1Chronicles (13/29)  

1. दाऊद ने तमाम अफ़्सरों से मश्वरा किया। उन में हज़ार हज़ार और सौ सौ फ़ौजियों पर मुक़र्रर अफ़्सर शामिल थे।
2. फिर उस ने इस्राईल की पूरी जमाअत से कहा, “अगर आप को मन्ज़ूर हो और रब्ब हमारे ख़ुदा की मर्ज़ी हो तो आएँ हम पूरे मुल्क के इस्राईली भाइयों को दावत दें कि आ कर हमारे साथ जमा हो जाएँ। वह इमाम और लावी भी शरीक हों जो अपने अपने शहरों और चरागाहों में बसते हैं।
3. फिर हम अपने ख़ुदा के अह्द का सन्दूक़ दुबारा अपने पास वापस लाएँ, क्यूँकि साऊल के दौर-ए-हुकूमत में हम उस की फ़िक्र नहीं करते थे।”
4. पूरी जमाअत मुत्तफ़िक़ हुई, क्यूँकि यह मन्सूबा सब को दुरुस्त लगा।
5. चुनाँचे दाऊद ने पूरे इस्राईल को जुनूब में मिस्र के सैहूर से ले कर शिमाल में लबो-हमात तक बुलाया ताकि सब मिल कर अल्लाह के अह्द का सन्दूक़ क़िर्यत-यारीम से यरूशलम ले जाएँ।
6. फिर वह उन के साथ यहूदाह के बाला यानी क़िर्यत-यारीम गया ताकि रब्ब ख़ुदा का सन्दूक़ उठा कर यरूशलम ले जाएँ, वही सन्दूक़ जिस पर रब्ब के नाम का ठप्पा लगा है और जहाँ वह सन्दूक़ के ऊपर करूबी फ़रिश्तों के दर्मियान तख़्तनशीन है।
7. क़िर्यत-यारीम पहुँच कर लोगों ने अल्लाह के सन्दूक़ को अबीनदाब के घर से निकाल कर एक नई बैलगाड़ी पर रख दिया, और उज़्ज़ा और अखियो उसे यरूशलम की तरफ़ ले जाने लगे।
8. दाऊद और तमाम इस्राईली गाड़ी के पीछे चल पड़े। सब अल्लाह के हुज़ूर पूरे ज़ोर से ख़ुशी मनाने लगे। जूनीपर की लकड़ी के मुख़्तलिफ़ साज़ भी बजाए जा रहे थे। फ़िज़ा सितारों, सरोदों, दफ़ों, झाँझों और तुरमों की आवाज़ों से गूँज उठी।
9. वह गन्दुम गाहने की एक जगह पर पहुँच गए जिस के मालिक का नाम कैदून था। वहाँ बैल अचानक बेकाबू हो गए। उज़्ज़ा ने जल्दी से अह्द का सन्दूक़ पकड़ लिया ताकि वह गिर न जाए।
10. उसी लम्हे रब्ब का ग़ज़ब उस पर नाज़िल हुआ, क्यूँकि उस ने अह्द के सन्दूक़ को छूने की जुरअत की थी। वहीं अल्लाह के हुज़ूर उज़्ज़ा गिर कर हलाक हुआ।
11. दाऊद को बड़ा रंज हुआ कि रब्ब का ग़ज़ब उज़्ज़ा पर यूँ टूट पड़ा है। उस वक़्त से उस जगह का नाम परज़-उज़्ज़ा यानी ‘उज़्ज़ा पर टूट पड़ना’ है।
12. उस दिन दाऊद को अल्लाह से ख़ौफ़ आया। उस ने सोचा, “मैं किस तरह अल्लाह का सन्दूक़ अपने पास पहुँचा सकूँगा?”
13. चुनाँचे उस ने फ़ैसला किया कि हम अहद का सन्दूक़ यरूशलम नहीं ले जाएँगे बल्कि उसे ओबेद-अदोम जाती के घर में मह्फ़ूज़ रखेंगे।
14. वहाँ वह तीन माह तक पड़ा रहा। इन तीन महीनों के दौरान रब्ब ने ओबेद-अदोम के घराने और उस की पूरी मिल्कियत को बर्कत दी।

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