← Proverbs (4/31) → |
1. | हे मेरे पुत्रो, पिता की शिक्षा सुनो, और समझ प्राप्त करने में मन लगाओ। |
2. | क्योंकि मैं ने तुम को उत्तम शिक्षा दी है; मेरी शिक्षा को न छोड़ो। |
3. | देखो, मैं भी अपने पिता का पुत्र था, और माता का अकेला दुलारा था, |
4. | और मेरा पिता मुझे यह कह कर सिखाता था, कि तेरा मन मेरे वचन पर लगा रहे; तू मेरी आज्ञाओं का पालन कर, तब जीवित रहेगा। |
5. | बुद्धि को प्राप्त कर, समझ को भी प्राप्त कर; उन को भूल न जाना, न मेरी बातों को छोड़ना। |
6. | बुद्धि को न छोड़, वह तेरी रक्षा करेगी; उस से प्रीति रख, वह तेरा पहरा देगी। |
7. | बुद्धि श्रेष्ट है इसलिये उसकी प्राप्ति के लिये यत्न कर; जो कुछ तू प्राप्त करे उसे प्राप्त तो कर परन्तु समझ की प्राप्ति का यत्न घटने न पाए। |
8. | उसकी बड़ाई कर, वह तुझ को बढ़ाएगी; जब तू उस से लिपट जाए, तब वह तेरी महिमा करेगी। |
9. | वह तेरे सिर पर शोभायमान भूषण बान्धेगी; और तुझे सुन्दर मुकुट देगी।। |
10. | हे मेरे पुत्र, मेरी बातें सुन कर ग्रहण कर, तब तू बहुत वर्ष तक जीवित रहेगा। |
11. | मैं ने तुझे बुद्धि का मार्ग बताया है; और सीधाई के पथ पर चलाया है। |
12. | चलने में तुझे रोक टोक न होगी, और चाहे तू दौड़े, तौभी ठोकर न खाएगा। |
13. | शिक्षा को पकड़े रह, उसे छोड़ न दे; उसकी रक्षा कर, क्योंकि वही तेरा जीवन है। |
14. | दुष्टों की बाट में पांव न धरना, और न बुरे लोगों के मार्ग पर चलना। |
15. | उसे छोड़ दे, उसके पास से भी न चल, उसके निकट से मुड़ कर आगे बढ़ जा। |
16. | क्योंकि दुष्ट लोग यदि बुराई न करें, तो उन को नींद नहीं आती; और जब तक वे किसी को ठोकर न खिलाएं, तब तक उन्हें नींद नहीं मिलती। |
17. | वे तो दुष्टता से कमाई हुई रोटी खाते, और उपद्रव के द्वारा पाया हुआ दाखमधु पीते हैं। |
18. | परन्तु धर्मियों की चाल उस चमकती हुई ज्योति के समान है, जिसका प्रकाश दोपहर तक अधिक अधिक बढ़ता रहता है। |
19. | दुष्टों का मार्ग घोर अन्धकारमय है; वे नहीं जानते कि वे किस से ठोकर खाते हैं।। |
20. | हे मेरे पुत्र मेरे वचन ध्यान धरके सुन, और अपना कान मेरी बातों पर लगा। |
21. | इन को अपनी आंखों की ओट न होने दे; वरन अपने मन में धारण कर। |
22. | क्योंकि जिनको वे प्राप्त होती हैं, वे उनके जीवित रहने का, और उनके सारे शरीर के चंगे रहने का कारण होती हैं। |
23. | सब से अधिक अपने मन की रक्षा कर; क्योंकि जीवन का मूल स्रोत वही है। |
24. | टेढ़ी बात अपने मुंह से मत बोल, और चालबाजी की बातें कहना तुझ से दूर रहे। |
25. | तेरी आंखें साम्हने ही की ओर लगी रहें, और तेरी पलकें आगे की ओर खुली रहें। |
26. | अपने पांव धरने के लिये मार्ग को समथर कर, और तेरे सब मार्ग ठीक रहें। |
27. | न तो दाहिनी ओर मुढ़ना, और न बाईं ओर; अपने पांव को बुराई के मार्ग पर चलने से हटा ले।। |
← Proverbs (4/31) → |