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1. | बहुत दिन गुज़र गए। फिर काल के तीसरे साल में रब्ब इल्यास से हमकलाम हुआ, “अब जा कर अपने आप को अख़ियब के सामने पेश कर। मैं बारिश का सिलसिला दुबारा शुरू कर दूँगा।” |
2. | चुनाँचे इल्यास अख़ियब से मिलने के लिए इस्राईल चला गया। उस वक़्त सामरिया काल की सख़्त गिरिफ़्त में था, |
3. | इस लिए अख़ियब ने महल के इंचार्ज अबदियाह को बुलाया। (अबदियाह रब्ब का ख़ौफ़ मानता था। |
4. | जब ईज़बिल ने रब्ब के तमाम नबियों को क़त्ल करने की कोशिश की थी तो अबदियाह ने 100 नबियों को दो ग़ारों में छुपा दिया था। हर ग़ार में 50 नबी रहते थे, और अबदियाह उन्हें खाने-पीने की चीज़ें पहुँचाता रहता था।) |
5. | अब अख़ियब ने अबदियाह को हुक्म दिया, “पूरे मुल्क में से गुज़र कर तमाम चश्मों और वादियों का मुआइना करें। शायद कहीं कुछ घास मिल जाए जो हम अपने घोड़ों और ख़च्चरों को खिला कर उन्हें बचा सकें। ऐसा न हो कि हमें खाने की क़िल्लत के बाइस कुछ जानवरों को ज़बह करना पड़े।” |
6. | उन्हों ने मुक़र्रर किया कि अख़ियब कहाँ जाएगा और अबदियाह कहाँ, फिर दोनों एक दूसरे से अलग हो गए। |
7. | चलते चलते अबदियाह को अचानक इल्यास उस की तरफ़ आते हुए नज़र आया। जब अबदियाह ने उसे पहचाना तो वह मुँह के बल झुक कर बोला, “मेरे आक़ा इल्यास, क्या आप ही हैं?” |
8. | इल्यास ने जवाब दिया, “जी, मैं ही हूँ। जाएँ, अपने मालिक को इत्तिला दें कि इल्यास आ गया है।” |
9. | अबदियाह ने एतिराज़ किया, “मुझ से क्या ग़लती हुई है कि आप मुझे अख़ियब से मरवाना चाहते हैं? |
10. | रब्ब आप के ख़ुदा की क़सम, बादशाह ने अपने बन्दों को हर क़ौम और मुल्क में भेज दिया है ताकि आप को ढूँड निकालें। और जहाँ जवाब मिला कि इल्यास यहाँ नहीं है वहाँ लोगों को क़सम खानी पड़ी कि हम इल्यास का खोज लगाने में नाकाम रहे हैं। |
11. | और अब आप चाहते हैं कि मैं बादशाह के पास जा कर उसे बताऊँ कि इल्यास यहाँ है? |
12. | ऐन मुम्किन है कि जब मैं आप को छोड़ कर चला जाऊँ तो रब्ब का रूह आप को उठा कर किसी नामालूम जगह ले जाए। अगर बादशाह मेरी यह इत्तिला सुन कर यहाँ आए और आप को न पाए तो मुझे मार डालेगा। याद रहे कि मैं जवानी से ले कर आज तक रब्ब का ख़ौफ़ मानता आया हूँ। |
13. | क्या मेरे आक़ा तक यह ख़बर नहीं पहुँची कि जब ईज़बिल रब्ब के नबियों को क़त्ल कर रही थी तो मैं ने क्या किया? मैं दो ग़ारों में पचास पचास नबियों को छुपा कर उन्हें खाने-पीने की चीज़ें पहुँचाता रहा। |
14. | और अब आप चाहते हैं कि मैं अख़ियब के पास जा कर उसे इत्तिला दूँ कि इल्यास यहाँ आ गया है? वह मुझे ज़रूर मार डालेगा।” |
15. | इल्यास ने कहा, “रब्ब-उल-अफ़्वाज की हयात की क़सम जिस की ख़िदमत मैं करता हूँ, आज मैं अपने आप को ज़रूर बादशाह को पेश करूँगा।” |
16. | तब अबदियाह चला गया और बादशाह को इल्यास की ख़बर पहुँचाई। यह सुन कर अख़ियब इल्यास से मिलने के लिए आया। |
17. | इल्यास को देखते ही अख़ियब बोला, “ऐ इस्राईल को मुसीबत में डालने वाले, क्या आप वापस आ गए हैं?” |
18. | इल्यास ने एतिराज़ किया, “मैं तो इस्राईल के लिए मुसीबत का बाइस नहीं बना बल्कि आप और आप के बाप का घराना। आप रब्ब के अह्काम छोड़ कर बाल के बुतों के पीछे लग गए हैं। |
19. | अब मैं आप को चैलेंज देता हूँ, तमाम इस्राईल को बुला कर कर्मिल पहाड़ पर जमा करें। साथ साथ बाल देवता के 450 नबियों को और ईज़बिल की मेज़ पर शरीक होने वाले यसीरत देवी के 400 नबियों को भी बुलाएँ।” |
20. | अख़ियब मान गया। उस ने तमाम इस्राईलियों और नबियों को बुलाया। जब वह कर्मिल पहाड़ पर जमा हो गए |
21. | तो इल्यास उन के सामने जा खड़ा हुआ और कहा, “आप कब तक कभी इस तरफ़, कभी उस तरफ़ लंगड़ाते रहेंगे ? अगर रब्ब ख़ुदा है तो सिर्फ़ उसी की पैरवी करें, लेकिन अगर बाल वाहिद ख़ुदा है तो उसी के पीछे लग जाएँ।” लोग ख़ामोश रहे। |
22. | इल्यास ने बात जारी रखी, “रब्ब के नबियों में से सिर्फ़ मैं ही बाक़ी रह गया हूँ। दूसरी तरफ़ बाल देवता के यह 450 नबी खड़े हैं। |
23. | अब दो बैल ले आएँ। बाल के नबी एक को पसन्द करें और फिर उसे टुकड़े टुकड़े करके अपनी क़ुर्बानगाह की लकड़ियों पर रख दें। लेकिन वह लकड़ियों को आग न लगाएँ। मैं दूसरे बैल को तय्यार करके अपनी क़ुर्बानगाह की लकड़ियों पर रख दूँगा। लेकिन मैं भी उन्हें आग नहीं लगाऊँगा। |
24. | फिर आप अपने देवता का नाम पुकारें जबकि मैं रब्ब का नाम पुकारूँगा। जो माबूद क़ुर्बानी को जला कर जवाब देगा वही ख़ुदा है।” तमाम लोग बोले, “आप ठीक कहते हैं।” |
25. | फिर इल्यास ने बाल के नबियों से कहा, “शुरू करें, क्यूँकि आप बहुत हैं। एक बैल को चुन कर उसे तय्यार करें। लेकिन उसे आग मत लगाना बल्कि अपने देवता का नाम पुकारें ताकि वह आग भेज दे।” |
26. | उन्हों ने बैलों में से एक को चुन कर उसे तय्यार किया, फिर बाल का नाम पुकारने लगे। सुब्ह से ले कर दोपहर तक वह मुसल्सल चीख़ते चिल्लाते रहे, “ऐ बाल, हमारी सुन!” साथ साथ वह उस क़ुर्बानगाह के इर्दगिर्द नाचते रहे जो उन्हों ने बनाई थी। लेकिन न कोई आवाज़ सुनाई दी, न किसी ने जवाब दिया। |
27. | दोपहर के वक़्त इल्यास उन का मज़ाक़ उड़ाने लगा, “ज़ियादा ऊँची आवाज़ से बोलें! शायद वह सोचों में ग़र्क़ हो या अपनी हाजत रफ़ा करने के लिए एक तरफ़ गया हो। यह भी हो सकता है कि वह कहीं सफ़र कर रहा हो। या शायद वह गहरी नींद सो गया हो और उसे जगाने की ज़रूरत है।” |
28. | तब वह मज़ीद ऊँची आवाज़ से चीख़ने-चिल्लाने लगे। मामूल के मुताबिक़ वह छुरियों और नेज़ों से अपने आप को ज़ख़्मी करने लगे, यहाँ तक कि ख़ून बहने लगा। |
29. | दोपहर गुज़र गई, और वह शाम के उस वक़्त तक वज्द में रहे जब ग़ल्ला की नज़र पेश की जाती है। लेकिन कोई आवाज़ न सुनाई दी। न किसी ने जवाब दिया, न उन के तमाशे पर तवज्जुह दी। |
30. | फिर इल्यास इस्राईलियों से मुख़ातिब हुआ, “आएँ, सब यहाँ मेरे पास आएँ!” सब क़रीब आए। वहाँ रब्ब की एक क़ुर्बानगाह थी जो गिराई गई थी। अब इल्यास ने वह दुबारा खड़ी की। |
31. | उस ने याक़ूब से निकले हर क़बीले के लिए एक एक पत्थर चुन लिया। (बाद में रब्ब ने याक़ूब का नाम इस्राईल रखा था)। |
32. | इन बारह पत्थरों को ले कर इल्यास ने रब्ब के नाम की ताज़ीम में क़ुर्बानगाह बनाई। इस के इर्दगिर्द उस ने इतना चौड़ा गढ़ा खोदा कि उस में तक़्रीबन 15 लिटर पानी समा सकता था। |
33. | फिर उस ने क़ुर्बानगाह पर लकड़ियों का ढेर लगाया और बैल को टुकड़े टुकड़े करके लकड़ियों पर रख दिया। इस के बाद उस ने हुक्म दिया, “चार घड़े पानी से भर कर क़ुर्बानी और लकड़ियों पर उंडेल दें!” |
34. | जब उन्हों ने ऐसा किया तो उस ने दुबारा ऐसा करने का हुक्म दिया, फिर तीसरी बार। |
35. | आख़िरकार इतना पानी था कि उस ने चारों तरफ़ क़ुर्बानगाह से टपक कर गढ़े को भर दिया। |
36. | शाम के वक़्त जब ग़ल्ला की नज़र पेश की जाती है इल्यास ने क़ुर्बानगाह के पास जा कर बुलन्द आवाज़ से दुआ की, “ऐ रब्ब, ऐ इब्राहीम, इस्हाक़ और इस्राईल के ख़ुदा, आज लोगों पर ज़ाहिर कर कि इस्राईल में तू ही ख़ुदा है और कि मैं तेरा ख़ादिम हूँ। साबित कर कि मैं ने यह सब कुछ तेरे हुक्म के मुताबिक़ किया है। |
37. | ऐ रब्ब, मेरी दुआ सुन! मेरी सुन ताकि यह लोग जान लें कि तू, ऐ रब्ब, ख़ुदा है और कि तू ही उन के दिलों को दुबारा अपनी तरफ़ माइल कर रहा है।” |
38. | अचानक आस्मान से रब्ब की आग नाज़िल हुई। आग ने न सिर्फ़ क़ुर्बानी और लकड़ी को भस्म कर दिया बल्कि क़ुर्बानगाह के पत्थरों और उस के नीचे की मिट्टी को भी। गढ़े में पानी भी एक दम सूख गया। |
39. | यह देख कर इस्राईली औंधे मुँह गिर कर पुकारने लगे, “रब्ब ही ख़ुदा है! रब्ब ही ख़ुदा है!” |
40. | फिर इल्यास ने उन्हें हुक्म दिया, “बाल के नबियों को पकड़ लें। एक भी बचने न पाए!” लोगों ने उन्हें पकड़ लिया तो इल्यास उन्हें नीचे वादी-ए-क़ैसोन में ले गया और वहाँ सब को मौत के घाट उतार दिया। |
41. | फिर इल्यास ने अख़ियब से कहा, “अब जा कर कुछ खाएँ और पिएँ, क्यूँकि मूसलाधार बारिश का शोर सुनाई दे रहा है।” |
42. | चुनाँचे अख़ियब खाने-पीने के लिए चला गया जबकि इल्यास कर्मिल पहाड़ की चोटी पर चढ़ गया। वहाँ उस ने झुक कर अपने सर को दोनों घुटनों के बीच में छुपा लिया। |
43. | अपने नौकर को उस ने हुक्म दिया, “जाओ, समुन्दर की तरफ़ देखो।” नौकर गया और समुन्दर की तरफ़ देखा, फिर वापस आ कर इल्यास को इत्तिला दी, “कुछ भी नज़र नहीं आता।” लेकिन इल्यास ने उसे दुबारा देखने के लिए भेज दिया। इस दफ़ा भी कुछ मालूम न हो सका। सात बार इल्यास ने नौकर को देखने के लिए भेजा। |
44. | आख़िरकार जब नौकर सातवीं दफ़ा गया तो उस ने वापस आ कर इत्तिला दी, “एक छोटा सा बादल समुन्दर में से निकल कर ऊपर चढ़ रहा है। वह आदमी के हाथ के बराबर है।” तब इल्यास ने हुक्म दिया, “जाओ, अख़ियब को इत्तिला दो, ‘घोड़ों को फ़ौरन रथ में जूत कर घर चले जाएँ, वर्ना बारिश आप को रोक लेगी’।” |
45. | नौकर इत्तिला देने चला गया तो जल्द ही आँधी आई, आस्मान पर काले काले बादल छा गए और मूसलाधार बारिश बरसने लगी। अख़ियब जल्दी से रथ पर सवार हो कर यज़्रएल के लिए रवाना हो गया। |
46. | उस वक़्त रब्ब ने इल्यास को ख़ास ताक़त दी। सफ़र के लिए कमरबस्ता हो कर वह अख़ियब के रथ के आगे आगे दौड़ कर उस से पहले यज़्रएल पहुँच गया। |
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