← 1Samuel (11/31) → |
1. | कुछ देर के बाद अम्मोनी बादशाह नाहस ने अपनी फ़ौज ले कर यबीस-जिलिआद का मुहासरा किया। यबीस के तमाम अफ़राद ने उस से गुज़ारिश की, “हमारे साथ मुआहदा करें तो हम आइन्दा आप के ताबे रहेंगे।” |
2. | नाहस ने जवाब दिया, “ठीक है, लेकिन इस शर्त पर कि मैं हर एक की दहनी आँख निकाल कर तमाम इस्राईल की बेइज़्ज़ती करूँगा!” |
3. | यबीस के बुज़ुर्गों ने दरख़्वास्त की, “हमें एक हफ़्ते की मुहलत दीजिए ताकि हम अपने क़ासिदों को इस्राईल की हर जगह भेजें। अगर कोई हमें बचाने के लिए न आए तो हम हथियार डाल कर शहर को आप के हवाले कर देंगे।” |
4. | क़ासिद साऊल के शहर जिबिआ भी पहुँच गए। जब मक़ामी लोगों ने उन का पैग़ाम सुना तो पूरा शहर फूट फूट कर रोने लगा। |
5. | उस वक़्त साऊल अपने बैलों को खेतों से वापस ला रहा था। उस ने पूछा, “क्या हुआ है? लोग क्यूँ रो रहे हैं?” उसे क़ासिदों का पैग़ाम सुनाया गया। |
6. | तब साऊल पर अल्लाह का रूह नाज़िल हुआ, और उसे सख़्त ग़ुस्सा आया। |
7. | उस ने बैलों का जोड़ा ले कर उन्हें टुकड़े टुकड़े कर दिया। फिर क़ासिदों को यह टुकड़े पकड़ा कर उस ने उन्हें यह पैग़ाम दे कर इस्राईल की हर जगह भेज दिया, “जो साऊल और समूएल के पीछे चल कर अम्मोनियों से लड़ने नहीं जाएगा उस के बैल इसी तरह टुकड़े टुकड़े कर दिए जाएँगे!” यह ख़बर सुन कर लोगों पर रब्ब की दह्शत तारी हो गई, और सब के सब एक दिल हो कर अम्मोनियों से लड़ने के लिए निकले। |
8. | बज़क़ के क़रीब साऊल ने फ़ौज का जाइज़ा लिया। यहूदाह के 30,000 अफ़राद थे और बाक़ी क़बीलों के 3,00,000। |
9. | उन्हों ने यबीस-जिलिआद के क़ासिदों को वापस भेज कर बताया, “कल दोपहर से पहले पहले आप को बचा लिया जाएगा।” वहाँ के बाशिन्दे यह ख़बर सुन कर बहुत ख़ुश हुए। |
10. | उन्हों ने अम्मोनियों को इत्तिला दी, “कल हम हथियार डाल कर शहर के दरवाज़े खोल देंगे। फिर वह कुछ करें जो आप को ठीक लगे।” |
11. | अगले दिन सुब्ह-सवेरे साऊल ने फ़ौज को तीन हिस्सों में तक़्सीम किया। सूरज के तुलू होने से पहले पहले उन्हों ने तीन सिम्तों से दुश्मन की लश्करगाह पर हम्ला किया। दोपहर तक उन्हों ने अम्मोनियों को मार मार कर ख़त्म कर दिया। जो थोड़े बहुत लोग बच गए वह यूँ तित्तर-बित्तर हो गए कि दो भी इकट्ठे न रहे। |
12. | फ़त्ह के बाद लोग समूएल के पास आ कर कहने लगे, “वह लोग कहाँ हैं जिन्हों ने एतिराज़ किया कि साऊल हम पर हुकूमत करे? उन्हें ले आएँ ताकि हम उन्हें मार दें।” |
13. | लेकिन साऊल ने उन्हें रोक दिया। उस ने कहा, “नहीं, आज तो हम किसी भी भाई को सज़ा-ए-मौत नहीं देंगे, क्यूँकि इस दिन रब्ब ने इस्राईल को रिहाई बख़्शी है!” |
14. | फिर समूएल ने एलान किया, “आओ, हम जिल्जाल जा कर दुबारा इस की तस्दीक़ करें कि साऊल हमारा बादशाह है।” |
15. | चुनाँचे तमाम लोगों ने जिल्जाल जा कर रब्ब के हुज़ूर इस की तस्दीक़ की कि साऊल हमारा बादशाह है। इस के बाद उन्हों ने रब्ब के हुज़ूर सलामती की क़ुर्बानियाँ पेश करके बड़ा जश्न मनाया। |
← 1Samuel (11/31) → |