← Job (21/42) → |
1. | तब अय्यूब ने कहा, |
2. | चित्त लगाकर मेरी बात सुनो; और तुम्हारी शान्ति यही ठहरे। |
3. | मेरी कुछ तो सहो, कि मैं भी बातें करूं; और जब मैं बातें कर चुकूं, तब पीछे ठट्ठा करना। |
4. | क्या मैं किसी मनुष्य की दोहाई देता हूँ? फिर मैं अधीर क्यों न होऊं? |
5. | मेरी ओर चित्त लगाकर चकित हो, और अपनी अपनी उंगली दांत तले दबाओ। |
6. | जब मैं स्मरण करता तब मैं घबरा जाता हूँ, और मेरी देह में कंपकंपी लगती है। |
7. | क्या कारण है कि दुष्ट लोग जीवित रहते हैं, वरन बूढ़े भी हो जाते, और उनका धन बढ़ता जाता है? |
8. | उनकी सन्तान उनके संग, और उनके बाल-बच्चे उनकी आंखों के साम्हने बने रहते हैं। |
9. | उनके घर में भयरहित कुशल रहता है, और ईश्वर की छड़ी उन पर नहीं पड़ती। |
10. | उनका सांड़ गाभिन करता और चूकता नहीं, उनकी गायें बियाती हैं और बच्चा कभी नहीं गिरातीं। |
11. | वे अपने लड़कों को झुण्ड के झुण्ड बाहर जाने देते हैं, और उनके बच्चे नाचते हैं। |
12. | वे डफ और वीणा बजाते हुए गाते, और बांसुरी के शब्द से आनन्दित होते हैं। |
13. | वे अपने दिन सुख से बिताते, और पल भर ही में अधोलोक में उतर जाते हैं। |
14. | तौभी वे ईश्वर से कहते थे, कि हम से दूर हो! तेरी गति जानने की हम को इच्छा नहीं रहती। |
15. | सर्वशक्तिमान क्या है, कि हम उसकी सेवा करें? और जो हम उस से बिनती भी करें तो हमें क्या लाभ होगा? |
16. | देखो, उनका कुशल उनके हाथ में नहीं रहता, दुष्ट लोगों का विचार मुझ से दूर रहे। |
17. | कितनी बार दुष्टों का दीपक बुझ जाता है, और उन पर विपत्ति आ पड़ती है; और ईश्वर क्रोध कर के उनके बांट में शोक देता है, |
18. | और वे वायु से उड़ाए हुए भूसे की, और बवण्डर से उड़ाई हुई भूसी की नाईं होते हैं। |
19. | ईश्वर उसके अधर्म का दण्ड उसके लड़के-बालों के लिये रख छोड़ता है, वह उसका बदला उसी को दे, ताकि वह जान ले। |
20. | दुष्ट अपना नाश अपनी ही आंखों से देखे, और सर्वशक्तिमान की जलजलाहट में से आप पी ले। |
21. | क्योंकि जब उसके महीनों की गिनती कट चुकी, तो अपने बाद वाले घराने से उसका क्या काम रहा। |
22. | क्या ईश्वर को कोई ज्ञान सिखाएगा? वह तो ऊंचे पद पर रहने वालों का भी न्याय करता है। |
23. | कोई तो अपने पूरे बल में बड़े चैन और सुख से रहता हुआ मर जाता है। |
24. | उसकी दोहनियां दूध से और उसकी हड्डियां गूदे से भरी रहती हैं। |
25. | और कोई अपने जीव में कुढ़ कुढ़कर बिना सुख भोगे मर जाता है। |
26. | वे दोनोंबराबर मिट्टी में मिल जाते हैं, और कीड़े उन्हें ढांक लेते हैं। |
27. | देखो, मैं तुम्हारी कल्पनाएं जानता हूँ, और उन युक्तियों को भी, जो तुम मेरे विषय में अन्याय से करते हो। |
28. | तुम कहते तो हो कि रईस का घर कहां रहा? दुष्टों के निवास के डेरे कहां रहे? |
29. | परन्तु क्या तुम ने बटोहियों से कभी नहीं पूछा? क्या तुम उनके इस विषय के प्रमाणों से अनजान हो, |
30. | कि विपत्ति के दिन के लिये दुर्जन रखा जाता है; और महाप्रलय के समय के लिये ऐसे लोग बचाए जाते हैं? |
31. | उसकी चाल उसके मुंह पर कौन कहेगा? और उसने जो किया है, उसका पलटा कौन देगा? |
32. | तौभी वह क़ब्र को पहुंचाया जाता है, और लोग उस क़ब्र की रखवाली करते रहते हैं। |
33. | नाले के ढेले उसको सुखदायक लगते हैं; और जैसे पूर्वकाल के लोग अनगिनित जा चुके, वैसे ही सब मनुष्य उसके बाद भी चले जाएंगे। |
34. | तुम्हारे उत्तरों में तो झूठ ही पाया जाता है, इसलिये तुम क्यों मुझे व्यर्थ शान्ति देते हो? |
← Job (21/42) → |