद की बड़ी ख़्वाहिश थी कि रब्ब इस्राईल के ख़ुदा के नाम की ताज़ीम में घर बनाए। |
8. | लेकिन रब्ब ने एतिराज़ किया, ‘मैं ख़ुश हूँ कि तू मेरे नाम की ताज़ीम में घर तामीर करना चाहता है, |
9. | लेकिन तू नहीं बल्कि तेरा बेटा ही उसे बनाएगा।’ |
10. | और वाक़ई, रब्ब ने अपना वादा पूरा किया है। मैं रब्ब के वादे के ऐन मुताबिक़ अपने बाप दाऊद की जगह इस्राईल का बादशाह बन कर तख़्त पर बैठ गया हूँ। और अब मैं ने रब्ब इस्राईल के ख़ुदा के नाम की ताज़ीम में घर भी बनाया है। |
11. | उस में मैं ने वह सन्दूक़ रख दिया है जिस में शरीअत की तख़्तियाँ पड़ी हैं, उस अह्द की तख़्तियाँ जो रब्ब ने इस्राईलियों से बाँधा था।” |
12. | फिर सुलेमान ने इस्राईल की पूरी जमाअत के देखते देखते रब्ब की क़ुर्बानगाह के सामने खड़े हो कर अपने हाथ आस्मान की तरफ़ उठाए। |
13. | उस ने इस मौक़े के लिए पीतल का एक चबूतरा बनवा कर उसे बैरूनी सहन के बीच में रखवा दिया था। चबूतरा साढे 7 फ़ुट लम्ब, साढे 7 फ़ुट चौड़ा और साढे 4 फ़ुट ऊँचा था। अब सुलेमान उस पर चढ़ कर पूरी जमाअत के देखते देखते झुक गया। अपने हाथों को आस्मान की तरफ़ उठा कर |
14. | उस ने दुआ की, “ऐ रब्ब इस्राईल के ख़ुदा, तुझ जैसा कोई ख़ुदा नहीं है, न आस्मान और न ज़मीन पर। तू अपना वह अह्द क़ाइम रखता है जिसे तू ने अपनी क़ौम के साथ बाँधा है और अपनी मेहरबानी उन सब पर ज़ाहिर करता है जो पूरे दिल से तेरी राह पर चलते हैं। |
15. | तू ने अपने ख़ादिम दाऊद से किया हुआ वादा पूरा किया है। जो बात तू ने अपने मुँह से मेरे बाप से की वह तू ने अपने हाथ से आज ही पूरी की है। |
16. | ऐ रब्ब इस्राईल के ख़ुदा, अब अपनी दूसरी बात भी पूरी कर जो तू ने अपने ख़ादिम दाऊद से की थी। क्यूँकि तू ने मेरे बाप से वादा किया था, ‘अगर तेरी औलाद तेरी तरह अपने चाल-चलन पर ध्यान दे कर मेरी शरीअत के मुताबिक़ मेरे हुज़ूर चलती रहे तो इस्राईल पर उस की हुकूमत हमेशा तक क़ाइम रहेगी।’ |
17. | ऐ रब्ब इस्राईल के ख़ुदा, अब बराह-ए-करम अपना यह वादा पूरा कर जो तू ने अपने ख़ादिम दाऊद से किया है। |
18. | लेकिन क्या अल्लाह वाक़ई ज़मीन पर इन्सान के दर्मियान सुकूनत करेगा? नहीं, तू तो बुलन्दतरीन आस्मान में भी समा नहीं सकता! तो फिर यह मकान जो मैं ने बनाया है किस तरह तेरी सुकूनतगाह बन सकता है? |
19. | ऐ रब्ब मेरे ख़ुदा, तो भी अपने ख़ादिम की दुआ और इल्तिजा सुन जब मैं तेरे हुज़ूर पुकारते हुए इलतिमास करता हूँ |
20. | कि बराह-ए-करम दिन रात इस इमारत की निगरानी कर! क्यूँकि यह वह जगह है जिस के बारे में तू ने ख़ुद फ़रमाया, ‘यहाँ मेरा नाम सुकूनत करेगा।’ चुनाँचे अपने ख़ादिम की गुज़ारिश सुन जो मैं इस मक़ाम की तरफ़ रुख़ किए हुए करता हूँ। |
21. | जब हम इस मक़ाम की तरफ़ रुख़ करके दुआ करें तो अपने ख़ादिम और अपनी क़ौम की इल्तिजाएँ सुन। आस्मान पर अपने तख़्त से हमारी सुन। और जब सुनेगा तो हमारे गुनाहों को मुआफ़ कर! |
22. | अगर किसी पर इल्ज़ाम लगाया जाए और उसे यहाँ तेरी क़ुर्बानगाह के सामने लाया जाए ताकि हलफ़ उठा कर वादा करे कि मैं बेक़ुसूर हूँ |
23. | तो बराह-ए-करम आस्मान पर से सुन कर अपने ख़ादिमों का इन्साफ़ कर। क़ुसूरवार को सज़ा दे कर उस के अपने सर पर वह कुछ आने दे जो उस से सरज़द हुआ है, और बेक़ुसूर को बेइल्ज़ाम क़रार दे कर उस की रास्तबाज़ी का बदला दे। |
24. | हो सकता है किसी वक़्त तेरी क़ौम इस्राईल तेरा गुनाह करे और नतीजे में दुश्मन के सामने शिकस्त खाए। अगर इस्राईली आख़िरकार तेरे पास लौट आएँ और तेरे नाम की तम्जीद करके यहाँ इस घर में तेरे हुज़ूर दुआ और इलतिमास करें |
25. | तो आस्मान पर से उन की फ़र्याद सुन लेना। अपनी क़ौम इस्राईल का गुनाह मुआफ़ करके उन्हें दुबारा उस मुल्क में वापस लाना जो तू ने उन्हें और उन के बापदादा को दे दिया था। |
26. | हो सकता है इस्राईली तेरा इतना संगीन गुनाह करें कि काल पड़े और बड़ी देर तक बारिश न बरसे। अगर वह आख़िरकार इस घर की तरफ़ रुख़ करके तेरे नाम की तम्जीद करें और तेरी सज़ा के बाइस अपना गुनाह छोड़ कर लौट आएँ |
27. | तो आस्मान पर से उन की फ़र्याद सुन लेना। अपने ख़ादिमों और अपनी क़ौम इस्राईल को मुआफ़ कर, क्यूँकि तू ही उन्हें अच्छी राह की तालीम देता है। तब उस मुल्क पर दुबारा बारिश बरसा दे जो तू ने अपनी क़ौम को मीरास में दे दिया है। |
28. | हो सकता है इस्राईल में काल पड़ जाए, अनाज की फ़सल किसी बीमारी, फफूँदी, टिड्डियों या कीड़ों से मुतअस्सिर हो जाए, या दुश्मन किसी शहर का मुहासरा करे। जो भी मुसीबत या बीमारी हो, |
29. | अगर कोई इस्राईली या तेरी पूरी क़ौम उस का सबब जान कर अपने हाथों को इस घर की तरफ़ बढ़ाए और तुझ से इलतिमास करे |
30. | तो आस्मान पर अपने तख़्त से उन की फ़र्याद सुन लेना। उन्हें मुआफ़ करके हर एक को उस की तमाम हर्कतों का बदला दे, क्यूँकि सिर्फ़ तू ही हर इन्सान के दिल को जानता है। |
31. | फिर जितनी देर वह उस मुल्क में ज़िन्दगी गुज़ारेंगे जो तू ने हमारे बापदादा को दिया था उतनी देर वह तेरा ख़ौफ़ मान कर तेरी राहों पर चलते रहेंगे। |
32. | आइन्दा परदेसी भी तेरे अज़ीम नाम, तेरी बड़ी क़ुद्रत और तेरे ज़बरदस्त कामों के सबब से आएँगे और इस घर की तरफ़ रुख़ करके दुआ करेंगे। अगरचि वह तेरी क़ौम इस्राईल के नहीं होंगे |
33. | तो भी आस्मान पर से उन की फ़र्याद सुन लेना। जो भी दरख़्वास्त वह पेश करें वह पूरी करना ताकि दुनिया की तमाम अक़्वाम तेरा नाम जान कर तेरी क़ौम इस्राईल की तरह ही तेरा ख़ौफ़ मानें और जान लें कि जो इमारत मैं ने तामीर की है उस पर तेरे ही नाम का ठप्पा लगा है। |
34. | हो सकता है तेरी क़ौम के मर्द तेरी हिदायत के मुताबिक़ अपने दुश्मन से लड़ने के लिए निकलें। अगर वह तेरे चुने हुए शहर और उस इमारत की तरफ़ रुख़ करके दुआ करें जो मैं ने तेरे नाम के लिए तामीर की है |
35. | तो आस्मान पर से उन की दुआ और इलतिमास सुन कर उन के हक़ में इन्साफ़ क़ाइम रखना। |
36. | हो सकता है वह तेरा गुनाह करें, ऐसी हर्कतें तो हम सब से सरज़द होती रहती हैं, और नतीजे में तू नाराज़ हो कर उन्हें दुश्मन के हवाले कर दे जो उन्हें क़ैद करके किसी दूरदराज़ या क़रीबी मुल्क में ले जाए। |
37. | शायद वह जिलावतनी में तौबा करके दुबारा तेरी तरफ़ रुजू करें और तुझ से इलतिमास करें, ‘हम ने गुनाह किया है, हम से ग़लती हुई है, हम ने बेदीन हर्कतें की हैं।’ |
38. | अगर वह ऐसा करके अपनी क़ैद के मुल्क में अपने पूरे दिल-ओ-जान से दुबारा तेरी तरफ़ रुजू करें और तेरी तरफ़ से बापदादा को दिए गए मुल्क, तेरे चुने हुए शहर और उस इमारत की तरफ़ रुख़ करके दुआ करें जो मैं ने तेरे नाम के लिए तामीर की है |
39. | तो आस्मान पर अपने तख़्त से उन की दुआ और इलतिमास सुन लेना। उन के हक़ में इन्साफ़ क़ाइम करना, और अपनी क़ौम के गुनाहों को मुआफ़ कर देना। |
40. | ऐ मेरे ख़ुदा, तेरी आँखें और तेरे कान उन दुआओं के लिए खुले रहें जो इस जगह पर की जाती हैं। |
41. | ऐ रब्ब ख़ुदा, उठ कर अपनी आरामगाह के पास आ, तू और अह्द का सन्दूक़ जो तेरी क़ुद्रत का इज़्हार है। ऐ रब्ब ख़ुदा, तेरे इमाम नजात से मुलब्बस हो जाएँ, और तेरे ईमानदार तेरी भलाई की ख़ुशी मनाएँ। |
42. | ऐ रब्ब ख़ुदा, अपने मसह किए हुए ख़ादिम को रद्द न कर बल्कि उस शफ़्क़त को याद कर जो तू ने अपने ख़ादिम दाऊद पर की है।” |
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