Proverbs (17/31)  

1. चैन के साथ सूखा टुकड़ा, उस घर की अपेक्षा उत्तम है जो मेलबलि-पशुओं से भरा हो, परन्तु उस में झगड़े रगड़े हों।
2. बुद्धि से चलने वाला दास अपने स्वामी के उस पुत्र पर जो लज्जा का कारण होता है प्रभुता करेगा, और उस पुत्र के भाइयों के बीच भागी होगा।
3. चान्दी के लिये कुठाली, और सोने के लिये भट्ठी होती है, परन्तु मनों को यहोवा जांचता है।
4. कुकर्मी अनर्थ बात को ध्यान देकर सुनता है, और झूठा मनुष्य दुष्टता की बात की ओर कान लगाता है।
5. जो निर्धन को ठट्ठों में उड़ाता है, वह उसके कर्त्ता की निन्दा करता है; और जो किसी की विपत्ति पर हंसता, वह निर्दोष नहीं ठहरेगा।
6. बूढ़ों की शोभा उनके नाती पोते हैं; और बाल-बच्चों की शोभा उनके माता-पिता हैं।
7. मूढ़ के मुख से उत्तम बात फबती नहीं, और अधिक कर के प्रधान को झूठी बात नहीं फबती।
8. देने वाले के हाथ में घूस मोह लेने वाले मणि का काम देता है; जिधर ऐसा पुरूष फिरता, उधर ही उसका काम सफल होता है।
9. जो दूसरे के अपराध को ढांप देता, वह प्रेम का खोजी ठहरता है, परन्तु जो बात की चर्चा बार बार करता है, वह परम मित्रों में भी फूट करा देता है।
10. एक घुड़की समझने वाले के मन में जितनी गड़ जाती है, उतना सौ बार मार खाना मूर्ख के मन में नहीं गड़ता।
11. बुरा मनुष्य दंगे ही का यत्न करता है, इसलिये उसके पास क्रूर दूत भेजा जाएगा।
12. बच्चा-छीनी-हुई-रीछनी से मिलना तो भला है, परन्तु मूढ़ता में डूबे हुए मूर्ख से मिलना भला नहीं।
13. जो कोई भलाई के बदले में बुराई करे, उसके घर से बुराई दूर न होगी।
14. झगड़े का आरम्भ बान्ध के छेद के समान है, झगड़ा बढ़ने से पहिले उसको छोड़ देना उचित है।
15. जो दोषी को निर्दोष, और जो निर्दोष को दोषी ठहराता है, उन दोनों से यहोवा घृणा करता है।
16. बुद्धि मोल लेने के लिये मूर्ख अपने हाथ में दाम क्यों लिये है? वह उसे चाहता ही नहीं।
17. मित्र सब समयों में प्रेम रखता है, और विपत्ति के दिन भाई बन जाता है।
18. निर्बुद्धि मनुष्य हाथ पर हाथ मारता है, और अपने पड़ोसी के सामने उत्तरदायी होता है।
19. जो झगड़े-रगड़े में प्रीति रखता, वह अपराध करने में भी प्रीति रखता है, और जो अपने फाटक को बड़ा करता, वह अपने विनाश के लिये यत्न करता है।
20. जो मन का टेढ़ा है, उसका कल्याण नहीं होता, और उलट-फेर की बात करने वाला विपत्ति में पड़ता है।
21. जो मूर्ख को जन्माता है वह उस से दु:ख ही पाता है; और मूढ़ के पिता को आनन्द नहीं होता।
22. मन का आनन्द अच्छी औषधि है, परन्तु मन के टूटने से हड्डियां सूख जाती हैं।
23. दुष्ट जन न्याय बिगाड़ने के लिये, अपनी गांठ से घूस निकालता है।
24. बुद्धि समझने वाले के साम्हने ही रहती है, परन्तु मूर्ख की आंखे पृथ्वी के दूर दूर देशों में लगी रहती है।
25. मूर्ख पुत्र से पिता उदास होता है, और जननी को शोक होता है।
26. फिर धर्मी से दण्ड लेना, और प्रधानों को सिधाई के कारण पिटवाना, दोनों काम अच्छे नहीं हैं।
27. जो संभल कर बोलता है, वही ज्ञानी ठहरता है; और जिसकी आत्मा शान्त रहती है, वही समझ वाला पुरूष ठहरता है।
28. मूढ़ भी जब चुप रहता है, तब बुद्धिमान गिना जाता है; और जो अपना मुंह बन्द रखता वह समझ वाला गिना जाता है।।

  Proverbs (17/31)