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1. | हे यहोवा, तू अपने देश पर प्रसन्न हुआ, याकूब को बन्धुआई से लौटा ले आया है। |
2. | तू ने अपनी प्रजा के अधर्म को क्षमा किया है; और उसके सब पापों को ढांप दिया है। |
3. | तू ने अपने रोष को शान्त किया है; और अपने भड़के हुए कोप को दूर किया है।। |
4. | हे हमारे उद्धारकर्ता परमेश्वर हम को फेर, और अपना क्रोध हम पर से दूर कर! |
5. | क्या तू हम पर सदा कोपित रहेगा? क्या तू पीढ़ी से पीढ़ी तक कोप करता रहेगा? |
6. | क्या तू हम को फिर न जिलाएगा, कि तेरी प्रजा तुझ में आनन्द करे? |
7. | हे यहोवा अपनी करूणा हमें दिखा, और तू हमारा उद्धार कर।। |
8. | मैं कान लगाए रहूंगा, कि ईश्वर यहोवा क्या कहता है, वह तो अपनी प्रजा से जो उसके भक्त है, शान्ति की बातें कहेगा; परन्तु वे फिर के मूर्खता न करने लगें। |
9. | निश्चय उसके डरवैयों के उद्धार का समय निकट है, तब हमारे देश में महिमा का निवास होगा।। |
10. | करूणा और सच्चाई आपस में मिल गई हैं; धर्म और मेल ने आपस में चुम्बन किया है। |
11. | पृथ्वी में से सच्चाई उगती और स्वर्ग से धर्म झुकता है। |
12. | फिर यहोवा उत्तम पदार्थ देगा, और हमारी भूमि अपनी उपज देगी। |
13. | धर्म उसके आगे आगे चलेगा, और उसके पांवों के चिन्हों को हमारे लिये मार्ग बनाएगा।। |
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