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1. | मेरा भरोसा परमेश्वर पर है; तुम क्योंकर मेरे प्राण से कह सकते हो कि पक्षी की नाईं अपने पहाड़ पर उड़ जा? |
2. | क्योंकि देखो, दुष्ट अपना धनुष चढ़ाते हैं, और अपना तीर धनुष की डोरी पर रखते हैं, कि सीधे मन वालों पर अन्धियारे में तीर चलाएं। |
3. | यदि नेवें ढ़ा दी जाएं तो धर्मी क्या कर सकता है? |
4. | परमेश्वर अपने पवित्र भवन में है; परमेश्वर का सिंहासन स्वर्ग में है; उसकी आंखें मनुष्य की सन्तान को नित देखती रहती हैं और उसकी पलकें उन को जांचती हैं। |
5. | यहोवा धर्मी को परखता है, परन्तु वह उन से जो दुष्ट हैं और उपद्रव से प्रीति रखते हैं अपनी आत्मा में घृणा करता है। |
6. | वह दुष्टों पर फन्दे बरसाएगा; आग और गन्धक और प्रचण्ड लूह उनके कटोरों में बांट दी जाएंगी। |
7. | क्योंकि यहोवा धर्मी है, वह धर्म के ही कामों से प्रसन्न रहता है; धर्मी जन उसका दर्शन पाएंगे।। |
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