1Samuel (30/31)  

1. तीसरे दिन जब दाऊद सिक़्लाज पहुँचा तो देखा कि शहर का सत्यानास हो गया है। उन की ग़ैरमौजूदगी में अमालीक़ियों ने दश्त-ए-नजब में आ कर सिक़्लाज पर भी हम्ला किया था। शहर को जला कर
2. वह तमाम बाशिन्दों को छोटों से ले कर बड़ों तक अपने साथ ले गए थे। लेकिन कोई हलाक नहीं हुआ था बल्कि वह सब को अपने साथ ले गए थे।
3. चुनाँचे जब दाऊद और उस के आदमी वापस आए तो देखा कि शहर भस्म हो गया है और तमाम बाल-बच्चे छिन गए हैं।
4. वह फूट फूट कर रोने लगे, इतने रोए कि आख़िरकार रोने की सकत ही न रही।
5. दाऊद की दो बीवियों अख़ीनूअम यज़्रएली और अबीजेल कर्मिली को भी असीर कर लिया गया था।
6. दाऊद की जान बड़े ख़त्रे में आ गई, क्यूँकि उस के मर्द ग़म के मारे आपस में उसे संगसार करने की बातें करने लगे। क्यूँकि बेटे-बेटियों के छिन जाने के बाइस सब सख़्त रंजीदा थे। लेकिन दाऊद ने रब्ब अपने ख़ुदा में पनाह ले कर तक़वियत पाई।
7. उस ने अबियातर बिन अख़ीमलिक को हुक्म दिया, “क़ुरआ डालने के लिए इमाम का बालापोश ले आएँ।” जब इमाम बालापोश ले आया
8. तो दाऊद ने रब्ब से दरयाफ़्त किया, “क्या मैं लुटेरों का ताक़्क़ुब करूँ? क्या मैं उन को जा लूँगा?” रब्ब ने जवाब दिया, “उन का ताक़्क़ुब कर! तू न सिर्फ़ उन्हें जा लेगा बल्कि अपने लोगों को बचा भी लेगा।”
9. तब दाऊद अपने 600 मर्दों के साथ रवाना हुआ। चलते चलते वह बसोर नदी के पास पहुँच गए। 200 अफ़राद इतने निढाल हो गए थे कि वह वहीं रुक गए। बाक़ी 400 मर्द नदी को पार करके आगे बढ़े।
10. तब दाऊद अपने 600 मर्दों के साथ रवाना हुआ। चलते चलते वह बसोर नदी के पास पहुँच गए। 200 अफ़राद इतने निढाल हो गए थे कि वह वहीं रुक गए। बाक़ी 400 मर्द नदी को पार करके आगे बढ़े।
11. रास्ते में उन्हें खुले मैदान में एक मिस्री आदमी मिला और उसे दाऊद के पास ला कर कुछ पानी पिलाया और कुछ रोटी,
12. अन्जीर की टिक्की का टुकड़ा और किशमिश की दो टिक्कियाँ खिलाईं। तब उस की जान में जान आ गई। उसे तीन दिन और रात से न खाना, न पानी मिला था।
13. दाऊद ने पूछा, “तुम्हारा मालिक कौन है, और तुम कहाँ के हो?” उस ने जवाब दिया, “मैं मिस्री ग़ुलाम हूँ, और एक अमालीक़ी मेरा मालिक है। जब मैं सफ़र के दौरान बीमार हो गया तो उस ने मुझे यहाँ छोड़ दिया। अब मैं तीन दिन से यहाँ पड़ा हूँ।
14. पहले हम ने करेतियों यानी फ़िलिस्तियों के जुनूबी इलाक़े और फिर यहूदाह के इलाक़े पर हम्ला किया था, ख़ासकर यहूदाह के जुनूबी हिस्से पर जहाँ कालिब की औलाद आबाद है। शहर सिक़्लाज को हम ने भस्म कर दिया था।”
15. दाऊद ने सवाल किया, “क्या तुम मुझे बता सकते हो कि यह लुटेरे किस तरफ़ गए हैं?” मिस्री ने जवाब दिया, “पहले अल्लाह की क़सम खा कर वादा करें कि आप मुझे न हलाक करेंगे, न मेरे मालिक के हवाले करेंगे। फिर मैं आप को उन के पास ले जाऊँगा।”
16. चुनाँचे वह दाऊद को अमालीक़ी लुटेरों के पास ले गया। जब वहाँ पहुँचे तो देखा कि अमालीक़ी इधर उधर बिखरे हुए बड़ा जश्न मना रहे हैं। वह हर तरफ़ खाना खाते और मै पीते हुए नज़र आ रहे थे, क्यूँकि जो माल उन्हों ने फ़िलिस्तियों और यहूदाह के इलाक़े से लूट लिया था वह बहुत ज़ियादा था।
17. सुब्ह-सवेरे जब अभी थोड़ी रौशनी थी दाऊद ने उन पर हम्ला किया। लड़ते लड़ते अगले दिन की शाम हो गई। दुश्मन हार गया और सब के सब हलाक हुए। सिर्फ़ 400 जवान बच गए जो ऊँटों पर सवार हो कर फ़रार हो गए।
18. दाऊद ने सब कुछ छुड़ा लिया जो अमालीक़ियों ने लूट लिया था। उस की दो बीवियाँ भी सहीह-सलामत मिल गईं।
19. न बच्चा न बुज़ुर्ग, न बेटा न बेटी, न माल या कोई और लूटी हुई चीज़ रही जो दाऊद वापस न लाया।
20. अमालीक़ियों के गाय-बैल और भेड़-बक्रियाँ दाऊद का हिस्सा बन गईं, और उस के लोगों ने उन्हें अपने रेवड़ों के आगे आगे हाँक कर कहा, “यह लूटे हुए माल में से दाऊद का हिस्सा है।”
21. जब दाऊद अपने आदमियों के साथ वापस आ रहा था तो जो 200 आदमी निढाल होने के बाइस बसोर नदी से आगे न जा सके वह भी उन से आ मिले। दाऊद ने सलाम करके उन का हाल पूछा।
22. लेकिन बाक़ी आदमियों में कुछ शरारती लोग बुड़बुड़ाने लगे, “यह हमारे साथ लड़ने के लिए आगे न निकले, इस लिए इन्हें लूटे हुए माल का हिस्सा पाने का हक़ नहीं। बस वह अपने बाल-बच्चों को ले कर चले जाएँ।”
23. लेकिन दाऊद ने इन्कार किया। “नहीं, मेरे भाइयो, ऐसा मत करना! यह सब कुछ रब्ब की तरफ़ से है। उसी ने हमें मह्फ़ूज़ रख कर हम्लाआवर लुटेरों पर फ़त्ह बख़्शी।
24. तो फिर हम आप की बात किस तरह मानें? जो पीछे रह कर सामान की हिफ़ाज़त कर रहा था उसे भी उतना ही मिलेगा जितना कि उसे जो दुश्मन से लड़ने गया था। हम यह सब कुछ बराबर बराबर तक़्सीम करेंगे।”
25. उस वक़्त से यह उसूल बन गया। दाऊद ने इसे इस्राईली क़ानून का हिस्सा बना दिया जो आज तक जारी है।
26. सिक़्लाज वापस पहुँचने पर दाऊद ने लूटे हुए माल का एक हिस्सा यहूदाह के बुज़ुर्गों के पास भेज दिया जो उस के दोस्त थे। साथ साथ उस ने पैग़ाम भेजा, “आप के लिए यह तुह्फ़ा रब्ब के दुश्मनों से लूट लिया गया है।”
27. यह तुह्फ़े उस ने ज़ैल के शहरों में भेज दिए : बैत-एल, रामात-नजब, यत्तीर,
28. अरोईर, सिफ़्मोत, इस्तिमूअ,
29. रकल, हुर्मा, बोर-असान, अताक़ और हब्रून। इस के इलावा उस ने तुह्फ़े यरहमिएलियों, क़ीनियों और बाक़ी उन तमाम शहरों को भेज दिए जिन में वह कभी ठहरा था।
30. रकल, हुर्मा, बोर-असान, अताक़ और हब्रून। इस के इलावा उस ने तुह्फ़े यरहमिएलियों, क़ीनियों और बाक़ी उन तमाम शहरों को भेज दिए जिन में वह कभी ठहरा था।
31. रकल, हुर्मा, बोर-असान, अताक़ और हब्रून। इस के इलावा उस ने तुह्फ़े यरहमिएलियों, क़ीनियों और बाक़ी उन तमाम शहरों को भेज दिए जिन में वह कभी ठहरा था।

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