← 2Chronicles (35/36) → |
1. | फिर यूसियाह ने रब्ब की ताज़ीम में फ़सह की ईद मनाई। पहले महीने के 14वें दिन फ़सह का लेला ज़बह किया गया। |
2. | बादशाह ने इमामों को काम पर लगा कर उन की हौसलाअफ़्ज़ाई की कि वह रब्ब के घर में अपनी ख़िदमत अच्छी तरह अन्जाम दें। |
3. | लावियों को तमाम इस्राईलियों को शरीअत की तालीम देने की ज़िम्मादारी दी गई थी, और साथ साथ उन्हें रब्ब की ख़िदमत के लिए मख़्सूस किया गया था। उन से यूसियाह ने कहा, “मुक़द्दस सन्दूक़ को उस इमारत में रखें जो इस्राईल के बादशाह दाऊद के बेटे सुलेमान ने तामीर किया। उसे अपने कंधों पर उठा कर इधर उधर ले जाने की ज़रूरत नहीं है बल्कि अब से अपना वक़्त रब्ब अपने ख़ुदा और उस की क़ौम इस्राईल की ख़िदमत में सर्फ़ करें। |
4. | उन ख़ान्दानी गुरोहों के मुताबिक़ ख़िदमत के लिए तय्यार रहें जिन की तर्तीब दाऊद बादशाह और उस के बेटे सुलेमान ने लिख कर मुक़र्रर की थी। |
5. | फिर मक़्दिस में उस जगह खड़े हो जाएँ जो आप के ख़ान्दानी गुरोह के लिए मुक़र्रर है और उन ख़ान्दानों की मदद करें जो क़ुर्बानियाँ चढ़ाने के लिए आते हैं और जिन की ख़िदमत करने की ज़िम्मादारी आप को दी गई है। |
6. | अपने आप को ख़िदमत के लिए मख़्सूस करें और फ़सह के लेले ज़बह करके अपने हमवतनों के लिए इस तरह तय्यार करें जिस तरह रब्ब ने मूसा की मारिफ़त हुक्म दिया था।” |
7. | ईद की ख़ुशी में यूसियाह ने ईद मनाने वालों को अपनी मिल्कियत में से 30,000 भेड़-बक्रियों के बच्चे दिए। यह जानवर फ़सह की क़ुर्बानी के तौर पर चढ़ाए गए जबकि बादशाह की तरफ़ से 3,000 बैल दीगर क़ुर्बानियों के लिए इस्तेमाल हुए। |
8. | इस के इलावा बादशाह के अफ़्सरों ने भी अपनी ख़ुशी से क़ौम, इमामों और लावियों को जानवर दिए। अल्लाह के घर के सब से आला अफ़्सरों ख़िलक़ियाह, ज़करियाह और यहीएल ने दीगर इमामों को फ़सह की क़ुर्बानी के लिए 2,600 भेड़-बक्रियों के बच्चे दिए, नीज़ 300 बैल। |
9. | इसी तरह लावियों के राहनुमाओं ने दीगर लावियों को फ़सह की क़ुर्बानी के लिए 5,000 भेड़-बक्रियों के बच्चे दिए, नीज़ 500 बैल। उन में से तीन भाई बनाम कूननियाह, समायाह और नतनीएल थे जबकि दूसरों के नाम हसबियाह, यईएल और यूज़बद थे। |
10. | जब हर एक ख़िदमत के लिए तय्यार था तो इमाम अपनी अपनी जगह पर और लावी अपने अपने गुरोहों के मुताबिक़ खड़े हो गए जिस तरह बादशाह ने हिदायत दी थी। |
11. | लावियों ने फ़सह के लेलों को ज़बह करके उन की खालें उतारीं जबकि इमामों ने लावियों से जानवरों का ख़ून ले कर क़ुर्बानगाह पर छिड़का। |
12. | जो कुछ भस्म होने वाली क़ुर्बानियों के लिए मुक़र्रर था उसे क़ौम के मुख़्तलिफ़ ख़ान्दानों के लिए एक तरफ़ रख दिया गया ताकि वह उसे बाद में रब्ब को क़ुर्बानी के तौर पर पेश कर सकें, जिस तरह मूसा की शरीअत में लिखा है। बैलों के साथ भी ऐसा ही किया गया। |
13. | फ़सह के लेलों को हिदायात के मुताबिक़ आग पर भूना गया जबकि बाक़ी गोश्त को मुख़्तलिफ़ क़िस्म की देगों में उबाला गया। जूँ ही गोश्त पक गया तो लावियों ने उसे जल्दी से हाज़िरीन में तक़्सीम किया। |
14. | इस के बाद उन्हों ने अपने और इमामों के लिए फ़सह के लेले तय्यार किए, क्यूँकि हारून की औलाद यानी इमाम भस्म होने वाली क़ुर्बानियों और चर्बी को चढ़ाने में रात तक मसरूफ़ रहे। |
15. | ईद के पूरे दौरान आसफ़ के ख़ान्दान के गुलूकार अपनी अपनी जगह पर खड़े रहे, जिस तरह दाऊद, आसफ़, हैमान और बादशाह के ग़ैबबीन यदूतून ने हिदायत दी थी। दरबान भी रब्ब के घर के दरवाज़ों पर मुसल्सल खड़े रहे। उन्हें अपनी जगहों को छोड़ने की ज़रूरत भी नहीं थी, क्यूँकि बाक़ी लावियों ने उन के लिए भी फ़सह के लेले तय्यार कर रखे। |
16. | यूँ उस दिन यूसियाह के हुक्म पर क़ुर्बानियों के पूरे इन्तिज़ाम को तर्तीब दिया गया ताकि आइन्दा फ़सह की ईद मनाई जाए और भस्म होने वाली क़ुर्बानियाँ रब्ब की क़ुर्बानगाह पर पेश की जाएँ। |
17. | यरूशलम में जमा हुए इस्राईलियों ने फ़सह की ईद और बेख़मीरी रोटी की ईद एक हफ़्ते के दौरान मनाई। |
18. | फ़सह की ईद इस्राईल में समूएल नबी के ज़माने से ले कर उस वक़्त तक इस तरह नहीं मनाई गई थी। इस्राईल के किसी भी बादशाह ने उसे यूँ नहीं मनाया था जिस तरह यूसियाह ने उसे उस वक़्त इमामों, लावियों, यरूशलम और तमाम यहूदाह और इस्राईल से आए हुए लोगों के साथ मिल कर मनाई। |
19. | यूसियाह बादशाह की हुकूमत के 18वें साल में पहली दफ़ा रब्ब की ताज़ीम में ऐसी ईद मनाई गई। |
20. | रब्ब के घर की बहाली की तक्मील के बाद एक दिन मिस्र का बादशाह निकोह दरया-ए-फ़ुरात पर के शहर कर्किमीस के लिए रवाना हुआ ताकि वहाँ दुश्मन से लड़े। लेकिन रास्ते में यूसियाह उस का मुक़ाबला करने के लिए निकला। |
21. | निकोह ने अपने क़ासिदों को यूसियाह के पास भेज कर उसे इत्तिला दी, “ऐ यहूदाह के बादशाह, मेरा आप से क्या वास्ता? इस वक़्त मैं आप पर हम्ला करने के लिए नहीं निकला बल्कि उस शाही ख़ान्दान पर जिस के साथ मेरा झगड़ा है। अल्लाह ने फ़रमाया है कि मैं जल्दी करूँ। वह तो मेरे साथ है। चुनाँचे उस का मुक़ाबला करने से बाज़ आएँ, वर्ना वह आप को हलाक कर देगा।” |
22. | लेकिन यूसियाह बाज़ न आया बल्कि लड़ने के लिए तय्यार हुआ। उस ने निकोह की बात न मानी गो अल्लाह ने उसे उस की मारिफ़त आगाह किया था। चुनाँचे वह भेस बदल कर फ़िरऔन से लड़ने के लिए मजिद्दो के मैदान में पहुँचा। |
23. | जब लड़ाई छिड़ गई तो यूसियाह तीरों से ज़ख़्मी हुआ, और उस ने अपने मुलाज़िमों को हुक्म दिया, “मुझे यहाँ से ले जाओ, क्यूँकि मैं सख़्त ज़ख़्मी हो गया हूँ।” |
24. | लोगों ने उसे उस के अपने रथ पर से उठा कर उस के एक और रथ में रखा जो उसे यरूशलम ले गया। लेकिन उस ने वफ़ात पाई, और उसे अपने बापदादा के ख़ान्दानी क़ब्रिस्तान में दफ़न किया गया। पूरे यहूदाह और यरूशलम ने उस का मातम किया। |
25. | यरमियाह ने यूसियाह की याद में मातमी गीत लिखे, और आज तक गीत गाने वाले मर्द-ओ-ख़वातीन यूसियाह की याद में मातमी गीत गाते हैं, यह पक्का दस्तूर बन गया है। यह गीत ‘नोहा की किताब’ में दर्ज हैं। |
26. | बाक़ी जो कुछ शुरू से ले कर आख़िर तक यूसियाह की हुकूमत के दौरान हुआ वह ‘शाहान-ए-यहूदाह-ओ-इस्राईल’ की किताब में बयान किया गया है। वहाँ उस के नेक कामों का ज़िक्र है और यह कि उस ने किस तरह शरीअत के अह्काम पर अमल किया। |
27. | बाक़ी जो कुछ शुरू से ले कर आख़िर तक यूसियाह की हुकूमत के दौरान हुआ वह ‘शाहान-ए-यहूदाह-ओ-इस्राईल’ की किताब में बयान किया गया है। वहाँ उस के नेक कामों का ज़िक्र है और यह कि उस ने किस तरह शरीअत के अह्काम पर अमल किया। |
← 2Chronicles (35/36) → |