← 1Corinthians (5/16) → |
1. | यह बात हमारे कानों तक पहुँची है कि आप के दर्मियान ज़िनाकारी हो रही है, बल्कि ऐसी ज़िनाकारी जिसे ग़ैरयहूदी भी रवा नहीं समझते। कहते हैं कि आप में से किसी ने अपनी सौतेली माँ से शादी कर रखी है। |
2. | कमाल है कि आप इस फ़ेल पर नादिम नहीं बल्कि फूले फिर रहे हैं! क्या मुनासिब न होता कि आप दुख मह्सूस करके इस बदी के मुर्तक़िब को अपने दर्मियान से ख़ारिज कर देते? |
3. | गो मैं जिस्म के लिहाज़ से आप के पास नहीं, लेकिन रूह के लिहाज़ से ज़रूर हूँ। और मैं उस शख़्स पर फ़त्वा इस तरह दे चुका हूँ जैसे कि मैं आप के दर्मियान मौजूद हूँ। |
4. | जब आप हमारे ख़ुदावन्द ईसा के नाम में जमा होंगे तो मैं रूह में आप के साथ हूँगा और हमारे ख़ुदावन्द ईसा की क़ुद्रत भी। |
5. | उस वक़्त ऐसे शख़्स को इब्लीस के हवाले करें ताकि सिर्फ़ उस का जिस्म हलाक हो जाए, लेकिन उस की रूह ख़ुदावन्द के दिन रिहाई पाए। |
6. | आप का फ़ख़र करना अच्छा नहीं। क्या आप को मालूम नहीं कि जब हम थोड़ा सा ख़मीर ताज़ा गुंधे हुए आटे में मिलाते हैं तो वह सारे आटे को ख़मीर कर देता है? |
7. | अपने आप को ख़मीर से पाक-साफ़ करके ताज़ा गुंधा हुआ आटा बन जाएँ। दरहक़ीक़त आप हैं भी पाक, क्यूँकि हमारा ईद-ए-फ़सह का लेला मसीह हमारे लिए ज़बह हो चुका है। |
8. | इस लिए आइए हम पुराने ख़मीरी आटे यानी बुराई और बदी को दूर करके ताज़ा गुंधे हुए आटे यानी ख़ुलूस और सच्चाई की रोटियाँ बना कर फ़सह की ईद मनाएँ। |
9. | मैं ने ख़त में लिखा था कि आप ज़िनाकारों से ताल्लुक़ न रखें। |
10. | मेरा मतलब यह नहीं था कि आप इस दुनिया के ज़िनाकारों से ताल्लुक़ मुन्क़ते कर लें या इस दुनिया के लालचियों, लुटेरों और बुतपरस्तों से। अगर आप ऐसा करते तो लाज़िम होता कि आप दुनिया ही से कूच कर जाते। |
11. | नहीं, मेरा मतलब यह था कि आप ऐसे शख़्स से ताल्लुक़ न रखें जो मसीह में तो भाई कहलाता है मगर है वह ज़िनाकार या लालची या बुतपरस्त या गाली-गलोच करने वाला या शराबी या लुटेरा। ऐसे शख़्स के साथ खाना तक भी न खाएँ। |
12. | मैं उन लोगों की अदालत क्यूँ करता फिरूँ जो ईमानदारों की जमाअत से बाहर हैं? क्या आप ख़ुद भी सिर्फ़ उन की अदालत नहीं करते जो जमाअत के अन्दर हैं? |
13. | बाहर वालों की अदालत तो ख़ुदा ही करेगा। कलाम-ए-मुक़द्दस में यूँ लिखा है, ‘शरीर को अपने दर्मियान से निकाल दो।’ |
← 1Corinthians (5/16) → |