Psalms (144/150)  

1. धन्य है यहोवा, जो मेरी चट्टान है, वह मेरे हाथों को लड़ने, और युद्ध करने के लिये तैयार करता है।
2. वह मेरे लिये करूणानिधान और गढ़, ऊंचा स्थान और छुड़ाने वाला है, वह मेरी ढ़ाल और शरण स्थान है, जो मेरी प्रजा को मेरे वश में कर देता है।।
3. हे यहोवा, मनुष्य क्या है कि तू उसकी सुधि लेता है, या आदमी क्या है, कि तू उसकी कुछ चिन्ता करता है?
4. मनुष्य तो सांस के समान है; उसके दिन ढलती हुई छाया के समान हैं।।
5. हे यहोवा, अपने स्वर्ग को नीचा कर के उतर आ! पहाड़ों को छू तब उन से धुंआं उठेगा!
6. बिजली कड़का कर उन को तितर बितर कर दे, अपने तीर चला कर उन को घबरा दे!
7. अपने हाथ ऊपर से बढ़ा कर मुझे महासागर से उबार, अर्थात परदेशियों के वश से छुड़ा।
8. उनके मुंह से तो व्यर्थ बातें निकलती हैं, और उनके दाहिने हाथ से धोखे के काम होते हैं।।
9. हे परमेश्वर, मैं तेरी स्तुति का नया गीत गाऊंगा; मैं दस तार वाली सारंगी बजा कर तेरा भजन गाऊंगा।
10. तू राजाओं का उद्धार करता है, और अपने दास दाऊद को तलवार की मार से बचाता है।
11. तू मुझ को उबार और परदेशियों के वश से छुड़ा ले, जिन के मुंह से व्यर्थ बातें निकलती हैं, और जिनका दाहिना हाथ झूठ का दाहिना हाथ है।।
12. जब हमारे बेटे जवानी के समय पौधों की नाईं बढ़े हुए हों, और हमारी बेटियां उन कोने वाले पत्थरों के समान हों, जो मन्दिर के पत्थरों की नाईं बनाए जाएं;
13. जब हमारे खत्ते भरे रहें, और उन में भांति भांति का अन्न धरा जाए, और हमारी भेड़- बकरियां हमारे मैदानों में हजारों हजार बच्चे जनें;
14. जब हमारे बैल खूब लदे हुए हों; जब हमें न विघ्न हो और न हमारा कहीं जाना हो, और न हमारे चौकों में रोना- पीटना हो,
15. तो इस दशा में जो राज्य हो वह क्या ही धन्य होगा! जिस राज्य का परमेश्वर यहोवा है, वह क्या ही धन्य है!

  Psalms (144/150)