1Corinthians (9/16)  

1. क्या मैं आज़ाद नहीं? क्या मैं मसीह का रसूल नहीं? क्या मैं ने ईसा को नहीं देखा जो हमारा ख़ुदावन्द है? क्या आप ख़ुदावन्द में मेरी मेहनत का फल नहीं हैं?
2. अगरचि मैं दूसरों के नज़्दीक मसीह का रसूल नहीं, लेकिन आप के नज़्दीक तो ज़रूर हूँ। ख़ुदावन्द में आप ही मेरी रिसालत पर मुहर हैं।
3. जो मेरी बाज़पुर्स करना चाहते हैं उन्हें मैं अपने दिफ़ा में कहता हूँ,
4. क्या हमें खाने-पीने का हक़ नहीं?
5. क्या हमें हक़ नहीं कि शादी करके अपनी बीवी को साथ लिए फिरें? दूसरे रसूल और ख़ुदावन्द के भाई और कैफ़ा तो ऐसा ही करते हैं।
6. क्या मुझे और बर्नबास ही को अपनी ख़िदमत के अज्र में कुछ पाने का हक़ नहीं?
7. कौन सा फ़ौजी अपने ख़र्च पर जंग लड़ता है? कौन अंगूर का बाग़ लगा कर उस के फल से अपना हिस्सा नहीं पाता? या कौन रेवड़ की गल्लाबानी करके उस के दूध से अपना हिस्सा नहीं पाता?
8. क्या मैं यह फ़क़त इन्सानी सोच के तहत कह रहा हूँ? क्या शरीअत भी यही नहीं कहती?
9. तौरेत में लिखा है, “जब तू फ़सल गाहने के लिए उस पर बैल चलने देता है तो उस का मुँह बाँध कर न रखना।” क्या अल्लाह सिर्फ़ बैलों की फ़िक्र करता है
10. या वह हमारी ख़ातिर यह फ़रमाता है? हाँ, ज़रूर हमारी ख़ातिर क्यूँकि हल चलाने वाला इस उम्मीद पर चलाता है कि उसे कुछ मिलेगा। इसी तरह गाहने वाला इस उम्मीद पर गाहता है कि वह पैदावार में से अपना हिस्सा पाएगा।
11. हम ने आप के लिए रुहानी बीज बोया है। तो क्या यह नामुनासिब है अगर हम आप से जिस्मानी फ़सल काटें?
12. अगर दूसरों को आप से अपना हिस्सा लेने का हक़ है तो क्या हमारा उन से ज़ियादा हक़ नहीं बनता? लेकिन हम ने इस हक़ से फ़ाइदा नहीं उठाया। हम सब कुछ बर्दाश्त करते हैं ताकि मसीह की ख़ुशख़बरी के लिए किसी भी तरह से रुकावट का बाइस न बनें।
13. क्या आप नहीं जानते कि बैत-उल-मुक़द्दस में ख़िदमत करने वालों की ज़रूरियात बैत-उल-मुक़द्दस ही से पूरी की जाती हैं? जो क़ुर्बानियाँ चढ़ाने के काम में मसरूफ़ रहते हैं उन्हें क़ुर्बानियों से ही हिस्सा मिलता है।
14. इसी तरह ख़ुदावन्द ने मुक़र्रर किया है कि इंजील की ख़ुशख़बरी की मुनादी करने वालों की ज़रूरियात उन से पूरी की जाएँ जो इस ख़िदमत से फ़ाइदा उठाते हैं।
15. लेकिन मैं ने किसी तरह भी इस से फ़ाइदा नहीं उठाया, और न इस लिए लिखा है कि मेरे साथ ऐसा सुलूक किया जाए। नहीं, इस से पहले कि फ़ख़र करने का मेरा यह हक़ मुझ से छीन लिया जाए बेहतर यह है कि मैं मर जाऊँ।
16. लेकिन अल्लाह की ख़ुशख़बरी की मुनादी करना मेरे लिए फ़ख़र का बाइस नहीं। मैं तो यह करने पर मज्बूर हूँ। मुझ पर अफ़्सोस अगर इस ख़ुशख़बरी की मुनादी न करूँ।
17. अगर मैं यह अपनी मर्ज़ी से करता तो फिर अज्र का मेरा हक़ बनता। लेकिन ऐसा नहीं है बल्कि ख़ुदा ही ने मुझे यह ज़िम्मादारी दी है।
18. तो फिर मेरा अज्र क्या है? यह कि मैं इंजील की ख़ुशख़बरी मुफ़्त सुनाऊँ और अपने उस हक़ से फ़ाइदा न उठाऊँ जो मुझे उस की मुनादी करने से हासिल है।
19. अगरचि मैं सब लोगों से आज़ाद हूँ फिर भी मैं ने अपने आप को सब का ग़ुलाम बना लिया ताकि ज़ियादा से ज़ियादा लोगों को जीत लूँ।
20. में यहूदियों के दर्मियान यहूदी की मानिन्द बना ताकि यहूदियों को जीत लूँ। मूसवी शरीअत के तहत ज़िन्दगी गुज़ारने वालों के दर्मियान मैं उन की मानिन्द बना ताकि उन्हें जीत लूँ, गो मैं शरीअत के मा-तहत नहीं।
21. मूसवी शरीअत के बग़ैर ज़िन्दगी गुज़ारने वालों के दर्मियान मैं उन ही की मानिन्द बना ताकि उन्हें जीत लूँ। इस का मतलब यह नहीं कि मैं अल्लाह की शरीअत के ताबे नहीं हूँ। हक़ीक़त में मैं मसीह की शरीअत के तहत ज़िन्दगी गुज़ारता हूँ।
22. मैं कमज़ोरों के लिए कमज़ोर बना ताकि उन्हें जीत लूँ। सब के लिए मैं सब कुछ बना ताकि हर मुम्किन तरीक़े से बाज़ को बचा सकूँ।
23. जो कुछ भी करता हूँ अल्लाह की ख़ुशख़बरी के वास्ते करता हूँ ताकि इस की बरकात में शरीक हो जाऊँ।
24. क्या आप नहीं जानते कि स्टेडियम में दौड़ते तो सब ही हैं, लेकिन इनआम एक ही शख़्स हासिल करता है? चुनाँचे ऐसे दौड़ें कि आप ही जीतें।
25. खेलों में शरीक होने वाला हर शख़्स अपने आप को सख़्त नज़्म-ओ-ज़ब्त का पाबन्द रखता है। वह फ़ानी ताज पाने के लिए ऐसा करते हैं, लेकिन हम ग़ैरफ़ानी ताज पाने के लिए।
26. चुनाँचे मैं हर वक़्त मन्ज़िल-ए-मक़सूद को पेश-ए-नज़र रखते हुए दौड़ता हूँ। और मैं इसी तरह बाक्सिंग भी करता हूँ, मैं हवा में मुक्के नहीं मारता बल्कि निशाने को।
27. मैं अपने बदन को मारता कूटता और इसे अपना ग़ुलाम बनाता हूँ, ऐसा न हो कि दूसरों में मुनादी करके ख़ुद नामक़्बूल ठहरूँ।

  1Corinthians (9/16)