1Samuel (13/31)  

1. साऊल 30 साल का था जब तख़्तनशीन हुआ। दो साल हुकूमत करने के बाद
2. उस ने अपनी फ़ौज के लिए 3,000 इस्राईली चुन लिए। जंग लड़ने के क़ाबिल बाक़ी आदमियों को उस ने फ़ारिग़ कर दिया। 2,000 फ़ौजियों की ड्यूटी मिक्मास और बैत-एल के पहाड़ी इलाक़े में लगाई गई जहाँ साऊल ख़ुद था। बाक़ी 1,000 अफ़राद यूनतन के पास बिन्यमीन के शहर जिबिआ में थे।
3. एक दिन यूनतन ने जिबिआ की फ़िलिस्ती चौकी पर हम्ला करके उसे शिकस्त दी। जल्द ही यह ख़बर दूसरे फ़िलिस्तियों तक पहुँच गई। साऊल ने मुल्क के कोने कोने में क़ासिद भेज दिए, और वह नरसिंगा बजाते बजाते लोगों को यूनतन की फ़त्ह सुनाते गए।
4. तमाम इस्राईल में ख़बर फैल गई, “साऊल ने जिबिआ की फ़िलिस्ती चौकी को तबाह कर दिया है, और अब इस्राईल फ़िलिस्तियों की ख़ास नफ़रत का निशाना बन गया है।” साऊल ने तमाम मर्दों को फ़िलिस्तियों से लड़ने के लिए जिल्जाल में बुलाया।
5. फ़िलिस्ती भी इस्राईलियों से लड़ने के लिए जमा हुए। उन के 30,000 रथ, 6,000 घुड़सवार और साहिल की रेत जैसे बेशुमार पियादा फ़ौजी थे। उन्हों ने बैत-आवन के मशरिक़ में मिक्मास के क़रीब अपने ख़ैमे लगाए।
6. इस्राईलियों ने देखा कि हम बड़े ख़त्रे में आ गए हैं, और दुश्मन हम पर बहुत दबाओ डाल रहा है तो परेशानी के आलम में कुछ ग़ारों और दराड़ों में और कुछ पत्थरों के दर्मियान या क़ब्रों और हौज़ों में छुप गए।
7. कुछ इतने डर गए कि वह दरया-ए-यर्दन को पार करके जद और जिलिआद के इलाक़े में चले गए। साऊल अब तक जिल्जाल में था, लेकिन जो आदमी उस के साथ रहे थे वह ख़ौफ़ के मारे थरथरा रहे थे।
8. समूएल ने साऊल को हिदायत दी थी कि सात दिन मेरा इन्तिज़ार करें। लेकिन सात दिन गुज़र गए, और समूएल न आया। साऊल के फ़ौजी मुन्तशिर होने लगे
9. तो साऊल ने हुक्म दिया, “भस्म होने वाली और सलामती की क़ुर्बानियाँ ले आओ।” फिर उस ने ख़ुद क़ुर्बानियाँ पेश कीं।
10. वह अभी इस काम से फ़ारिग़ ही हुआ था कि समूएल पहुँच गया। साऊल उसे ख़ुशआमदीद कहने के लिए निकला।
11. लेकिन समूएल ने पूछा, “आप ने क्या किया?” साऊल ने जवाब दिया, “लोग मुन्तशिर हो रहे थे, और आप वक़्त पर न आए। जब मैं ने देखा कि फ़िलिस्ती मिक्मास के क़रीब जमा हो रहे हैं
12. तो मैं ने सोचा, ‘फ़िलिस्ती यहाँ जिल्जाल में आ कर मुझ पर हम्ला करने को हैं, हालाँकि मैं ने अभी रब्ब से दुआ नहीं की कि वह हम पर मेहरबानी करे।’ इस लिए मैं ने जुरअत करके ख़ुद क़ुर्बानियाँ पेश कीं।”
13. समूएल बोला, “यह कैसी अहमक़ाना हर्कत थी! आप ने रब्ब अपने ख़ुदा का हुक्म न माना। रब्ब तो आप और आप की औलाद को हमेशा के लिए इस्राईल पर मुक़र्रर करना चाहता था।
14. लेकिन अब आप की बादशाहत क़ाइम नहीं रहेगी। चूँकि आप ने उस की न सुनी इस लिए रब्ब ने किसी और को चुन कर अपनी क़ौम का राहनुमा मुक़र्रर किया है, एक ऐसे आदमी को जो उस की सोच रखेगा।”
15. फिर समूएल जिल्जाल से चला गया। बचे हुए इस्राईली साऊल के पीछे दुश्मन से लड़ने गए। वह जिल्जाल से रवाना हो कर जिबिआ पहुँच गए। जब साऊल ने वहाँ फ़ौज का जाइज़ा लिया तो बस 600 अफ़राद रह गए थे।
16. साऊल, यूनतन और उन की फ़ौज बिन्यमीन के शहर जिबिआ में टिक गए जबकि फ़िलिस्ती मिक्मास के पास ख़ैमाज़न थे।
17. कुछ देर के बाद फ़िलिस्तियों के तीन दस्ते मुल्क को लूटने के लिए निकले। एक सूआल के इलाक़े के शहर उफ़्रा की तरफ़ चल पड़ा,
18. दूसरा बैत-हौरून की तरफ़ और तीसरा उस पहाड़ी सिलसिले की तरफ़ जहाँ से वादी-ए-ज़बोईम और रेगिस्तान देखा जा सकता है।
19. उन दिनों में पूरे मुल्क-ए-इस्राईल में लोहार नहीं था, क्यूँकि फ़िलिस्ती नहीं चाहते थे कि इस्राईली तल्वारें या नेज़े बनाएँ।
20. अपने हलों, कुदालों, कुल्हाड़ियों या दरान्तियों को तेज़ करवाने के लिए तमाम इस्राईलियों को फ़िलिस्तियों के पास जाना पड़ता था।
21. फ़िलिस्ती हलों, कुदालों, काँटों और कुल्हाड़ियों को तेज़ करने के लिए और आँकुसों की नोक ठीक करने के लिए चाँदी के सिक्के की दो तिहाई लेते थे।
22. नतीजे में उस दिन साऊल और यूनतन के सिवा किसी भी इस्राईली के पास तल्वार या नेज़ा नहीं था।
23. फ़िलिस्तियों ने मिक्मास के दर्रे पर क़ब्ज़ा करके वहाँ चौकी क़ाइम की थी।

  1Samuel (13/31)