2Chronicles (16/36)  

1. आसा की हुकूमत के 36वें साल में इस्राईल के बादशाह बाशा ने यहूदाह पर हम्ला करके रामा शहर की क़िलआबन्दी की। मक़्सद यह था कि न कोई यहूदाह के मुल्क में दाख़िल हो सके, न कोई वहाँ से निकल सके।
2. जवाब में आसा ने शाम के बादशाह बिन-हदद के पास वफ़द भेजा जिस का दार-उल-हकूमत दमिश्क़ था। उस ने रब्ब के घर और शाही महल के ख़ज़ानों की सोना-चाँदी वफ़द के सपुर्द करके दमिश्क़ के बादशाह को पैग़ाम भेजा,
3. “मेरा आप के साथ अह्द है जिस तरह मेरे बाप का आप के बाप के साथ अह्द था। गुज़ारिश है कि आप सोने-चाँदी का यह तुह्फ़ा क़बूल करके इस्राईल के बादशाह बाशा के साथ अपना अह्द मन्सूख़ कर दें ताकि वह मेरे मुल्क से निकल जाए।”
4. बिन-हदद मुत्तफ़िक़ हुआ। उस ने अपने फ़ौजी अफ़्सरों को इस्राईल के शहरों पर हम्ला करने के लिए भेज दिया तो उन्हों ने ऐय्यून, दान, अबील-माइम और नफ़्ताली के उन तमाम शहरों पर क़ब्ज़ा कर लिया जिन में शाही गोदाम थे।
5. जब बाशा को इस की ख़बर मिली तो उस ने रामा की क़िलआबन्दी करने से बाज़ आ कर अपनी यह मुहिम्म छोड़ दी।
6. फिर आसा बादशाह ने यहूदाह के तमाम मर्दों की भर्ती करके उन्हें रामा भेज दिया ताकि वह उन तमाम पत्थरों और शहतीरों को उठा कर ले जाएँ जिन से बाशा बादशाह रामा की क़िलआबन्दी करना चाहता था। इस सामान से आसा ने जिबा और मिस्फ़ाह शहरों की क़िलआबन्दी की।
7. उस वक़्त हनानी ग़ैबबीन यहूदाह के बादशाह आसा को मिलने आया। उस ने कहा, “अफ़्सोस कि आप ने रब्ब अपने ख़ुदा पर एतिमाद न किया बल्कि अराम के बादशाह पर, क्यूँकि इस का बुरा नतीजा निकला है। रब्ब शाम के बादशाह की फ़ौज को आप के हवाले करने के लिए तय्यार था, लेकिन अब यह मौक़ा जाता रहा है।
8. क्या आप भूल गए हैं कि एथोपिया और लिबिया की कितनी बड़ी फ़ौज आप से लड़ने आई थी? उन के साथ कस्रत के रथ और घुड़सवार भी थे। लेकिन उस वक़्त आप ने रब्ब पर एतिमाद किया, और जवाब में उस ने उन्हें आप के हवाले कर दिया।
9. रब्ब तो अपनी नज़र पूरी रू-ए-ज़मीन पर दौड़ाता रहता है ताकि उन की तक़वियत करे जो पूरी वफ़ादारी से उस से लिपटे रहते हैं। आप की अहमक़ाना हर्कत की वजह से आप को अब से मुतवातिर जंगें तंग करती रहेंगी।”
10. यह सुन कर आसा ग़ुस्से से लाल-पीला हो गया। आपे से बाहर हो कर उस ने हुक्म दिया कि नबी को गिरिफ़्तार करके उस के पाँओ काठ में ठोंको। उस वक़्त से आसा अपनी क़ौम के कई लोगों पर ज़ुल्म करने लगा।
11. बाक़ी जो कुछ शुरू से ले कर आख़िर तक आसा की हुकूमत के दौरान हुआ वह ‘शाहान-ए-यहूदाह-ओ-इस्राईल की तारीख़’ की किताब में बयान किया गया है।
12. हुकूमत के 39वें साल में उस के पाँओ को बीमारी लग गई। गो उस की बुरी हालत थी तो भी उस ने रब्ब को तलाश न किया बल्कि सिर्फ़ डाक्टरों के पीछे पड़ गया।
13. हुकूमत के 41वें साल में आसा मर कर अपने बापदादा से जा मिला।
14. उस ने यरूशलम के उस हिस्से में जो ‘दाऊद का शहर’ कहलाता है अपने लिए चटान में क़ब्र तराशी थी। अब उसे इस में दफ़न किया गया। जनाज़े के वक़्त लोगों ने लाश को एक पलंग पर लिटाया दिया जो बल्सान के तेल और मुख़्तलिफ़ क़िस्म के ख़ुश्बूदार मर्हमों से ढाँपा गया था। फिर उस के एहतिराम में लकड़ी का ज़बरदस्त ढेर जलाया गया।

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