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1. | सूर का बादशाह हीराम हमेशा दाऊद का अच्छा दोस्त रहा था। जब उसे ख़बर मिली कि दाऊद के बाद सुलेमान को मसह करके बादशाह बनाया गया है तो उस ने अपने सफ़ीरों को उसे मुबारकबाद देने के लिए भेज दिया। |
2. | तब सुलेमान ने हीराम को पैग़ाम भेजा, |
3. | “आप जानते हैं कि मेरे बाप दाऊद रब्ब अपने ख़ुदा के नाम के लिए घर तामीर करना चाहते थे। लेकिन यह उन के बस की बात नहीं थी, क्यूँकि उन के जीते जी इर्दगिर्द के ममालिक उन से जंग करते रहे। गो रब्ब ने दाऊद को तमाम दुश्मनों पर फ़त्ह बख़्शी थी, लेकिन लड़ते लड़ते वह रब्ब का घर न बना सके। |
4. | अब हालात फ़र्क़ हैं : रब्ब मेरे ख़ुदा ने मुझे पूरा सुकून अता किया है। चारों तरफ़ न कोई मुख़ालिफ़ नज़र आता है, न कोई ख़त्रा। |
5. | इस लिए मैं रब्ब अपने ख़ुदा के नाम के लिए घर तामीर करना चाहता हूँ। क्यूँकि मेरे बाप दाऊद के जीते जी रब्ब ने उन से वादा किया था, ‘तेरे जिस बेटे को मैं तेरे बाद तख़्त पर बिठाऊँगा वही मेरे नाम के लिए घर बनाएगा।’ |
6. | अब गुज़ारिश है कि आप के लकड़हारे लुब्नान में मेरे लिए देओदार के दरख़्त काट दें। मेरे लोग उन के साथ मिल कर काम करेंगे। आप के लोगों की मज़्दूरी मैं ही अदा करूँगा। जो कुछ भी आप कहेंगे मैं उन्हें दूँगा। आप तो ख़ूब जानते हैं कि हमारे हाँ सैदा के लक्कड़हारों जैसे माहिर नहीं हैं।” |
7. | जब हीराम को सुलेमान का पैग़ाम मिला तो वह बहुत ख़ुश हो कर बोल उठा, “आज रब्ब की हम्द हो जिस ने दाऊद को इस बड़ी क़ौम पर हुकूमत करने के लिए इतना दानिशमन्द बेटा अता किया है!” |
8. | सुलेमान को हीराम ने जवाब भेजा, “मुझे आप का पैग़ाम मिल गया है, और मैं आप की ज़रूर मदद करूँगा। देओदार और जूनीपर की जितनी लकड़ी आप को चाहिए वह मैं आप के पास पहुँचा दूँगा। |
9. | मेरे लोग दरख़्तों के तने लुब्नान के पहाड़ी इलाक़े से नीचे साहिल तक लाएँगे जहाँ हम उन के बेड़े बाँध कर समुन्दर पर उस जगह पहुँचा देंगे जो आप मुक़र्रर करेंगे। वहाँ हम तनों के रस्से खोल देंगे, और आप उन्हें ले जा सकेंगे। मुआवज़े में आप मुझे इतनी ख़ुराक मुहय्या करें कि मेरे दरबार की ज़रूरियात पूरी हो जाएँ।” |
10. | चुनाँचे हीराम ने सुलेमान को देओदार और जूनीपर की उतनी लकड़ी मुहय्या की जितनी उसे ज़रूरत थी। |
11. | मुआवज़े में सुलेमान उसे सालाना तक़्रीबन 32,50,000 किलोग्राम गन्दुम और तक़्रीबन 4,40,000 लिटर ज़ैतून का तेल भेजता रहा। |
12. | इस के इलावा सुलेमान और हीराम ने आपस में सुलह का मुआहदा किया। यूँ रब्ब ने सुलेमान को हिक्मत अता की जिस तरह उस ने उस से वादा किया था। |
13. | सुलेमान बादशाह ने लुब्नान में यह काम करने के लिए इस्राईल में से 30,000 आदमियों की बेगार पर भर्ती की। उस ने अदूनीराम को उन पर मुक़र्रर किया। हर माह वह बारी बारी 10,000 अफ़राद को लुब्नान में भेजता रहा। यूँ हर मज़्दूर एक माह लुब्नान में और दो माह घर में रहता। |
14. | सुलेमान बादशाह ने लुब्नान में यह काम करने के लिए इस्राईल में से 30,000 आदमियों की बेगार पर भर्ती की। उस ने अदूनीराम को उन पर मुक़र्रर किया। हर माह वह बारी बारी 10,000 अफ़राद को लुब्नान में भेजता रहा। यूँ हर मज़्दूर एक माह लुब्नान में और दो माह घर में रहता। |
15. | सुलेमान ने 80,000 आदमियों को कानों में लगाया ताकि वह पत्थर निकालें। 70,000 अफ़राद यह पत्थर यरूशलम लाते थे। |
16. | उन लोगों पर 3,300 निगरान मुक़र्रर थे। |
17. | बादशाह के हुक्म पर वह कानों से बेहतरीन पत्थर के बड़े बड़े टुकड़े निकाल लाए और उन्हें तराश कर रब्ब के घर की बुन्याद के लिए तय्यार किया। |
18. | जबल के कारीगरों ने सुलेमान और हीराम के कारीगरों की मदद की। उन्हों ने मिल कर पत्थर के बड़े बड़े टुकड़े और लकड़ी को तराश कर रब्ब के घर की तामीर के लिए तय्यार किया। |
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