1Samuel (27/31)  

1. इस तजरिबे के बाद दाऊद सोचने लगा, “अगर मैं यहीं ठहर जाऊँ तो किसी दिन साऊल मुझे मार डालेगा। बेहतर है कि अपनी हिफ़ाज़त के लिए फ़िलिस्तियों के मुल्क में चला जाऊँ। तब साऊल पूरे इस्राईल में मेरा खोज लगाने से बाज़ आएगा, और मैं मह्फ़ूज़ रहूँगा।”
2. चुनाँचे वह अपने 600 आदमियों को ले कर जात के बादशाह अकीस बिन माओक के पास चला गया।
3. उन के ख़ान्दान साथ थे। दाऊद की दो बीवियाँ अख़ीनूअम यज़्रएली और नाबाल की बेवा अबीजेल कर्मिली भी साथ थीं। अकीस ने उन्हें जात शहर में रहने की इजाज़त दी।
4. जब साऊल को ख़बर मिली कि दाऊद ने जात में पनाह ली है तो वह उस का खोज लगाने से बाज़ आया।
5. एक दिन दाऊद ने अकीस से बात की, “अगर आप की नज़र-ए-करम मुझ पर है तो मुझे दीहात की किसी आबादी में रहने की इजाज़त दें। क्या ज़रूरत है कि मैं यहाँ आप के साथ दार-उल-हकूमत में रहूँ?”
6. अकीस मुत्तफ़िक़ हुआ। उस दिन उस ने उसे सिक़्लाज शहर दे दिया। यह शहर उस वक़्त से यहूदाह के बादशाहों की मिल्कियत में रहा है।
7. दाऊद एक साल और चार महीने फ़िलिस्ती मुल्क में ठहरा रहा।
8. सिक़्लाज से दाऊद अपने आदमियों के साथ मुख़्तलिफ़ जगहों पर हम्ला करने के लिए निकलता रहा। कभी वह जसूरियों पर धावा बोलते, कभी जिर्ज़ियों या अमालीक़ियों पर। यह क़बीले क़दीम ज़माने से यहूदाह के जुनूब में शूर और मिस्र की सरहद्द तक रहते थे।
9. जब भी कोई मक़ाम दाऊद के क़ब्ज़े में आ जाता तो वह किसी भी मर्द या औरत को ज़िन्दा न रहने देता लेकिन भेड़-बक्रियों, गाय-बैलों, गधों, ऊँटों और कपड़ों को अपने साथ सिक़्लाज ले जाता। जब भी दाऊद किसी हम्ले से वापस आ कर बादशाह अकीस से मिलता
10. तो वह पूछता, “आज आप ने किस पर छापा मारा?” फिर दाऊद जवाब देता, “यहूदाह के जुनूबी इलाक़े पर,” या “यरहमिएलियों के जुनूबी इलाक़े पर,” या “क़ीनियों के जुनूबी इलाक़े पर।”
11. जब भी दाऊद किसी आबादी पर हम्ला करता तो वह तमाम बाशिन्दों को मौत के घाट उतार देता और न मर्द, न औरत को ज़िन्दा छोड़ कर जात लाता। क्यूँकि उस ने सोचा, “ऐसा न हो कि फ़िलिस्तियों को पता चले कि मैं असल में इस्राईली आबादियों पर हम्ला नहीं कर रहा।” जितना वक़्त दाऊद ने फ़िलिस्ती मुल्क में गुज़ारा वह ऐसा ही करता रहा।
12. अकीस ने दाऊद पर पूरा भरोसा किया, क्यूँकि उस ने सोचा, “अब दाऊद को हमेशा तक मेरी ख़िदमत में रहना पड़ेगा, क्यूँकि ऐसी हर्कतों से उस की अपनी क़ौम उस से सख़्त मुतनफ़्फ़िर हो गई है।”

  1Samuel (27/31)