Lamentations (3/5)  

1. उसके रोष की छड़ी से दु:ख भोगने वाला पुरुष मैं ही हूं;
2. वह मुझे ले जा कर उजियाले में नहीं, अन्धियारे ही में चलाता है;
3. उसका हाथ दिन भर मेरे ही विरुद्ध उठता रहता है।
4. उसने मेरा मांस और चमड़ा गला दिया है, और मेरी हड्डियों को तोड़ दिया है;
5. उसने मुझे रोकने के लिये किला बनाया, और मुझ को कठिन दु:ख और श्रम से घेरा है;
6. उसने मुझे बहुत दिन के मरे हुए लोगों के समान अन्धेरे स्थानों में बसा दिया है।
7. मेरे चारों ओर उसने बाड़ा बान्धा है कि मैं निकल नहीं सकता; उसने मुझे भारी सांकल से जकड़ा है;
8. मैं चिल्ला चिल्लाके दोहाई देता हूँ, तौभी वह मेरी प्रार्थना नहीं सुनता;
9. मेरे मार्गों को उसने गढ़े हुए पत्थरों से रोक रखा है, मेरी डगरों को उसने टेढ़ी कर दिया है।
10. वह मेरे लिये घात में बैठे हुए रीछ और घात लगाए हुए सिंह के समान है;
11. उसने मुझे मेरे मार्गों से भुला दिया, और मुझे फाड़ डाला; उसने मुझ को उजाड़ दिया है।
12. उसने धनुष चढ़ा कर मुझे अपने तीर का निशाना बनाया है।
13. उसने अपनी तीरों से मेरे हृदय को बेध दिया है;
14. सब लोग मुझ पर हंसते हैं और दिन भर मुझ पर ढालकर गीत गाते हैं,
15. उसने मुझे कठिन दु:ख से भर दिया, और नागदौना पिलाकर तृप्त किया है।
16. उसने मेरे दांतों को कंकरी से तोड़ डाला, और मुझे राख से ढांप दिया है;
17. और मुझ को मन से उतार कर कुशल से रहित किया है; मैं कल्याण भूल गया हूँ;
18. इसलिऐ मैं ने कहा, मेरा बल नाश हुआ, और मेरी आश जो यहोवा पर थी, वह टूट गई है।
19. मेरा दु:ख और मारा मारा फिरना, मेरा नागदौने और-और विष का पीना स्मरण कर!
20. मैं उन्हीं पर सोचता रहता हूँ, इस से मेरा प्राण ढला जाता है।
21. परन्तु मैं यह स्मरण करता हूँ, इसीलिये मुझे आाशा है:
22. हम मिट नहीं गए; यह यहोवा की महाकरुणा का फल है, क्योंकि उसकी दया अमर है।
23. प्रति भोर वह नई होती रहती है; तेरी सच्चाई महान है।
24. मेरे मन ने कहा, यहोवा मेरा भाग है, इस कारण मैं उस में आशा रखूंगा।
25. जो यहोवा की बाट जोहते और उसके पास जाते हैं, उनके लिये यहोवा भला है।
26. यहोवा से उद्धार पाने की आशा रख कर चुपचाप रहना भला है।
27. पुरुष के लिये जवानी में जूआ उठाना भला है।
28. वह यह जान कर अकेला चुपचाप रहे, कि परमेश्वर ही ने उस पर यह बोझ डाला है;
29. वह अपना मुंह धूल में रखे, क्या जाने इस में कुछ आशा हो;
30. वह अपना गाल अपने मारने वाले की ओर फेरे, और नामधराई सहता रहे।
31. क्योंकि प्रभु मन से सर्वदा उतारे नहीं रहता,
32. चाहे वह दु:ख भी दे, तौभी अपनी करुणा की बहुतायत के कारण वह दया भी करता है;
33. क्योंकि वह मनुष्यों को अपने मन से न तो दबाता है और न दु:ख देता है।
34. पृथ्वी भर के बंधुओं को पांव के तले दलित करना,
35. किसी पुरुष का हक़ परमप्रधान के साम्हने मारना,
36. और किसी मनुष्य का मुक़द्दमा बिगाड़ना, इन तीन कामों को यहोवा देख नहीं सकता।
37. यदि यहोवा ने आज्ञा न दी हो, तब कौन है कि वचन कहे और वह पूरा हो जाए?
38. विपत्ति और कल्याण, क्या दोनों परमप्रधान की आज्ञा से नहीं होते?
39. सो जीवित मनुष्य क्यों कुड़कुड़ाए? और पुरुष अपने पाप के दण्ड को क्यों बुरा माने?
40. हम अपने चालचलन को ध्यान से परखें, और यहोवा की ओर फिरें!
41. हम स्वर्गवासी परमेश्वर की ओर मन लगाएं और हाथ फैलाएं और कहें:
42. हम ने तो अपराध और बलवा किया है, और तू ने क्षमा नहीं किया।
43. तेरा कोप हम पर है, तू हमारे पीछे पड़ा है, तू ने बिना तरस खाए घात किया है।
44. तू ने अपने को मेघ से घेर लिया है कि तुझ तक प्रार्थना न पहुंच सके।
45. तू ने हम को जाति जाति के लोगों के बीच में कूड़ा-कर्कट सा ठहराया है।
46. हमारे सब शत्रुओं ने हम पर अपना अपना मुंह फैलाया है;
47. भय और गड़हा, उजाड़ और विनाश, हम पर आ पड़े हैं;
48. मेरी आंखों से मेरी प्रजा की पुत्री के विनाश के कारण जल की धाराएं बह रही है।
49. मेरी आंख से लगातार आंसू बहते रहेंगे,
50. जब तक यहोवा स्वर्ग से मेरी ओर न देखे;
51. अपनी नगरी की सब स्त्रियों का हाल देखने पर मेरा दु:ख बढ़ता है।
52. जो व्यर्थ मेरे शत्रु बने हैं, उन्होंने निर्दयता से चिडिय़ा के समान मेरा अहेर किया है;
53. उन्होंने मुझे गड़हे में डाल कर मेरे जीवन का अन्त करने के लिये मेरे ऊपर पत्थर लुढ़काए हैं;
54. मेरे सिर पर से जल बह गया, मैं ने कहा, मैं अब नाश हो गया।
55. हे यहोवा, गहिरे गड़हे में से मैं ने तुझ से प्रार्थना की;
56. तू ने मेरी सुनी कि जो दोहाई देकर मैं चिल्लाता हूँ उस से कान न फेर ले!
57. जब मैं ने तुझे पुकारा, तब तू ने मुझ से कहा, मत डर!
58. हे यहोवा, तू ने मेरा मुक़द्दमा लड़ कर मेरा प्राण बचा लिया है।
59. हे यहोवा, जो अन्याय मुझ पर हुआ है उसे तू ने देखा है; तू मेरा न्याय चुका।
60. जो बदला उन्होंने मुझ से लिया, और जो कल्पनाएं मेरे विरुद्ध कीं, उन्हें भी तू ने देखा है।
61. हे यहोवा, जो कल्पनाएं और निन्दा वे मेरे विरुद्ध करते हैं, वे भी तू ने सुनी हैं।
62. मेरे विरोधियों के वचन, और जो कुछ भी वे मेरे विरुद्ध लगातार सोचते हैं, उन्हें तू जानता है।
63. उनका उठना-बैठना ध्यान से देख; वे मुझ पर लगते हुए गीत गाते हैं।
64. हे यहोवा, तू उनके कामों के अनुसार उन को बदला देगा।
65. तू उनका मन सुन्न कर देगा; तेरा शाप उन पर होगा।
66. हे यहोवा, तू अपने कोप से उन को खदेड़-खदेड़कर धरती पर से नाश कर देगा।

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