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1. | जैसे हरिणी नदी के जल के लिये हांफती है, वैसे ही, हे परमेश्वर, मैं तेरे लिये हांफता हूं। |
2. | जीवते ईश्वर परमेश्वर का मैं प्यासा हूं, मैं कब जा कर परमेश्वर को अपना मुंह दिखाऊंगा? |
3. | मेरे आंसू दिन और रात मेरा आहार हुए हैं; और लोग दिन भर मुझ से कहते रहते हैं, तेरा परमेश्वर कहां है? |
4. | मैं भीड़ के संग जाया करता था, मैं जयजयकार और धन्यवाद के साथ उत्सव करने वाली भीड़ के बीच में परमेश्वर के भवन को धीरे धीरे जाया करता था; यह स्मरण कर के मेरा प्राण शोकित हो जाता है। |
5. | हे मेरे प्राण, तू क्यों गिरा जाता है? और तू अन्दर ही अन्दर क्यों व्याकुल है? परमेश्वर पर आशा लगाए रह; क्योंकि मैं उसके दर्शन से उद्धार पाकर फिर उसका धन्यवाद करूंगा।। |
6. | हे मेरे परमेश्वर; मेरा प्राण मेरे भीतर गिरा जाता है, इसलिये मैं यर्दन के पास के देश से और हर्मोन के पहाड़ों और मिसगार की पहाड़ी के ऊपर से तुझे स्मरण करता हूं। |
7. | तेरी जलधाराओं का शब्द सुनकर जल, जल को पुकारता है; तेरी सारी तरंगों और लहरों में मैं डूब गया हूं। |
8. | तौभी दिन को यहोवा अपनी शक्ति और करूणा प्रगट करेगा; और रात को भी मैं उसका गीत गाऊंगा, और अपने जीवन दाता ईश्वर से प्रार्थना करूंगा।। |
9. | मैं ईश्वर से जो मेरी चट्टान है कहूंगा, तू मुझे क्यों भूल गया? मैं शत्रु के अन्धेर के मारे क्यों शोक का पहिरावा पहिने हुए चलता फिरता हूं? |
10. | मेरे सताने वाले जो मेरी निन्दा करते हैं मानो उस में मेरी हडि्डयां चूर चूर होती हैं, मानो कटार से छिदी जाती हैं, क्योंकि वे दिन भर मुझ से कहते रहते हैं, तेरा परमेश्वर कहां है? |
11. | हे मेरे प्राण तू क्यों गिरा जाता है? तू अन्दर ही अन्दर क्यों व्याकुल है? परमेश्वर पर भरोसा रख; क्योंकि वह मेरे मुख की चमक और मेरा परमेश्वर है, मैं फिर उसका धन्यवाद करूंगा।। |
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