← Job (3/42) → |
1. | इसके बाद अय्यूब मुंह खोल कर अपने जन्मदिन को धिक्कारने |
2. | और कहने लगा, |
3. | वह दिन जल जाए जिस में मैं उत्पन्न हुआ, और वह रात भी जिस में कहा गया, कि बेटे का गर्भ रहा। |
4. | वह दिन अन्धियारा हो जाए! ऊपर से ईश्वर उसकी सुधि न ले, और न उस में प्रकाश होए। |
5. | अन्धियारा और मृत्यु की छाया उस पर रहे। बादल उस पर छाए रहें; और दिन को अन्धेरा कर देने वाली चीज़ें उसे डराएं। |
6. | घोर अन्धकार उस रात को पकड़े; वर्ष के दिनों के बीच वह आनन्द न करने पाए, और न महीनों में उसकी गिनती की जाए। |
7. | सुनो, वह रात बांझ हो जाए; उस में गाने का शब्द न सुन पड़े |
8. | जो लोग किसी दिन को धिक्कारते हैं, और लिब्यातान को छेड़ने में निपुण हैं, उसे धिक्कारें। |
9. | उसकी संध्या के तारे प्रकाश न दें; वह उजियाले की बाट जोहे पर वह उसे न मिले, वह भोर की पलकों को भी देखने न पाए; |
10. | क्योंकि उसने मेरी माता की कोख को बन्द न किया और कष्ट को मेरी दृष्टि से न छिपाया। |
11. | मैं गर्भ ही में क्यों न मर गया? पेट से निकलते ही मेरा प्राण क्यों न छूटा? |
12. | मैं घुटनों पर क्यों लिया गया? मैं छातियों को क्यों पीने पाया? |
13. | ऐसा न होता तो मैं चुपचाप पड़ा रहता, मैं सोता रहता और विश्राम करता, |
14. | और मैं पृथ्वी के उन राजाओं और मन्त्रियों के साथ होता जिन्होंने अपने लिये सुनसान स्थान बनवा लिये, |
15. | वा मैं उन राजकुमारों के साथ होता जिनके पास सोना था जिन्होंने अपने घरों को चान्दी से भर लिया था; |
16. | वा मैं असमय गिरे हुए गर्भ की नाईं हुआ होता, वा ऐसे बच्चों के समान होता जिन्होंने उजियाले को कभी देखा ही न हो। |
17. | उस दशा में दुष्ट लोग फिर दु:ख नहीं देते, और थके मांदे विश्राम पाते हैं। |
18. | उस में बन्धुए एक संग सुख से रहते हैं; और परिश्रम कराने वाले का शब्द नहीं सुनते। |
19. | उस में छोटे बड़े सब रहते हैं, और दास अपने स्वामी से स्वतन्त्र रहता है। |
20. | दु:खियों को उजियाला, और उदास मन वालों को जीवन क्यों दिया जाता है? |
21. | वे मृत्यु की बाट जोहते हैं पर वह आती नहीं; और गड़े हुए धन से अधिक उसकी खोज करते हैं; |
22. | वे क़ब्र को पहुंचकर आनन्दित और अत्यन्त मगन होते हैं। |
23. | उजियाला उस पुरुष को क्यों मिलता है जिसका मार्ग छिपा है, जिसके चारों ओर ईश्वर ने घेरा बान्ध दिया है? |
24. | मुझे तो रोटी खाने की सन्ती लम्बी लम्बी सांसें आती हैं, और मेरा विलाप धारा की नाईं बहता रहता है। |
25. | क्योंकि जिस डरावनी बात से मैं डरता हूँ, वही मुझ पर आ पड़ती है, और जिस बात से मैं भय खाता हूँ वही मुझ पर आ जाती है। |
26. | मुझे न तो चैन, न शान्ति, न विश्राम मिलता है; परन्तु दु:ख ही आता है। |
← Job (3/42) → |