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| 1. | हे यहोवा, मेरी प्रार्थना सुन; मेरी दोहाई तुझ तक पहुंचे! |
| 2. | मेरे संकट के दिन अपना मुख मुझ से न छिपा ले; अपना कान मेरी ओर लगा; जिस समय मैं पुकारूं, उसी समय फुर्ती से मेरी सुन ले! |
| 3. | क्योंकि मेरे दिन धुएं की नाईं उड़े जाते हैं, और मेरी हडि्डयां लुकटी के समान जल गई हैं। |
| 4. | मेरा मन झुलसी हुई घास की नाईं सूख गया है; और मैं अपनी रोटी खाना भूल जाता हूं। |
| 5. | कराहते कराहते मेरा चमड़ा हडि्डयों में सट गया है। |
| 6. | मैं जंगल के धनेश के समान हो गया हूं, मैं उजड़े स्थानों के उल्लू के समान बन गया हूं। |
| 7. | मैं पड़ा पड़ा जागता रहता हूं और गौरे के समान हो गया हूं जो छत के ऊपर अकेला बैठता है। |
| 8. | मेरे शत्रु लगातार मेरी नामधराई करते हैं, जो मेरे विराध की धुन में बावले हो रहे हैं, वे मेरा नाम ले कर शपथ खाते हैं। |
| 9. | क्योंकि मैं ने रोटी की नाईं राख खाई और आंसू मिला कर पानी पीता हूं। |
| 10. | यह तेरे क्रोध और कोप के कारण हुआ है, क्योंकि तू ने मुझे उठाया, और फिर फेंक दिया है। |
| 11. | मेरी आयु ढलती हुई छाया के समान है; और मैं आप घास की नाईं सूख चला हूं।। |
| 12. | परन्तु हे यहोवा, तू सदैव विराजमान रहेगा; और जिस नाम से तेरा स्मरण होता है, वह पीढ़ी से पीढ़ी तक बना रहेगा। |
| 13. | तू उठ कर सिय्योन पर दया करेगा; क्योंकि उस पर अनुग्रह करने का ठहराया हुआ समय आ पहुंचा है। |
| 14. | क्योंकि तेरे दास उसके पत्थरों को चाहते हैं, और उसकी धूलि पर तरस खाते हैं। |
| 15. | इसलिये अन्यजातियां यहोवा के नाम का भय मानेंगी, और पृथ्वी के सब राजा तेरे प्रताप से डरेंगे। |
| 16. | क्योंकि यहोवा ने सिय्योन को फिर बसाया है, और वह अपनी महिमा के साथ दिखाई देता है; |
| 17. | वह लाचार की प्रार्थना की ओर मुंह करता है, और उनकी प्रार्थना को तुच्छ नहीं जानता। |
| 18. | यह बात आने वाली पीढ़ी के लिये लिखी जाएगी, और एक जाति जो सिरजी जाएगी वही याह की स्तुति करेगी। |
| 19. | क्योंकि यहोवा ने अपने ऊंचे और पवित्र स्थान से दृष्टि कर के स्वर्ग से पृथ्वी की ओर देखा है, |
| 20. | ताकि बन्धुओं का कराहना सुने, और घात होन वालों के बन्धन खोले; |
| 21. | और सिय्योन में यहोवा के नाम का वर्णन किया जाए, और यरूशलेम में उसकी स्तुति की जाए; |
| 22. | यह उस समय होगा जब देश देश, और राज्य राज्य के लोग यहोवा की उपासना करने को इकट्ठे होंगे।। |
| 23. | उसने मुझे जीवन यात्रा में दु:ख देकर, मेरे बल और आयु को घटाया। |
| 24. | मैं ने कहा, हे मेरे ईश्वर, मुझे आधी आयु में न उठा ले, मेरे वर्ष पीढ़ी से पीढ़ी तक बने रहेंगे! |
| 25. | आदि में तू ने पृथ्वी की नेव डाली, और आकाश तेरे हाथों का बनाया हुआ है। |
| 26. | वह तो नाश होगा, परन्तु तू बना रहेगा; और वह सब कपड़े के समान पुराना हो जाएगा। तू उसको वस्त्र की नाईं बदलेगा, और वह तो बदल जाएगा; |
| 27. | परन्तु तू वहीं है, और तेरे वर्षों का अन्त नहीं होने का। |
| 28. | तेरे दासों की सन्तान बनी रहेगी; और उनका वंश तेरे साम्हने स्थिर रहेगा।। |
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