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1. | फ़िलिस्ती अल्लाह का सन्दूक़ अबन-अज़र से अश्दूद शहर में ले गए। |
2. | वहाँ उन्हों ने उसे अपने देवता दजून के मन्दिर में बुत के क़रीब रख दिया। |
3. | अगले दिन सुब्ह-सवेरे जब अश्दूद के बाशिन्दे मन्दिर में दाख़िल हुए तो क्या देखते हैं कि दजून का मुजस्समा मुँह के बल रब्ब के सन्दूक़ के सामने ही पड़ा है। उन्हों ने दजून को उठा कर दुबारा उस की जगह पर खड़ा किया। |
4. | लेकिन अगले दिन जब सुब्ह-सवेरे आए तो दजून दुबारा मुँह के बल रब्ब के सन्दूक़ के सामने पड़ा हुआ था। लेकिन इस मर्तबा बुत का सर और हाथ टूट कर दहलीज़ पर पड़े थे। सिर्फ़ धड़ रह गया था। |
5. | यही वजह है कि आज तक दजून का कोई भी पुजारी या मेहमान अश्दूद के मन्दिर की दहलीज़ पर क़दम नहीं रखता। |
6. | फिर रब्ब ने अश्दूद और गिर्द-ओ-नवाह के दीहातों पर सख़्त दबाओ डाल कर बाशिन्दों को परेशान कर दिया। उन में अचानक अज़ियतनाक फोड़ों की वबा फैल गई। |
7. | जब अश्दूद के लोगों ने इस की वजह जान ली तो वह बोले, “लाज़िम है कि इस्राईल के ख़ुदा का सन्दूक़ हमारे पास न रहे। क्यूँकि उस का हम पर और हमारे देवता दजून पर दबाओ नाक़ाबिल-ए-बर्दाश्त है।” |
8. | उन्हों ने तमाम फ़िलिस्ती हुक्मरानों को इकट्ठा करके पूछा, “हम इस्राईल के ख़ुदा के सन्दूक़ के साथ क्या करें?” उन्हों ने मश्वरा दिया, “उसे जात शहर में ले जाएँ।” |
9. | लेकिन जब अह्द का सन्दूक़ जात में छोड़ा गया तो रब्ब का दबाओ उस शहर पर भी आ गया। बड़ी अफ़्रा-तफ़्री पैदा हुई, क्यूँकि छोटों से ले कर बड़ों तक सब को अज़ियतनाक फोड़े निकल आए। |
10. | तब उन्हों ने अह्द का सन्दूक़ आगे अक़्रून भेज दिया। लेकिन सन्दूक़ अभी पहुँचने वाला था कि अक़्रून के बाशिन्दे चीख़ने लगे, “वह इस्राईल के ख़ुदा का सन्दूक़ हमारे पास लाए हैं ताकि हमें हलाक कर दें!” |
11. | तमाम फ़िलिस्ती हुक्मरानों को दुबारा बुलाया गया, और अक़्रूनियों ने तक़ाज़ा किया कि सन्दूक़ को शहर से दूर किया जाए। वह बोले, “इसे वहाँ वापस भेजा जाए जहाँ से आया है, वर्ना यह हमें बल्कि पूरी क़ौम को हलाक कर डालेगा।” क्यूँकि शहर पर रब्ब का सख़्त दबाओ हावी हो गया था। मुहलक वबा के बाइस उस में ख़ौफ़-ओ-हिरास की लहर दौड़ गई। |
12. | जो मरने से बचा उसे कम अज़ कम फोड़े निकल आए। चारों तरफ़ लोगों की चीख़-पुकार फ़िज़ा में बुलन्द हुई। |
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