2Chronicles (33/36)  

1. मनस्सी 12 साल की उम्र में बादशाह बना, और यरूशलम में उस की हुकूमत का दौरानिया 55 साल था।
2. मनस्सी का चाल-चलन रब्ब को नापसन्द था। उस ने उन क़ौमों के क़ाबिल-ए-घिन रस्म-ओ-रिवाज अपना लिए जिन्हें रब्ब ने इस्राईलियों के आगे से निकाल दिया था।
3. ऊँची जगहों के जिन मन्दिरों को उस के बाप हिज़क़ियाह ने ढा दिया था उन्हें उस ने नए सिरे से तामीर किया। उस ने बाल देवताओं की क़ुर्बानगाहें बनवाईं और यसीरत देवी के खम्बे खड़े किए। इन के इलावा वह सूरज, चाँद बल्कि आस्मान के पूरे लश्कर को सिज्दा करके उन की ख़िदमत करता था।
4. उस ने रब्ब के घर में भी अपनी क़ुर्बानगाहें खड़ी कीं, हालाँकि रब्ब ने इस मक़ाम के बारे में फ़रमाया था, “यरूशलम में मेरा नाम अबद तक क़ाइम रहेगा।”
5. लेकिन मनस्सी ने पर्वा न की बल्कि रब्ब के घर के दोनों सहनों में आस्मान के पूरे लश्कर के लिए क़ुर्बानगाहें बनवाईं।
6. यहाँ तक कि उस ने वादी-ए-बिन-हिन्नूम में अपने बेटों को भी क़ुर्बान करके जला दिया। जादूगरी, ग़ैबदानी और अफ़्सूँगरी करने के इलावा वह मुर्दों की रूहों से राबिता करने वालों और रम्मालों से भी मश्वरा करता था। ग़रज़ उस ने बहुत कुछ किया जो रब्ब को नापसन्द था और उसे तैश दिलाया।
7. देवी का बुत बनवा कर उस ने उसे अल्लाह के घर में खड़ा किया, हालाँकि रब्ब ने दाऊद और उस के बेटे सुलेमान से कहा था, “इस घर और इस शहर यरूशलम में जो मैं ने तमाम इस्राईली क़बीलों में से चुन लिया है मैं अपना नाम अबद तक क़ाइम रखूँगा।
8. अगर इस्राईली एहतियात से मेरे उन तमाम अह्काम और हिदायात की पैरवी करें जो मूसा ने शरीअत में उन्हें दिए तो मैं कभी नहीं होने दूँगा कि इस्राईलियों को उस मुल्क से जिलावतन कर दिया जाए जो मैं ने उन के बापदादा को अता किया था।”
9. लेकिन मनस्सी ने यहूदाह और यरूशलम के बाशिन्दों को ऐसे ग़लत काम करने पर उकसाया जो उन क़ौमों से भी सरज़द नहीं हुए थे जिन्हें रब्ब ने मुल्क में दाख़िल होते वक़्त उन के आगे से तबाह कर दिया था।
10. गो रब्ब ने मनस्सी और अपनी क़ौम को समझाया, लेकिन उन्हों ने पर्वा न की।
11. तब रब्ब ने असूरी बादशाह के कमाँडरों को यहूदाह पर हम्ला करने दिया। उन्हों ने मनस्सी को पकड़ कर उस की नाक में नकेल डाली और उसे पीतल की ज़न्जीरों में जकड़ कर बाबल ले गए।
12. जब वह यूँ मुसीबत में फंस गया तो मनस्सी रब्ब अपने ख़ुदा का ग़ज़ब ठंडा करने की कोशिश करने लगा और अपने आप को अपने बापदादा के ख़ुदा के हुज़ूर पस्त कर दिया।
13. और रब्ब ने उस की इलतिमास पर ध्यान दे कर उस की सुनी। उसे यरूशलम वापस ला कर उस ने उस की हुकूमत बहाल कर दी। तब मनस्सी ने जान लिया कि रब्ब ही ख़ुदा है।
14. इस के बाद उस ने ‘दाऊद के शहर’ की बैरूनी फ़सील नए सिरे से बनवाई। यह फ़सील जैहून चश्मे के मग़रिब से शुरू हुई और वादी-ए-क़िद्रोन में से गुज़र कर मछली के दरवाज़े तक पहुँच गई। इस दीवार ने रब्ब के घर की पूरी पहाड़ी बनाम ओफ़ल का इहाता कर लिया और बहुत बुलन्द थी। इस के इलावा बादशाह ने यहूदाह के तमाम क़िलआबन्द शहरों पर फ़ौजी अफ़्सर मुक़र्रर किए।
15. उस ने अजनबी माबूदों को बुत समेत रब्ब के घर से निकाल दिया। जो क़ुर्बानगाहें उस ने रब्ब के घर की पहाड़ी और बाक़ी यरूशलम में खड़ी की थीं उन्हें भी उस ने ढा कर शहर से बाहर फैंक दिया।
16. फिर उस ने रब्ब की क़ुर्बानगाह को नए सिरे से तामीर करके उस पर सलामती और शुक्रगुज़ारी की क़ुर्बानियाँ चढ़ाईं। साथ साथ उस ने यहूदाह के बाशिन्दों से कहा कि रब्ब इस्राईल के ख़ुदा की ख़िदमत करें।
17. गो लोग इस के बाद भी ऊँची जगहों पर अपनी क़ुर्बानियाँ पेश करते थे, लेकिन अब से वह इन्हें सिर्फ़ रब्ब अपने ख़ुदा को पेश करते थे।
18. बाक़ी जो कुछ मनस्सी की हुकूमत के दौरान हुआ वह ‘शाहान-ए-इस्राईल की तारीख़’ की किताब में दर्ज है। वहाँ उस की अपने ख़ुदा से दुआ भी बयान की गई है और वह बातें भी जो ग़ैबबीनों ने रब्ब इस्राईल के ख़ुदा के नाम में उसे बताई थीं।
19. ग़ैबबीनों की किताब में भी मनस्सी की दुआ बयान की गई है और यह कि अल्लाह ने किस तरह उस की सुनी। वहाँ उस के तमाम गुनाहों और बेवफ़ाई का ज़िक्र है, नीज़ उन ऊँची जगहों की फ़हरिस्त दर्ज है जहाँ उस ने अल्लाह के ताबे हो जाने से पहले मन्दिर बना कर यसीरत देवी के खम्बे और बुत खड़े किए थे।
20. जब मनस्सी मर कर अपने बापदादा से जा मिला तो उसे उस के महल में दफ़न किया गया। फिर उस का बेटा अमून तख़्तनशीन हुआ।
21. अमून 22 साल की उम्र में बादशाह बना और दो साल तक यरूशलम में हुकूमत करता रहा।
22. अपने बाप मनस्सी की तरह वह ऐसा ग़लत काम करता रहा जो रब्ब को नापसन्द था। जो बुत उस के बाप ने बनवाए थे उन ही की पूजा वह करता और उन ही को क़ुर्बानियाँ पेश करता था।
23. लेकिन उस में और मनस्सी में यह फ़र्क़ था कि बेटे ने अपने आप को रब्ब के सामने पस्त न किया बल्कि उस का क़ुसूर मज़ीद संगीन होता गया।
24. एक दिन अमून के कुछ अफ़्सरों ने उस के ख़िलाफ़ साज़िश करके उसे महल में क़त्ल कर दिया।
25. लेकिन उम्मत ने तमाम साज़िश करने वालों को मार डाला और अमून की जगह उस के बेटे यूसियाह को बादशाह बना दिया।

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