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| 1. | क्या ही धन्य हैं वे जो चाल के खरे हैं, और यहोवा की व्यवस्था पर चलते हैं! |
| 2. | क्या ही धन्य हैं वे जो उसकी चितौनियों को मानते हैं, और पूर्ण मन से उसके पास आते हैं! |
| 3. | फिर वे कुटिलता का काम नहीं करते, वे उसके मार्गों में चलते हैं। |
| 4. | तू ने अपने उपदेश इसलिये दिए हैं, कि वे यत्न से माने जाएं। |
| 5. | भला होता कि तेरी विधियों के मानने के लिये मेरी चालचलन दृढ़ हो जाए! |
| 6. | तब मैं तेरी सब आज्ञाओं की ओर चित्त लगाए रहूंगा, और मेरी आशा न टूटेगी। |
| 7. | जब मैं तेरे धर्ममय नियमों को सीखूंगा, तब तेरा धन्यवाद सीधे मन से करूंगा। |
| 8. | मैं तेरी विधियों को मानूंगा: मुझे पूरी रीति से न तज! |
| 9. | जवान अपनी चाल को किस उपाय से शुद्ध रखे? तेरे वचन के अनुसार सावधान रहने से। |
| 10. | मैं पूरे मन से तेरी खोज मे लगा हूं; मुझे तेरी आज्ञाओं की बाट से भटकने न दे! |
| 11. | मैं ने तेरे वचन को अपने हृदय में रख छोड़ा है, कि तेरे विरुद्ध पाप न करूं। |
| 12. | हे यहोवा, तू धन्य है; मुझे अपनी विधियां सिखा! |
| 13. | तेरे सब कहे हुए नियमों का वर्णन, मैं ने अपने मुंह से किया है। |
| 14. | मैं तेरी चितौनियों के मार्ग से, मानों सब प्रकार के धन से हर्षित हुआ हूं। |
| 15. | मैं तेरे उपदेशों पर ध्यान करूंगा, और तेरे मार्गों की ओर दृष्टि रखूंगा। |
| 16. | मैं तेरी विधियों से सुख पाऊंगा; और तेरे वचन को न भूलूंगा।। |
| 17. | अपने दास का उपकार कर, कि मैं जीवित रहूं, और तेरे वचन पर चलता रहूं। |
| 18. | मेरी आंखें खोल दे, कि मैं तेरी व्यवस्था की अद्भुत बातें देख सकूं। |
| 19. | मैं तो पृथ्वी पर परदेशी हूं; अपनी आज्ञाओं को मुझ से छिपाए न रख! |
| 20. | मेरा मन तेरे नियमों की अभिलाषा के कारण हर समय खेदित रहता है। |
| 21. | तू ने अभिमानियों को, जो शापित हैं, घुड़का है, वे तेरी आज्ञाओं की बाट से भटके हुए हैं। |
| 22. | मेरी नामधराई और अपमान दूर कर, क्योंकि मैं तेरी चितौनियों को पकड़े हूं। |
| 23. | हाकिम भी बैठे हुए आपास में मेरे विरुद्ध बातें करते थे, परन्तु तेरा दास तेरी विधियों पर ध्यान करता रहा। |
| 24. | तेरी चितौनियां मेरा सुखमूल और मेरे मन्त्री हैं।। |
| 25. | मैं धूल में पड़ा हूं; तू अपने वचन के अनुसार मुझ को जिला! |
| 26. | मैं ने अपनी चालचलन का तुझ से वर्णन किया है और तू ने मेरी बात मान ली है; तू मुझ को अपनी विधियां सिखा! |
| 27. | अपने उपदेशों का मार्ग मुझे बता, तब मैं तेरे आश्यर्चकर्मों पर ध्यान करूंगा। |
| 28. | मेरा जीवन उदासी के मारे गल चला है; तू अपने वचन के अनुसार मुझे सम्भल! |
| 29. | मुझ को झूठ के मार्ग से दूर कर; और करूणा कर के अपनी व्यवस्था मुझे दे। |
| 30. | मैं ने सच्चाई का मार्ग चुन लिया है, तेरे नियमों की ओर मैं चित्त लगाए रहता हूं। |
| 31. | मैं तेरी चितौनियों में लौलीन हूं, हे यहोवा, मेरी आशा न तोड़! |
| 32. | जब तू मेरा हियाव बढ़ाएगा, तब मैं तेरी आज्ञाओं के मार्ग में दौडूंगा।। |
| 33. | हे यहोवा, मुझे अपनी विधियों का मार्ग दिखा दे; तब मैं उसे अन्त तक पकड़े रहूंगा। |
| 34. | मुझे समझ दे, तब मैं तेरी व्यवस्था को पकड़े रहूंगा और पूर्ण मन से उस पर चलूंगा। |
| 35. | अपनी आज्ञाओं के पथ में मुझ को चला, क्योंकि मैं उसी से प्रसन्न हूं। |
| 36. | मेरे मन को लोभ की ओर नहीं, अपनी चितौनियों ही की ओर फेर दे। |
| 37. | मेरी आंखों को व्यर्थ वस्तुओं की ओर से फेर दे; तू अपने मार्ग में मुझे जिला। |
| 38. | तेरा वचन जो तेरे भय मानने वालों के लिये है, उसको अपने दास के निमित्त भी पूरा कर। |
| 39. | जिस नामधराई से मैं डरता हूं, उसे दूर कर; क्योंकि तेरे नियम उत्तम हैं। |
| 40. | देख, मैं तेरे उपदेशों का अभिलाषी हूं; अपने धर्म के कारण मुझ को जिला। |
| 41. | हे यहोवा, तेरी करूणा और तेरा किया हुआ उद्धार, तेरे वचन के अनुसार, मुझ को भी मिले; |
| 42. | तब मैं अपनी नामधराई करने वालों को कुछ उत्तर दे सकूंगा, क्योंकि मेरा भरोसा, तेरे वचन पर है। |
| 43. | मुझे अपने सत्य वचन कहने से न रोक क्योंकि मेरी आशा तेरे नियमों पर हैं। |
| 44. | तब मैं तेरी व्यवस्था पर लगातार, सदा सर्वदा चलता रहूंगा; |
| 45. | और मैं चोड़े स्थान में चला फिरा करूंगा, क्योंकि मैं ने तेरे उपदेशों की सुधि रखी है। |
| 46. | और मैं तेरी चितौनियों की चर्चा राजाओं के साम्हने भी करूंगा, और संकोच न करूंगा; |
| 47. | क्योंकि मैं तेरी आज्ञाओं के कारण सुखी हूं, और मैं उन से प्रीति रखता हूं। |
| 48. | मैं तेरी आज्ञाओं की ओर जिन में मैं प्रीति रखता हूं, हाथ फैलाऊंगा और तेरी विधियों पर ध्यान करूंगा।। |
| 49. | जो वचन तू ने अपने दास को दिया है, उसे स्मरण कर, क्योंकि तू ने मुझे आशा दी है। |
| 50. | मेरे दु:ख में मुझे शान्ति उसी से हुई है, क्योंकि तेरे वचन के द्वारा मैं ने जीवन पाया है। |
| 51. | अभिमानियों ने मुझे अत्यन्त ठट्ठे में उड़ाया है, तौभी मैं तेरी व्यवस्था से नहीं हटा। |
| 52. | हे यहोवा, मैं ने तेरे प्राचीन नियमों को स्मरण कर के शान्ति पाई है। |
| 53. | जो दुष्ट तेरी व्यवस्था को छोड़े हुए हैं, उनके कारण मैं सन्ताप से जलता हूं। |
| 54. | जहां मैं परदेशी हो कर रहता हूं, वहां तेरी विधियां, मेरे गीत गाने का विषय बनी हैं। |
| 55. | हे यहोवा, मैं ने रात को तेरा नाम स्मरण किया और तेरी व्यवस्था पर चला हूं। |
| 56. | यह मुझ से इस कारण हुआ, कि मैं तेरे उपदेशों को पकड़े हुए था।। |
| 57. | यहोवा मेरा भाग है; मैं ने तेरे वचनों के अनुसार चलने का निश्चय किया है। |
| 58. | मैं ने पूरे मन से तुझे मनाया है; इसलिये अपने वचन के अनुसार मुझ पर अनुग्रह कर। |
| 59. | मैं ने अपनी चालचलन को सोचा, और तेरी चितौनियों का मार्ग लिया। |
| 60. | मैं ने तेरी आज्ञाओं के मानने में विलम्ब नहीं, फुर्ती की है। |
| 61. | मैं दुष्टों की रस्सियों बन्ध गया हूं, तौभी मैं तेरी व्यवस्था को नहीं भूला। |
| 62. | तेरे धर्ममय नियमों के कारण मैं आधी रात को तेरा धन्यवाद करने को उठूंगा। |
| 63. | जितने तेरा भय मानते और तेरे उपदेशों पर चलते हैं, उनका मैं संगी हूं। |
| 64. | हे यहोवा, तेरी करुणा पृथ्वी में भरी हुई है; तू मुझे अपनी विधियां सिखा! |
| 65. | हे यहोवा, तू ने अपने वचन के अनुसार अपने दास के संग भलाई की है। |
| 66. | मुझे भली विवेक- शक्ति और ज्ञान दे, क्योंकि मैं ने तेरी आज्ञाओं का विश्वास किया है। |
| 67. | उस से पहिले कि मैं दु:खित हुआ, मैं भटकता था; परन्तु अब मैं तेरे वचन को मानता हूं। |
| 68. | तू भला है, और भला करता भी है; मुझे अपनी विधियां सिखा। |
| 69. | अभिमानियों ने तो मेरे विरुद्ध झूठ बात गढ़ी है, परन्तु मैं तेरे उपदेशों को पूरे मन से पकड़े रहूंगा। |
| 70. | उनका मन मोटा हो गया है, परन्तु मैं तेरी व्यवस्था के कारण सुखी हूं। |
| 71. | मुझे जो दु:ख हुआ वह मेरे लिये भला ही हुआ है, जिस से मैं तेरी विधियों को सीख सकूं। |
| 72. | तेरी दी हुई व्यवस्था मेरे लिये हजारों रूपयों और मुहरों से भी उत्तम है।। |
| 73. | तेरे हाथों से मैं बनाया और रचा गया हूं; मुझे समझ दे कि मैं तेरी आज्ञाओं को सीखूं। |
| 74. | तेरे डरवैये मुझे देख कर आनन्दित होंगे, क्योंकि मैं ने तेरे वचन पर आशा लगाई है। |
| 75. | हे यहोवा, मैं जान गया कि तेरे नियम धर्ममय हैं, और तू ने अपने सच्चाई के अनुसार मुझे दु:ख दिया है। |
| 76. | मुझे अपनी करूणा से शान्ति दे, क्योंकि तू ने अपने दास को ऐसा ही वचन दिया है। |
| 77. | तेरी दया मुझ पर हो, तब मैं जीवित रहूंगा; क्योंकि मैं तेरी व्यवस्था से सुखी हूं। |
| 78. | अभिमानियों की आशा टूटे, क्योंकि उन्होंने मुझे झूठ के द्वारा गिरा दिया है; परन्तु मैं तेरे उपदेशों पर ध्यान करूंगा। |
| 79. | जो तेरा भय मानते हैं, वह मेरी ओर फिरें, तब वे तेरी चितौनियों को समझ लेंगे। |
| 80. | मेरा मन तेरी विधियों के मानने में सिद्ध हो, ऐसा न हो कि मुझे लज्जित होना पड़े।। |
| 81. | मेरा प्राण तेरे उद्धार के लिये बैचेन है; परन्तु मुझे तेरे वचन पर आशा रहती है। |
| 82. | मेरी आंखें तेरे वचन के पूरे होने की बाट जोहते जोहते रह गईं है; और मैं कहता हूं कि तू मुझे कब शान्ति देगा? |
| 83. | क्योंकि मैं धूएं में की कुप्पी के समान हो गया हूं, तौभी तेरी विधियों को नहीं भूला। |
| 84. | तेरे दास के कितने दिन रह गए हैं? तू मेरे पीछे पड़े हुओं को दण्ड कब देगा? |
| 85. | अभिमानी जो तरी व्यवस्था के अनुसार नहीं चलते, उन्होंने मेरे लिये गड़हे खोदे हैं। |
| 86. | तेरी सब आज्ञाएं विश्वासयोग्य हैं; वे लोग झूठ बोलते हुए मेरे पीछे पड़े हैं; तू मेरी सहायता कर! |
| 87. | वे मुझ को पृथ्वी पर से मिटा डालने ही पर थे, परन्तु मैं ने तेरे उपदेशों को नहीं छोड़ा। |
| 88. | अपनी करूणा के अनुसार मुझ को जिला, तब मैं तेरी दी हुई चितौनी को मानूंगा।। |
| 89. | हे यहोवा, तेरा वचन, आकाश में सदा तक स्थिर रहता है। |
| 90. | तेरी सच्चाई पीढ़ी से पीढ़ी तक बनी रहती है; तू ने पृथ्वी को स्थिर किया, इसलिये वह बनी है। |
| 91. | वे आज के दिन तक तेरे नियमों के अनुसार ठहरे हैं; क्योंकि सारी सृष्टि तेरे आधीन है। |
| 92. | यदि मैं तेरी व्यवस्था से सुखी न होता, तो मैं दु:ख के समय नाश हो जाता। |
| 93. | मैं तेरे उपदेशों को कभी न भूलूंगा; क्योंकि उन्हीं के द्वारा तू ने मुझे जिलाया है। |
| 94. | मैं तेरा ही हूं, तू मेरा उद्धार कर; क्योंकि मैं तेरे उपदेशों की सुधि रखता हूं। |
| 95. | दुष्ट मेरा नाश करने के लिये मेरी घात में लगे हैं; परन्तु मैं तेरी चितौनियों पर ध्यान करता हूं। |
| 96. | जितनी बातें पूरी जान पड़ती हैं, उन सब को तो मैं ने अधूरी पाया है, परन्तु तेरी आज्ञा का विस्तार बड़ा है।। |
| 97. | अहा! मैं तेरी व्यवस्था में कैसी प्रीति रखता हूं! दिन भर मेरा ध्यान उसी पर लगा रहता है। |
| 98. | तू अपनी आज्ञाओं के द्वारा मुझे अपने शत्रुओं से अधिक बुद्धिमान करता है, क्योंकि वे सदा मेरे मन में रहती हैं। |
| 99. | मैं अपने सब शिक्षकों से भी अधिक समझ रखता हूं, क्योंकि मेरा ध्यान तेरी चितौनियों पर लगा है। |
| 100. | मैं पुरनियों से भी समझदार हूं, क्योंकि मैं तेरे उपदेशों को पकड़े हुए हूं। |
| 101. | मैं ने अपने पांवों को हर एक बुरे रास्ते से रोक रखा है, जिस से मैं तेरे वचन के अनुसार चलूं। |
| 102. | मैं तेरे नियमों से नहीं हटा, क्योंकि तू ही ने मुझे शिक्षा दी है। |
| 103. | तेरे वचन मुझ को कैसे मीठे लगते हैं, वे मेरे मुंह में मधु से भी मीठे हैं! |
| 104. | तेरे उपदेशों के कारण मैं समझदार हो जाता हूं, इसलिये मैं सब मिथ्या मार्गों से बैर रखता हूं।। |
| 105. | तेरा वचन मेरे पांव के लिये दीपक, और मेरे मार्ग के लिये उजियाला है। |
| 106. | मैं ने शपथ खाई, और ठाना भी है कि मैं तेरे धर्ममय नियमों के अनुसार चलूंगा। |
| 107. | मैं अत्यन्त दु:ख में पड़ा हूं; हे यहोवा, अपने वचन के अनुसार मुझे जिला। |
| 108. | हे यहोवा, मेरे वचनों को स्वेच्छाबलि जान कर ग्रहण कर, और अपने नियमों को मुझे सिखा। |
| 109. | मेरा प्राण निरन्तर मेरी हथेली पर रहता है, तौभी मैं तेरी व्यवस्था को भूल नहीं गया। |
| 110. | दुष्टों ने मेरे लिये फन्दा लगाया है, परन्तु मैं तेरे उपदेशों के मार्ग से नहीं भटका। |
| 111. | मैं ने तेरी चितौनियों को सदा के लिये अपना निज भाग कर लिया है, क्योंकि वे मेरे हृदय के हर्ष का कारण हैं। |
| 112. | मैं ने अपने मन को इस बात पर लगाया है, कि अन्त तक तेरी विधियों पर सदा चलता रहूं। |
| 113. | मैं दुचित्तों से तो बैर रखता हूं, परन्तु तेरी व्यवस्था से प्रीति रखता हूं। |
| 114. | तू मेरी आड़ और ढ़ाल है; मेरी आशा तेरे वचन पर है। |
| 115. | हे कुकर्मियों, मुझ से दूर हो जाओ, कि मैं अपने परमेश्वर की आज्ञाओं को पकड़े रहूं। |
| 116. | हे यहोवा, अपने वचन के अनुसार मुझे सम्भाल, कि मैं जीवित रहूं, और मेरी आशा को न तोड़! |
| 117. | मुझे थाम रख, तब मैं बचा रहूंगा, और निरन्तर तेरी विधियों की ओर चित्त लगाए रहूंगा! |
| 118. | जितने तेरी विधियों के मार्ग से भटक जाते हैं, उन सब को तू तुच्छ जानता है, क्योंकि उनकी चतुराई झूठ है। |
| 119. | तू ने पृथ्वी के सब दुष्टों को धातु के मैल के समान दूर किया है; इस कारण मैं तेरी चितौनियों से प्रीति रखता हूं। |
| 120. | तेरे भय से मेरा शरीर कांप उठता है, और मैं तेरे नियमों से डरता हूं।। |
| 121. | मैं ने तो न्याय और धर्म का काम किया है; तू मुझे अन्धेर करने वालों के हाथ में न छोड़। |
| 122. | अपने दास की भलाई के लिये जामिन हो, ताकि अभिमानी मुझ पर अन्धेर न करने पांए। |
| 123. | मेरी आंखें तुझ से उद्धार पाने, और तेरे धर्ममय वचन के पूरे होने की बाट जोहते जोहते रह गई हैं। |
| 124. | अपने दास के संग अपनी करूणा के अनुसार बर्ताव कर, और अपनी विधियां मुझे सिखा। |
| 125. | मैं तेरा दास हूं, तू मुझे समझ दे कि मैं तेरी चितौनियों को समझूं। |
| 126. | वह समय आया है, कि यहोवा काम करे, क्योंकि लोगों ने तेरी व्यवस्था को तोड़ दिया है। |
| 127. | इस कारण मैं तेरी आज्ञाओं को सोने से वरन कुन्दन से भी अधिक प्रिय मानता हूं। |
| 128. | इसी कारण मैं तेरे सब उपदेशों को सब विषयों में ठीक जानता हूं; और सब मिथ्या मार्गों से बैर रखता हूं।। |
| 129. | तेरी चितौनियां अनूप हैं, इस कारण मैं उन्हें अपने जी से पकड़े हुए हूं। |
| 130. | तेरी बातों के खुलने से प्रकाश होता है; उस से भोले लोग समझ प्राप्त करते हैं। |
| 131. | मैं मुंह खोल कर हांफने लगा, क्योंकि मैं तेरी आज्ञाओं का प्यासा था। |
| 132. | जैसी तेरी रीति अपने नाम की प्रीति रखने वालों से है, वैसे ही मेरी ओर भी फिर कर मुझ पर अनुग्रह कर। |
| 133. | मेरे पैरों को अपने वचन के मार्ग पर स्थिर कर, और किसी अनर्थ बात को मुझ पर प्रभुता न करने दे। |
| 134. | मुझे मनुष्यों के अन्धेर से छुड़ा ले, तब मैं तेरे उपदेशों को मानूंगा। |
| 135. | अपने दास पर अपने मुख का प्रकाश चमका दे, और अपनी विधियां मुझे सिखा। |
| 136. | मेरी आंखों से जल की धारा बहती रहती है, क्योंकि लोग तेरी व्यवस्था को नहीं मानते।। |
| 137. | हे यहोवा तू धर्मी है, और तेरे नियम सीधे हैं। |
| 138. | तू ने अपनी चितौनियों को धर्म और पूरी सत्यता से कहा है। |
| 139. | मैं तेरी धुन में भस्म हो रहा हूं, क्योंकि मेरे सताने वाले तेरे वचनों को भूल गए हैं। |
| 140. | तेरा वचन पूरी रीति से ताया हुआ है, इसलिये तेरा दास उस में प्रीति रखता है। |
| 141. | मैं छोटा और तुच्छ हूं, तौभी मैं तेरे उपदेशों को नहीं भूलता। |
| 142. | तेरा धर्म सदा का धर्म है, और तेरी व्यवस्था सत्य है। |
| 143. | मैं संकट और सकेती में फंसा हूं, परन्तु मैं तेरी आज्ञाओं से सुखी हूं। |
| 144. | तेरी चितौनियां सदा धर्ममय हैं; तू मुझ को समझ दे कि मैं जीवित रहूं।। |
| 145. | मैं ने सारे मन से प्रार्थना की है, हे यहोवा मेरी सुन लेना! मैं तेरी विधियों को पकड़े रहूंगा। |
| 146. | मैं ने तुझ से प्रार्थना की है, तू मेरा उद्धार कर, और मैं तेरी चितौनियों को माना करूंगा। |
| 147. | मैं ने पौ फटने से पहिले दोहाई दी; मेरी आशा तेरे वचनों पर थी। |
| 148. | मेरी आंखें रात के एक एक पहर से पहिले खुल गईं, कि मैं तेरे वचन पर ध्यान करूं। |
| 149. | अपनी करूणा के अनुसार मेरी सुन ले; हे यहोवा, अपनी रीति के अनुसार मुझे जीवित कर। |
| 150. | जो दुष्टता में धुन लगाते हैं, वे निकट आ गए हैं; वे तेरी व्यवस्था से दूर हैं। |
| 151. | हे यहोवा, तू निकट है, और तेरी सब आज्ञाएं सत्य हैं। |
| 152. | बहुत काल से मैं तेरी चितौनियों को जानता हूं, कि तू ने उनकी नेव सदा के लिये डाली है।। |
| 153. | मेरे दु:ख को देख कर मुझे छुड़ा ले, क्योंकि मैं तेरी व्यवस्था को भूल नहीं गया। |
| 154. | मेरा मुकद्दमा लड़, और मुझे छुड़ा ले; अपने वचन के अनुसार मुझ को जिला। |
| 155. | दुष्टों को उद्धार मिलना कठिन है, क्योंकि वे तेरी विधियों की सुधि नहीं रखते। |
| 156. | हे यहोवा, तेरी दया तो बड़ी है; इसलिये अपने नियमों के अनुसार मुझे जिला। |
| 157. | मेरा पीछा करने वाले और मेरे सताने वाले बहुत हैं, परन्तु मैं तेरी चितौनियों से नहीं हटता। |
| 158. | मैं विश्वासघातियों को देख कर उदास हुआ, क्योंकि वे तेरे वचन को नहीं मानते। |
| 159. | देख, मैं तेरे नियमों से कैसी प्रीति रखता हूं! हे यहोवा, अपनी करूणा के अनुसार मुझ को जिला। |
| 160. | तेरा सारा वचन सत्य ही है; और तेरा एक एक धर्ममय नियम सदा काल तक अटल है।। |
| 161. | हाकिम व्यर्थ मेरे पीछे पड़े हैं, परन्तु मेरा हृदय तेरे वचनों का भय मानता है। |
| 162. | जैसे कोई बड़ी लूट पा कर हर्षित होता है, वैसे ही मैं तेरे वचन के कारण हर्षित हूं। |
| 163. | झूठ से तो मैं बैर और घृणा रखता हूं, परन्तु तेरी व्यवस्था से प्रीति रखता हूं। |
| 164. | तेरे धर्ममय नियमों के कारण मैं प्रतिदिन सात बेर तेरी स्तुति करता हूं। |
| 165. | तेरी व्यवस्था से प्रीति रखने वालों को बड़ी शान्ति होती है; और उन को कुछ ठोकर नहीं लगती। |
| 166. | हे यहोवा, मैं तुझ से उद्धार पाने की आशा रखता हूं; और तेरी आज्ञाओं पर चलता आया हूं। |
| 167. | मैं तेरी चितौनियों को जी से मानता हूं, और उन से बहुत प्रीति रखता आया हूं। |
| 168. | मैं तेरे उपदेशों और चितौनियों को मानता आया हूं, क्योंकि मेरी सारी चालचलन तेरे सम्मुख प्रगट है।। |
| 169. | हे यहोवा, मेरी दोहाई तुझ तक पहुंचे; तू अपने वचन के अनुसार मुझे समझ दे! |
| 170. | मेरा गिड़गिड़ाना तुझ तक पहुंचे; तू अपने वचन के अनुसार मुझे छुड़ा ले। |
| 171. | मेरे मुंह से स्तुति निकला करे, क्योंकि तू मुझे अपनी विधियां सिखाता है। |
| 172. | मैं तेरे वचन का गीत गाऊंगा, क्योंकि तेरी सब आज्ञाएं धर्ममय हैं। |
| 173. | तेरा हाथ मेरी सहायता करने को तैयार रहता है, क्योंकि मैं ने तेरे उपदेशों को अपनाया है। |
| 174. | हे यहोवा, मैं तुझ से उद्धार पाने की अभिलाषा करता हूं, मैं तेरी व्यवस्था से सुखी हूं। |
| 175. | मुझे जिला, और मैं तेरी स्तुति करूंगा, तेरे नियमों से मेरी सहायता हो। |
| 176. | मैं खोई हुई भेड़ की नाईं भटका हूं; तू अपने दास को ढूंढ़ ले, क्योंकि मैं तेरी आज्ञाओं को भूल नहीं गया।। |
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