← John (9/21) → |
1. | फिर जाते हुए उसने एक मनुष्य को देखा, जो जन्म का अन्धा था। |
2. | और उसके चेलों ने उस से पूछा, हे रब्बी, किस ने पाप किया था कि यह अन्धा जन्मा, इस मनुष्य ने, या उसके माता पिता ने? |
3. | यीशु ने उत्तर दिया, कि न तो इस ने पाप किया था, न इस के माता पिता ने: परन्तु यह इसलिये हुआ, कि परमेश्वर के काम उस में प्रगट हों। |
4. | जिसने मुझे भेजा है; हमें उसके काम दिन ही दिन में करना अवश्य है: वह रात आनेवाली है जिस में कोई काम नहीं कर सकता। |
5. | जब तक मैं जगत में हूं, तब तक जगत की ज्योति हूं। |
6. | यह कहकर उसने भूमि पर थूका और उस थूक से मिट्टी सानी, और वह मिट्टी उस अन्धे की आंखों पर लगाकर। |
7. | उस से कहा; जा शीलोह के कुण्ड में धो ले, (जिस का अर्थ भेजा हुआ है) सो उसने जा कर धोया, और देखता हुआ लौट आया। |
8. | तब पड़ोसी और जिन्हों ने पहले उसे भीख मांगते देखा था, कहने लगे; क्या यह वही नहीं, जो बैठा भीख मांगा करता था? |
9. | कितनों ने कहा, यह वही है: औरों ने कहा, नहीं; परन्तु उसके समान है: उसने कहा, मैं वही हूं। |
10. | तब वे उस से पूछने लगे, तेरी आंखें क्योंकर खुल गईं? |
11. | उसने उत्तर दिया, कि यीशु नाम एक व्यक्ति ने मिट्टी सानी, और मेरी आंखों पर लगाकर मुझ से कहा, कि शीलोह में जा कर धो ले; सो मैं गया, और धोकर देखने लगा। |
12. | उन्होंने उस से पूछा; वह कहां है? उसने कहा; मैं नहीं जानता।। |
13. | लोग उसे जो पहिले अन्धा था फरीसियों के पास ले गए। |
14. | जिस दिन यीशु ने मिट्टी सानकर उस की आंखे खोलीं थी वह सब्त का दिन था। |
15. | फिर फरीसियों ने भी उस से पूछा; तेरी आंखें किस रीति से खुल गईं? उस न उन से कहा; उसने मेरी आंखो पर मिट्टी लगाई, फिर मैं ने धो लिया, और अब देखता हूं। |
16. | इस पर कई फरीसी कहने लगे; यह मनुष्य परमेश्वर की ओर से नहीं, क्योंकि वह सब्त का दिन नहीं मानता। औरों ने कहा, पापी मनुष्य क्योंकर ऐसे चिन्ह दिखा सकता है? सो उन में फूट पड़ी। |
17. | उन्होंने उस अन्धे से फिर कहा, उसने जो तेरी आंखे खोलीं, तू उसके विषय में क्या कहता है? उसने कहा, यह भविष्यद्वक्ता है। |
18. | परन्तु यहूदियों को विश्वास न हुआ कि यह अन्धा था और अब देखता है जब तक उन्होंने उसके माता-पिता को जिस की आंखे खुल गईं थी, बुलाकर। |
19. | उन से न पूछा, कि क्या यह तुम्हारा पुत्र है, जिसे तुम कहते हो कि अन्धा जन्मा था? फिर अब क्योंकर देखता है? |
20. | उसके माता-पिता ने उत्तर दिया; हम तो जानते हैं कि यह हमारा पुत्र है, और अन्धा जन्मा था। |
21. | परन्तु हम यह नहीं जानते हैं कि अब क्योंकर देखता है; और न यह जानते हैं, कि किस ने उस की आंखे खोलीं; वह सयाना है; उसी से पूछ लो; वह अपने विषय में आप कह देगा। |
22. | ये बातें उसके माता-पिता ने इसलिये कहीं क्योंकि वे यहूदियों से डरते थे; क्योंकि यहूदी एका कर चुके थे, कि यदि कोई कहे कि वह मसीह है, तो आराधनालय से निकाला जाए। |
23. | इसी कारण उसके माता-पिता ने कहा, कि वह सयाना है; उसी से पूछ लो। |
24. | तब उन्होंने उस मनुष्य को जो अन्धा था दूसरी बार बुलाकर उस से कहा, परमेश्वर की स्तुति कर; हम तो जानते हैं कि वह मनुष्य पापी है। |
25. | उसने उत्तर दिया: मैं नहीं जानता कि वह पापी है या नहीं: मैं एक बात जानता हूं कि मैं अन्धा था और अब देखता हूं। |
26. | उन्होंने उस से फिर कहा, कि उसने तेरे साथ क्या किया? और किस तेरह तेरी आंखें खोलीं? |
27. | उसने उन से कहा; मैं तो तुम से कह चुका, और तुम ने ना सुना; अब दूसरी बार क्यों सुनना चाहते हो? क्या तुम भी उसके चेले होना चाहते हो? |
28. | तब वे उसे बुरा-भला कहकर बोले, तू ही उसका चेला है; हम तो मूसा के चेले हैं। |
29. | हम जानते हैं कि परमेश्वर ने मूसा से बातें कीं; परन्तु इस मनुष्य को नहीं जानते की कहां का है। |
30. | उसने उन को उत्तर दिया; यह तो अचम्भे की बात है कि तुम नहीं जानते की कहां का है तौभी उसने मेरी आंखें खोल दीं। |
31. | हम जानते हैं कि परमेश्वर पापियों की नहीं सुनता परन्तु यदि कोई परमेश्वर का भक्त हो, और उस की इच्छा पर चलता है, तो वह उस की सुनता है। |
32. | जगत के आरम्भ से यह कभी सुनने में नहीं आया, कि किसी ने भी जन्म के अन्धे की आंखे खोली हों। |
33. | यदि यह व्यक्ति परमेश्वर की ओर से न होता, तो कुछ भी नहीं कर सकता। |
34. | उन्होंने उसको उत्तर दिया, कि तू तो बिलकुल पापों में जन्मा है, तू हमें क्या सिखाता है? और उन्होंने उसे बाहर निकाल दिया।। |
35. | यीशु ने सुना, कि उन्होंने उसे बाहर निकाल दिया है; और जब उसे भेंट हुई तो कहा, कि क्या तू परमेश्वर के पुत्र पर विश्वास करता है? |
36. | उसने उत्तर दिया, कि हे प्रभु; वह कौन है कि मैं उस पर विश्वास करूं? |
37. | यीशु ने उस से कहा, तू ने उसे देखा भी है; और जो तेरे साथ बातें कर रहा है वही है। |
38. | उसने कहा, हे प्रभु, मैं विश्वास करता हूं: और उसे दंडवत किया। |
39. | तब यीशु ने कहा, मैं इस जगत में न्याय के लिये आया हूं, ताकि जो नहीं देखते वे देखें, और जो देखते हैं वे अन्धे हो जाएं। |
40. | जो फरीसी उसके साथ थे, उन्होंने ये बातें सुन कर उस से कहा, क्या हम भी अन्धे हैं? |
41. | यीशु ने उन से कहा, यदि तुम अन्धे होते तो पापी न ठहरते परन्तु अब कहते हो, कि हम देखते हैं, इसलिये तुम्हारा पाप बना रहता है।। |
← John (9/21) → |