← 1Samuel (10/31) → |
1. | फिर समूएल ने कुप्पी ले कर साऊल के सर पर ज़ैतून का तेल उंडेल दिया और उसे बोसा दे कर कहा, “रब्ब ने आप को अपनी ख़ास मिल्कियत पर राहनुमा मुक़र्रर किया है। |
2. | मेरे पास से चले जाने के बाद जब आप बिन्यमीन की सरहद्द के शहर ज़िल्ज़ख़ के क़रीब राख़िल की क़ब्र के पास से गुज़रेंगे तो आप की मुलाक़ात दो आदमियों से होगी। वह आप से कहेंगे, ‘जो गधियाँ आप ढूँडने गए वह मिल गई हैं। और अब आप के बाप गधियों की नहीं बल्कि आप की फ़िक्र कर रहे हैं। वह कह रहे हैं कि मैं किस तरह अपने बेटे का पता करूँ?’ |
3. | आप आगे जा कर तबूर के बलूत के दरख़्त के पास पहुँचेंगे। वहाँ तीन आदमी आप से मिलेंगे जो अल्लाह की इबादत करने के लिए बैत-एल जा रहे होंगे। एक के पास तीन छोटी बक्रियाँ, दूसरे के पास तीन रोटियाँ और तीसरे के पास मै की मश्क होगी। |
4. | वह आप को सलाम कह कर दो रोटियाँ देंगे। उन की यह रोटियाँ क़बूल करें। |
5. | इस के बाद आप अल्लाह के जिबिआ जाएँगे जहाँ फ़िलिस्तियों की चौकी है। शहर में दाख़िल होते वक़्त आप की मुलाक़ात नबियों के एक जुलूस से होगी जो उस वक़्त पहाड़ी की क़ुर्बानगाह से उतर रहा होगा। उन के आगे आगे सितार, दफ़, बाँसरियाँ और सरोद बजाने वाले चलेंगे, और वह नुबुव्वत की हालत में होंगे। |
6. | रब्ब का रूह आप पर भी नाज़िल होगा, और आप उन के साथ नुबुव्वत करेंगे। उस वक़्त आप फ़र्क़ शख़्स में तब्दील हो जाएँगे। |
7. | जब यह तमाम निशान वुजूद में आएँगे तो वह कुछ करें जो आप के ज़हन में आ जाए, क्यूँकि अल्लाह आप के साथ होगा। |
8. | फिर मेरे आगे जिल्जाल चले जाएँ। मैं भी आऊँगा और वहाँ भस्म होने वाली और सलामती की क़ुर्बानियाँ पेश करूँगा। लेकिन आप को सात दिन मेरा इन्तिज़ार करना है। फिर मैं आ कर आप को बता दूँगा कि आगे क्या करना है।” |
9. | साऊल रवाना होने के लिए समूएल के पास से मुड़ा तो अल्लाह ने उस का दिल तब्दील कर दिया। जिन भी निशानों की पेशगोई समूएल ने की थी वह उसी दिन पूरी हुई। |
10. | जब साऊल और उस का नौकर जिबिआ पहुँचे तो वहाँ उन की मुलाक़ात मज़्कूरा नबियों के जुलूस से हुई। अल्लाह का रूह साऊल पर नाज़िल हुआ, और वह उन के दर्मियान नुबुव्वत करने लगा। |
11. | कुछ लोग वहाँ थे जो बचपन से उस से वाक़िफ़ थे। साऊल को यूँ नबियों के दर्मियान नुबुव्वत करते हुए देख कर वह आपस में कहने लगे, “क़ीस के बेटे के साथ क्या हुआ? क्या साऊल को भी नबियों में शुमार किया जाता है?” |
12. | एक मक़ामी आदमी ने जवाब दिया, “कौन इन का बाप है?” बाद में यह मुहावरा बन गया, “क्या साऊल को भी नबियों में शुमार किया जाता है?” |
13. | नुबुव्वत करने के इख़तिताम पर साऊल पहाड़ी पर चढ़ गया जहाँ क़ुर्बानगाह थी। |
14. | जब साऊल नौकर समेत वहाँ पहुँचा तो उस के चचा ने पूछा, “आप कहाँ थे?” साऊल ने जवाब दिया, “हम गुमशुदा गधियों को ढूँडने के लिए निकले थे। लेकिन जब वह न मिलीं तो हम समूएल के पास गए।” |
15. | चचा बोला, “अच्छा? उस ने आप को क्या बताया?” |
16. | साऊल ने जवाब दिया, “ख़ैर, उस ने कहा कि गधियाँ मिल गई हैं।” लेकिन जो कुछ समूएल ने बादशाह बनने के बारे में बताया था उस का ज़िक्र उस ने न किया। |
17. | कुछ देर के बाद समूएल ने अवाम को बुला कर मिस्फ़ाह में रब्ब के हुज़ूर जमा किया। |
18. | उस ने कहा, “रब्ब इस्राईल का ख़ुदा फ़रमाता है, ‘मैं इस्राईल को मिस्र से निकाल लाया। मैं ने तुम्हें मिस्रियों और उन तमाम सल्तनतों से बचाया जो तुम पर ज़ुल्म कर रही थीं। |
19. | लेकिन गो मैं ने तुम्हें तुम्हारी तमाम मुसीबतों और तंगियों से छुटकारा दिया तो भी तुम ने अपने ख़ुदा को मुस्तरद कर दिया। क्यूँकि तुम ने इस्रार किया कि हम पर बादशाह मुक़र्रर करो! अब अपने अपने क़बीलों और ख़ान्दानों की तर्तीब के मुताबिक़ रब्ब के हुज़ूर खड़े हो जाओ’।” |
20. | यह कह कर समूएल ने तमाम क़बीलों को रब्ब के हुज़ूर पेश किया। क़ुरआ डाला गया तो बिन्यमीन के क़बीले को चुना गया। |
21. | फिर समूएल ने बिन्यमीन के क़बीले के सारे ख़ान्दानों को रब्ब के हुज़ूर पेश किया। मत्री के ख़ान्दान को चुना गया। यूँ क़ुरआ डालते डालते साऊल बिन क़ीस को चुना गया। लेकिन जब साऊल को ढूँडा गया तो वह ग़ाइब था। |
22. | उन्हों ने रब्ब से दरयाफ़्त किया, “क्या साऊल यहाँ पहुँच चुका है?” रब्ब ने जवाब दिया, “वह सामान के बीच में छुप गया है।” |
23. | कुछ लोग दौड़ कर उसे सामान में से निकाल कर अवाम के पास ले आए। जब वह लोगों में खड़ा हुआ तो इतना लम्बा था कि बाक़ी सब लोग सिर्फ़ उस के कंधों तक आते थे। |
24. | समूएल ने कहा, “यह आदमी देखो जिसे रब्ब ने चुन लिया है। अवाम में उस जैसा कोई नहीं है!” तमाम लोग ख़ुशी के मारे “बादशाह ज़िन्दाबाद!” का नारा लगाते रहे। |
25. | समूएल ने बादशाह के हुक़ूक़ तफ़्सील से सुनाए। उस ने सब कुछ किताब में लिख दिया और उसे रब्ब के मक़्दिस में मह्फ़ूज़ रखा। फिर उस ने अवाम को रुख़्सत कर दिया। |
26. | साऊल भी अपने घर चला गया जो जिबिआ में था। कुछ फ़ौजी उस के साथ चले जिन के दिलों को अल्लाह ने छू दिया था। |
27. | लेकिन ऐसे शरीर लोग भी थे जिन्हों ने उस का मज़ाक़ उड़ा कर पूछा, “भला यह किस तरह हमें बचा सकता है?” वह उसे हक़ीर जानते थे और उसे तुह्फ़े पेश करने के लिए भी तय्यार न हुए। लेकिन साऊल उन की बातें नज़रअन्दाज़ करके ख़ामोश ही रहा। |
← 1Samuel (10/31) → |