1Corinthians (2/16)  

1. भाइयो, मुझ पर भी ग़ौर करें। जब मैं आप के पास आया तो मैं ने आप को अल्लाह का भेद मोटे मोटे अल्फ़ाज़ में या फ़ल्सफ़ियाना हिक्मत का इज़्हार करते हुए न सुनाया।
2. वजह क्या थी? यह कि मैं ने इरादा कर रखा था कि आप के दर्मियान होते हुए मैं ईसा मसीह के सिवा और कुछ न जानूँ, ख़ासकर यह कि उसे मस्लूब किया गया।
3. हाँ मैं कमज़ोरहाल, ख़ौफ़ खाते और बहुत थरथराते हुए आप के पास आया।
4. और गुफ़्तगु और मुनादी करते हुए मैं ने दुनियावी हिक्मत के बड़े ज़ोरदार अल्फ़ाज़ की मारिफ़त आप को क़ाइल करने की कोशिश न की, बल्कि रूह-उल-क़ुद्स और अल्लाह की क़ुद्रत ने मेरी बातों की तस्दीक़ की,
5. ताकि आप का ईमान इन्सानी हिक्मत पर मब्नी न हो बल्कि अल्लाह की क़ुद्रत पर।
6. दानाई की बातें हम उस वक़्त करते हैं जब कामिल ईमान रखने वालों के दर्मियान होते हैं। लेकिन यह दानाई मौजूदा जहान की नहीं और न इस जहान के हाकिमों ही की है जो मिटने वाले हैं।
7. बल्कि हम ख़ुदा ही की दानाई की बातें करते हैं जो भेद की सूरत में छुपी रही है। अल्लाह ने तमाम ज़मानों से पेशतर मुक़र्रर किया है कि यह दानाई हमारे जलाल का बाइस बने।
8. इस जहान के किसी भी हाकिम ने इस दानाई को न पहचाना, क्यूँकि अगर वह पहचान लेते तो फिर वह हमारे जलाली ख़ुदावन्द को मस्लूब न करते।
9. दानाई के बारे में पाक नविश्ते भी यही कहते हैं, “जो न किसी आँख ने देखा, न किसी कान ने सुना, और न इन्सान के ज़हन में आया, उसे अल्लाह ने उन के लिए तय्यार कर दिया जो उस से मुहब्बत रखते हैं।”
10. लेकिन अल्लाह ने यही कुछ अपने रूह की मारिफ़त हम पर ज़ाहिर किया क्यूँकि उस का रूह हर चीज़ का खोज लगाता है, यहाँ तक कि अल्लाह की गहराइयों का भी।
11. इन्सान के बातिन से कौन वाक़िफ़ है सिवा-ए-इन्सान की रूह के जो उस के अन्दर है? इसी तरह अल्लाह से ताल्लुक़ रखने वाली बातों को कोई नहीं जानता सिवा-ए-अल्लाह के रूह के।
12. और हमें दुनिया की रूह नहीं मिली बल्कि वह रूह जो अल्लाह की तरफ़ से है ताकि हम उस की अताकरदा बातों को जान सकें।
13. यही कुछ हम बयान करते हैं, लेकिन ऐसे अल्फ़ाज़ में नहीं जो इन्सानी हिक्मत से हमें सिखाया गया बल्कि रूह-उल-क़ुद्स से। यूँ हम रुहानी हक़ीक़तों की तश्रीह रुहानी लोगों के लिए करते हैं।
14. जो शख़्स रुहानी नहीं है वह अल्लाह के रूह की बातों को क़बूल नहीं करता क्यूँकि वह उस के नज़्दीक बेवुक़ूफ़ी हैं। वह उन्हें पहचान नहीं सकता क्यूँकि उन की परख सिर्फ़ रुहानी शख़्स ही कर सकता है।
15. वही हर चीज़ परख लेता है जबकि उस की अपनी परख कोई नहीं कर सकता।
16. चुनाँचे पाक कलाम में लिखा है, “किस ने रब्ब की सोच को जाना? कौन उस को तालीम देगा?” लेकिन हम मसीह की सोच रखते हैं।

  1Corinthians (2/16)