1Samuel (15/31)  

1. एक दिन समूएल ने साऊल के पास आ कर उस से बात की, “रब्ब ही ने मुझे आप को मसह करके इस्राईल पर मुक़र्रर करने का हुक्म दिया था। अब रब्ब का पैग़ाम सुन लें!
2. रब्ब-उल-अफ़्वाज फ़रमाता है, ‘मैं अमालीक़ियों का मेरी क़ौम के साथ सुलूक नहीं भूल सकता। उस वक़्त जब इस्राईली मिस्र से निकल कर कनआन की तरफ़ सफ़र कर रहे थे तो अमालीक़ियों ने रास्ता बन्द कर दिया था।
3. अब वक़्त आ गया है कि तू उन पर हम्ला करे। सब कुछ तबाह करके मेरे हवाले कर दे। कुछ भी बचने न दे, बल्कि तमाम मर्दों, औरतों, बच्चों शीरख़्वारों समेत, गाय-बैलों, भेड़-बक्रियों, ऊँटों और गधों को मौत के घाट उतार दे।’”
4. साऊल ने अपने फ़ौजियों को बुला कर तलाइम में उन का जाइज़ा लिया। कुल 2,00,000 पयादे फ़ौजी थे, नीज़ यहूदाह के 10,000 अफ़राद।
5. अमालीक़ियों के शहर के पास पहुँच कर साऊल वादी में ताक में बैठ गया।
6. लेकिन पहले उस ने क़ीनियों को ख़बर भेजी, “अमालीक़ियों से अलग हो कर उन के पास से चले जाएँ, वर्ना आप उन के साथ हलाक हो जाएँगे। क्यूँकि जब इस्राईली मिस्र से निकल कर रेगिस्तान में सफ़र कर रहे थे तो आप ने उन पर मेहरबानी की थी।” यह ख़बर मिलते ही क़ीनी अमालीक़ियों से अलग हो कर चले गए।
7. तब साऊल ने अमालीक़ियों पर हम्ला करके उन्हें हवीला से ले कर मिस्र की मशरिक़ी सरहद्द शूर तक शिकस्त दी।
8. पूरी क़ौम को तल्वार से मारा गया, सिर्फ़ उन का बादशाह अजाज ज़िन्दा पकड़ा गया।
9. साऊल और उस के फ़ौजियों ने उसे ज़िन्दा छोड़ दिया। इसी तरह सब से अच्छी भेड़-बक्रियों, गाय-बैलों, मोटे-ताज़े बछड़ों और चीदा भेड़ के बच्चों को भी छोड़ दिया गया। जो भी अच्छा था बच गया, क्यूँकि इस्राईलियों का दिल नहीं करता था कि तन्दुरुस्त और मोटे-ताज़े जानवरों को हलाक करें। उन्हों ने सिर्फ़ उन तमाम कमज़ोर जानवरों को ख़त्म किया जिन की क़दर-ओ-क़ीमत न थी।
10. फिर रब्ब समूएल से हमकलाम हुआ,
11. “मुझे दुख है कि मैं ने साऊल को बादशाह बना लिया है, क्यूँकि उस ने मुझ से दूर हो कर मेरा हुक्म नहीं माना।” समूएल को इतना ग़ुस्सा आया कि वह पूरी रात बुलन्द आवाज़ से रब्ब से फ़र्याद करता रहा।
12. अगले दिन वह उठ कर साऊल से मिलने गया। किसी ने उसे बताया, “साऊल कर्मिल चला गया। वहाँ अपने लिए यादगार खड़ा करके वह आगे जिल्जाल चला गया है।”
13. जब समूएल जिल्जाल पहुँचा तो साऊल ने कहा, “मुबारक हो! मैं ने रब्ब का हुक्म पूरा कर दिया है।”
14. समूएल ने पूछा, “जानवरों का यह शोर कहाँ से आ रहा है? भेड़-बक्रियाँ ममया रही और गाय-बैल डकरा रहे हैं।”
15. साऊल ने जवाब दिया, “यह अमालीक़ियों के हाँ से लाए गए हैं। फ़ौजियों ने सब से अच्छे गाय-बैलों और भेड़-बक्रियों को ज़िन्दा छोड़ दिया ताकि उन्हें रब्ब आप के ख़ुदा के हुज़ूर क़ुर्बान करें। लेकिन हम ने बाक़ी सब को रब्ब के हवाले करके मार दिया।”
16. समूएल बोला, “ख़ामोश! पहले वह बात सुन लें जो रब्ब ने मुझे पिछली रात फ़रमाई।” साऊल ने जवाब दिया, “बताएँ।”
17. समूएल ने कहा, “जब आप तमाम क़ौम के राहनुमा बन गए तो इह्सास-ए-कमतरी का शिकार थे। तो भी रब्ब ने आप को मसह करके इस्राईल का बादशाह बना दिया।
18. और उस ने आप को भेज कर हुक्म दिया, ‘जा और अमालीक़ियों को पूरे तौर पर हलाक करके मेरे हवाले कर। उस वक़्त तक इन शरीर लोगों से लड़ता रह जब तक वह सब के सब मिट न जाएँ।’
19. अब मुझे बताएँ कि आप ने रब्ब की क्यूँ न सुनी? आप लूटे हुए माल पर क्यूँ टूट पड़े? यह तो रब्ब के नज़्दीक गुनाह है।”
20. साऊल ने एतिराज़ किया, “लेकिन मैं ने ज़रूर रब्ब की सुनी। जिस मक़्सद के लिए रब्ब ने मुझे भेजा वह मैं ने पूरा कर दिया है, क्यूँकि मैं अमालीक़ के बादशाह अजाज को गिरिफ़्तार करके यहाँ ले आया और बाक़ी सब को मौत के घाट उतार कर रब्ब के हवाले कर दिया।
21. मेरे फ़ौजी लूटे हुए माल में से सिर्फ़ सब से अच्छी भेड़-बक्रियाँ और गाय-बैल चुन कर ले आए, क्यूँकि वह उन्हें यहाँ जिल्जाल में रब्ब आप के ख़ुदा के हुज़ूर क़ुर्बान करना चाहते थे।”
22. लेकिन समूएल ने जवाब दिया, “रब्ब को क्या बात ज़ियादा पसन्द है, आप की भस्म होने वाली और ज़बह की क़ुर्बानियाँ या यह कि आप उस की सुनते हैं? सुनना क़ुर्बानी से कहीं बेहतर और ध्यान देना मेंढे की चर्बी से कहीं उम्दा है।
23. सरकशी ग़ैबदानी के गुनाह के बराबर है और ग़रूर बुतपरस्ती के गुनाह से कम नहीं होता। आप ने रब्ब का हुक्म रद्द किया है, इस लिए उस ने आप को रद्द करके बादशाह का उह्दा आप से छीन लिया है।”
24. तब साऊल ने इक़्रार किया, “मुझ से गुनाह हुआ है। मैं ने आप की हिदायत और रब्ब के हुक्म की ख़िलाफ़वरज़ी की है। मैं ने लोगों से डर कर उन की बात मान ली।
25. लेकिन अब मेहरबानी करके मुझे मुआफ़ करें और मेरे साथ वापस आएँ ताकि मैं आप की मौजूदगी में रब्ब की परस्तिश कर सकूँ।”
26. लेकिन समूएल ने जवाब दिया, “मैं आप के साथ वापस नहीं चलूँगा। आप ने रब्ब का कलाम रद्द किया है, इस लिए रब्ब ने आप को रद्द करके बादशाह का उह्दा आप से छीन लिया है।”
27. समूएल मुड़ कर वहाँ से चलने लगा, लेकिन साऊल ने उस के चोग़े का दामन इतने ज़ोर से पकड़ लिया कि वह फट कर उस के हाथ में रह गया।
28. समूएल बोला, “जिस तरह कपड़ा फट कर आप के हाथ में रह गया बिलकुल उसी तरह रब्ब ने आज ही इस्राईल पर आप का इख़तियार आप से छीन कर किसी और को दे दिया है, ऐसे शख़्स को जो आप से कहीं बेहतर है।
29. जो इस्राईल की शान-ओ-शौकत है वह न झूट बोलता, न कभी अपनी सोच को बदलता है, क्यूँकि वह इन्सान नहीं कि एक बात कह कर बाद में उसे बदले।”
30. साऊल ने दुबारा मिन्नत की, “बेशक मैं ने गुनाह किया है। लेकिन बराह-ए-करम कम अज़ कम मेरी क़ौम के बुज़ुर्गों और इस्राईल के सामने तो मेरी इज़्ज़त करें। मेरे साथ वापस आएँ ताकि मैं आप की मौजूदगी में रब्ब आप के ख़ुदा की परस्तिश कर सकूँ।”
31. तब समूएल मान गया और साऊल के साथ दूसरों के पास वापस आया। साऊल ने रब्ब की परस्तिश की,
32. फिर समूएल ने एलान किया, “अमालीक़ के बादशाह अजाज को मेरे पास ले आओ!” अजाज इत्मीनान से समूएल के पास आया, क्यूँकि उस ने सोचा, “बेशक मौत का ख़त्रा टल गया है।”
33. लेकिन समूएल बोला, “तेरी तल्वार से बेशुमार माएँ अपने बच्चों से महरूम हो गई हैं। अब तेरी माँ भी बेऔलाद हो जाएगी।” यह कह कर समूएल ने वहीं जिल्जाल में रब्ब के हुज़ूर अजाज को तल्वार से टुकड़े टुकड़े कर दिया।
34. फिर वह रामा वापस चला गया, और साऊल अपने घर गया जो जिबिआ में था।
35. इस के बाद समूएल जीते जी साऊल से कभी न मिला, क्यूँकि वह साऊल का मातम करता रहा। लेकिन रब्ब को दुख था कि मैं ने साऊल को इस्राईल पर क्यूँ मुक़र्रर किया।

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