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| 1. | हे इस्त्राएल के चरवाहे, तू जो यूसुफ की अगुवाई भेड़ों की सी करता है, कान लगा! तू जो करूबों पर विराजमान है, अपना तेज दिखा! | 
| 2. | एप्रैम, बिन्यामीन, और मनश्शे के साम्हने अपना पराक्रम दिखा कर, हमारा उद्धार करने को आ! | 
| 3. | हे परमेश्वर, हम को ज्यों का त्यों कर दे; और अपने मुख का प्रकाश चमका, तब हमारा उद्धार हो जाएगा! | 
| 4. | हे सेनाओं के परमेश्वर यहोवा, तू कब तक अपनी प्रजा की प्रार्थना पर क्रोधित रहेगा? | 
| 5. | तू ने आंसुओं को उनका आहार कर दिया, और मटके भर भर के उन्हें आंसु पिलाए हैं। | 
| 6. | तू हमें हमारे पड़ोसियों के झगड़ने का कारण कर देता है; और हमारे शत्रु मनमाने ठट्ठा करते हैं।। | 
| 7. | हे सेनाओं के परमेश्वर, हम को ज्यों का त्यों कर दे; और अपने मुख का प्रकाश हम पर चमका, तब हमारा उद्धार हो जाएगा।। | 
| 8. | तू मिस्त्र से एक दाखलता ले आया; और अन्यजातियों को निकाल कर उसे लगा दिया। | 
| 9. | तू ने उसके लिये स्थान तैयार किया है; और उसने जड़ पकड़ी और फैल कर देश को भर दिया। | 
| 10. | उसकी छाया पहाड़ों पर फैल गई, और उसकी डालियां ईश्वर के देवदारों के समान हुईं; | 
| 11. | उसकी शाखाएं समुद्र तक बढ़ गई, और उसके अंकुर महानद तक फैल गए। | 
| 12. | फिर तू ने उसके बाड़ों को क्यों गिरा दिया, कि सब बटोही उसके फलों को तोड़ते हैं? | 
| 13. | जंगली सूअर उसको नाश किए डालता है, और मैदान के सब पशु उसे चर जाते हैं।। | 
| 14. | हे सेनाओं के परमेश्वर, फिर आ! स्वर्ग से ध्यान देकर देख, और इस दाखलता की सुधि ले, | 
| 15. | ये पौधा तू ने अपने दाहिने हाथ से लगाया, और जो लता की शाखा तू ने अपने लिये दृढ़ की है। | 
| 16. | वह जल गई, वह कट गई है; तेरी घुड़की से वे नाश होते हैं। | 
| 17. | तेरे दाहिने हाथ के सम्भाले हुअ पुरूष पर तेरा हाथ रखा रहे, उस आदमी पर, जिसे तू ने अपने लिये दृढ़ किया है। | 
| 18. | तब हम लोग तुझ से न मुड़ेंगे: तू हम को जिला, और हम तुझ से प्रार्थना कर सकेंगे। | 
| 19. | हे सेनाओं के परमेश्वर यहोवा, हम को ज्यों का त्यों कर दे! और अपने मुख का प्रकाश हम पर चमका, तब हमारा उद्धार हो जाएगा! | 
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