1John (4/5)  

1. अज़ीज़ो, हर एक रूह का यक़ीन मत करना बल्कि रूहों को परख कर मालूम करें कि वह अल्लाह से हैं या नहीं, क्यूँकि मुतअद्दिद झूटे नबी दुनिया में निकले हैं।
2. इस से आप अल्लाह के रूह को पहचान लेते हैं : जो भी रूह इस का एतिराफ़ करती है कि ईसा मसीह मुजस्सम हो कर आया है वह अल्लाह से है।
3. लेकिन जो भी रूह ईसा के बारे में यह तस्लीम न करे वह अल्लाह से नहीं है। यह मुख़ालिफ़-ए-मसीह की रूह है जिस के बारे में आप को ख़बर मिली कि वह आने वाला है बल्कि इस वक़्त दुनिया में आ चुका है।
4. लेकिन आप पियारे बच्चो, अल्लाह से हैं और उन पर ग़ालिब आ गए हैं। क्यूँकि जो आप में है वह उस से बड़ा है जो दुनिया में है।
5. यह लोग दुनिया से हैं और इस लिए दुनिया की बातें करते हैं और दुनिया उन की सुनती है।
6. हम तो अल्लाह से हैं और जो अल्लाह को जानता है वह हमारी सुनता है। लेकिन जो अल्लाह से नहीं है वह हमारी नहीं सुनता। यूँ हम सच्चाई की रूह और फ़रेब देने वाली रूह में इमतियाज़ कर सकते हैं।
7. अज़ीज़ो, आएँ हम एक दूसरे से मुहब्बत रखें। क्यूँकि मुहब्बत अल्लाह की तरफ़ से है, और जो मुहब्बत रखता है वह अल्लाह से पैदा हो कर उस का फ़र्ज़न्द बन गया है और अल्लाह को जानता है।
8. जो मुहब्बत नहीं रखता वह अल्लाह को नहीं जानता, क्यूँकि अल्लाह मुहब्बत है।
9. इस में अल्लाह की मुहब्बत हमारे दर्मियान ज़ाहिर हुई कि उस ने अपने इक्लौते फ़र्ज़न्द को दुनिया में भेज दिया ताकि हम उस के ज़रीए जिएँ।
10. यही मुहब्बत है, यह नहीं कि हम ने अल्लाह से मुहब्बत की बल्कि यह कि उस ने हम से मुहब्बत करके अपने फ़र्ज़न्द को भेज दिया ताकि वह हमारे गुनाहों को मिटाने के लिए कफ़्फ़ारा दे।
11. अज़ीज़ो, चूँकि अल्लाह ने हमें इतना पियार किया इस लिए लाज़िम है कि हम भी एक दूसरे को पियार करें।
12. किसी ने भी अल्लाह को नहीं देखा। लेकिन जब हम एक दूसरे को पियार करते हैं तो अल्लाह हमारे अन्दर बसता है और उस की मुहब्बत हमारे अन्दर तक्मील पाती है।
13. हम किस तरह पहचान लेते हैं कि हम उस में रहते हें और वह हम में? इस तरह कि उस ने हमें अपना रूह बख़्श दिया है।
14. और हम ने यह बात देख ली और इस की गवाही देते हैं कि ख़ुदा बाप ने अपने फ़र्ज़न्द को दुनिया का नजातदिहन्दा बनने के लिए भेज दिया है।
15. अगर कोई इक़्रार करे कि ईसा अल्लाह का फ़र्ज़न्द है तो अल्लाह उस में रहता है और वह अल्लाह में।
16. और ख़ुद हम ने वह मुहब्बत जान ली है और उस पर ईमान लाए हैं जो अल्लाह हम से रखता है। अल्लाह मुहब्बत ही है। जो भी मुहब्बत में क़ाइम रहता है वह अल्लाह में रहता है और अल्लाह उस में।
17. इसी तरह मुहब्बत हमारे दर्मियान तक्मील तक पहुँचती है, और यूँ हम अदालत के दिन पूरे एतिमाद के साथ खड़े हो सकेंगे, क्यूँकि जैसे वह है वैसे ही हम भी इस दुनिया में हैं।
18. मुहब्बत में ख़ौफ़ नहीं होता बल्कि कामिल मुहब्बत ख़ौफ़ को भगा देती है, क्यूँकि ख़ौफ़ के पीछे सज़ा का डर है। जो डरता है उस की मुहब्बत तक्मील तक नहीं पहुँची।
19. हम इस लिए मुहब्बत रखते हैं कि अल्लाह ने पहले हम से मुहब्बत रखी।
20. अगर कोई कहे, “मैं अल्लाह से मुहब्बत रखता हूँ” लेकिन अपने भाई से नफ़रत करे तो वह झूटा है। क्यूँकि जो अपने भाई से जिसे उस ने देखा है मुहब्बत नहीं रखता वह किस तरह अल्लाह से मुहब्बत रख सकता है जिसे उस ने नहीं देखा?
21. जो हुक्म मसीह ने हमें दिया है वह यह है, जो अल्लाह से मुहब्बत रखता है वह अपने भाई से भी मुहब्बत रखे।

  1John (4/5)