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1. | तब यरूशलेम से कितने फरीसी और शास्त्री यीशु के पास आकर कहने लगे। |
2. | तेरे चेले पुरनियों की रीतों को क्यों टालते हैं, कि बिना हाथ धोए रोटी खाते हैं? |
3. | उसने उन को उत्तर दिया, कि तुम भी अपनी रीतों के कारण क्यों परमेश्वर की आज्ञा टालते हो? |
4. | क्योंकि परमेश्वर ने कहा था, कि अपने पिता और अपनी माता का आदर करना: और जो कोई पिता या माता को बुरा कहे, वह मार डाला जाए। |
5. | पर तुम कहते हो, कि यदि कोई अपने पिता या माता से कहे, कि जो कुछ तुझे मुझ से लाभ पहुंच सकता था, वह परमेश्वर को भेंट चढ़ाई जा चुकी। |
6. | तो वह अपने पिता का आदर न करे, सो तुम ने अपनी रीतों के कारण परमेश्वर का वचन टाल दिया। |
7. | हे कपटियों, यशायाह ने तुम्हारे विषय में यह भविष्यद्वाणी ठीक की। |
8. | कि ये लोग होठों से तो मेरा आदर करते हैं, पर उन का मन मुझ से दूर रहता है। |
9. | और ये व्यर्थ मेरी उपासना करते हैं, क्योंकि मनुष्यों की विधियों को धर्मोपदेश कर के सिखाते हैं। |
10. | और उसने लोगों को अपने पास बुलाकर उन से कहा, सुनो; और समझो। |
11. | जो मुंह में जाता है, वह मनुष्य को अशुद्ध नहीं करता, पर जो मुंह से निकलता है, वही मनुष्य को अशुद्ध करता है। |
12. | तब चेलों ने आकर उस से कहा, क्या तू जानता है कि फरीसियों ने यह वचन सुनकर ठोकर खाई? |
13. | उसने उत्तर दिया, हर पौधा जो मेरे स्वर्गीय पिता ने नहीं लगाया, उखाड़ा जाएगा। |
14. | उन को जाने दो; वे अन्धे मार्ग दिखाने वाले हैं: और अन्धा यदि अन्धे को मार्ग दिखाए, तो दोनों गड़हे में गिर पड़ेंगे। |
15. | यह सुनकर, पतरस ने उस से कहा, यह दृष्टान्त हमें समझा दे। |
16. | उसने कहा, क्या तुम भी अब तक ना समझ हो? |
17. | क्या नहीं समझते, कि जो कुछ मुंह में जाता, वह पेट में पड़ता है, और सण्डास में निकल जाता है? |
18. | पर जो कुछ मुंह से निकलता है, वह मन से निकलता है, और वही मनुष्य को अशुद्ध करता है। |
19. | क्योंकि कुचिन्ता, हत्या, पर स्त्रीगमन, व्यभिचार, चोरी, झूठी गवाही और निन्दा मन ही से निकलतीं है। |
20. | यही हैं जो मनुष्य को अशुद्ध करती हैं, परन्तु हाथ बिना धोए भोजन करना मनुष्य को अशुद्ध नहीं करता।। |
21. | यीशु वहां से निकलकर, सूर और सैदा के देशों की ओर चला गया। |
22. | और देखो, उस देश से एक कनानी स्त्री निकली, और चिल्लाकर कहने लगी; हे प्रभु दाऊद के सन्तान, मुझ पर दया कर, मेरी बेटी को दुष्टात्मा बहुत सता रहा है। |
23. | पर उसने उसे कुछ उत्तर न दिया, और उसके चेलों ने आकर उस से बिनती कर कहा; इसे विदा कर; क्योंकि वह हमारे पीछे चिल्लाती आती है। |
24. | उसने उत्तर दिया, कि इस्राएल के घराने की खोई हुई भेड़ों को छोड़ मैं किसी के पास नहीं भेजा गया। |
25. | पर वह आई, और उसे प्रणाम कर के कहने लगी; हे प्रभु, मेरी सहायता कर। |
26. | उसने उत्तर दिया, कि लड़कों की रोटी ले कर कुत्तों के आगे डालना अच्छा नहीं। |
27. | उसने कहा, सत्य है प्रभु; पर कुत्ते भी वह चूरचार खाते हैं, जो उन के स्वामियों की मेज से गिरते हैं। |
28. | इस पर यीशु ने उसको उत्तर देकर कहा, कि हे स्त्री, तेरा विश्वास बड़ा है: जैसा तू चाहती है, तेरे लिये वैसा ही हो; और उस की बेटी उसी घड़ी से चंगी हो गई।। |
29. | यीशु वहां से चलकर, गलील की झील के पास आया, और पहाड़ पर चढ़कर वहां बैठ गया। |
30. | और भीड़ पर भीड़ लंगड़ों, अन्धों, गूंगों, टुंड़ों, और बहुत औरों को ले कर उसके पास आए; और उन्हें उस के पांवों पर डाल दिया, और उसने उन्हें चंगा किया। |
31. | सो जब लोगों ने देखा, कि गूंगे बोलते और टुण्डे चंगे होते और लंगड़े चलते और अन्धे देखते हैं, तो अचम्भा कर के इस्राएल के परमेश्वर की बड़ाई की।। |
32. | यीशु ने अपने चेलों को बुलाकर कहा, मुझे इस भीड़ पर तरस आता है; क्योंकि वे तीन दिन से मेरे साथ हैं और उन के पास कुछ खाने को नहीं; और मैं उन्हें भूखा विदा करना नहीं चाहता; कहीं ऐसा न हो कि मार्ग में थककर रह जाएं। |
33. | चेलों ने उस से कहा, हमें जंगल में कहां से इतनी रोटी मिलेगी कि हम इतनी बड़ी भीड़ को तृप्त करें? |
34. | यीशु ने उन से पूछा, तुम्हारे पास कितनी रोटियां हैं? उन्होंने कहा; सात और थोड़ी सी छोटी मछिलयां। |
35. | तब उसने लोगों को भूमि पर बैठने की आज्ञा दी। |
36. | और उन सात रोटियों और मछिलयों को ले धन्यवाद कर के तोड़ा और अपने चेलों को देता गया; और चेले लोगों को। |
37. | सो सब खाकर तृप्त हो गए और बचे हुए टुकड़ों से भरे हुए सात टोकरे उठाए। |
38. | और खाने वाले स्त्रियों और बालकों को छोड़ चार हजार पुरूष थे। |
39. | तब वह भीड़ को विदा कर के नाव पर चढ़ गया, और मगदन देश के सिवानों में आया।। |
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