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1. | फिर छठवें वर्ष के छठवें महीने के पांचवें दिन को जब मैं अपने घर में बैठा था, और यहूदियों के पुरनिये मेरे साम्हने बैठे थे, तब प्रभु यहोवा की शक्ति वहीं मुझ पर प्रगट हुई। |
2. | और मैं ने देखा कि आग का सा एक रूप दिखई देता है; उसकी कमर से नीचे की ओर आग है, और उसकी कमर से ऊपर की ओर झलकाए हुए पीतल की झलक सी कुछ है। |
3. | उसने हाथ सा कुछ बढ़ा कर मेरे सिर के बाल पकड़े; तब आत्मा ने मुझे पृथ्वी और आकाश के बीच में उठा कर परमेश्वर के दिखाए हुए दर्शनों में यरूशलेम के मन्दिर के भीतर, आंगन के उस फाटक के पास पहुचा दिया जिसका मुंह उत्तर की ओर है; और जिस में उस जलन उपजाने वाली प्रतिमा का स्थान था जिसके कारण द्वेष उपजता है। |
4. | फिर वहां इस्राएल के परमेश्वर का तेज वैसा ही था जैसा मैं ने मैदान में देखा था। |
5. | उसने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, अपनी आंखें उत्तर की ओर उठा कर देख। सो मैं ने अपनी आंखें उत्तर की ओर उठा कर देखा कि वेदी के फाटक की उत्तर की ओर उसके प्रवेश स्थान ही में वह डाह उपजाने वाली प्रतिमा है। |
6. | तब उसने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, क्या तू देखता है कि ये लोग क्या कर रहे हैं? इस्राएल का घराना क्या ही बड़े घृणित काम यहां करता है, ताकि मैं अपने पवित्र स्थान से दूर हो जाऊं; परन्तु तू इन से भी अधिक घृणित काम देखेगा। |
7. | तब वह मुझे आंगन के द्वार पर ले गया, और मैं ने देखा, कि भीत में एक छेद है। |
8. | तब उसने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, भीत को फोड़; तो मैं ने भीत को फोड़कर क्या देखा कि एक द्वार है |
9. | उसने मुझ से कहा, भीतर जा कर देख कि ये लोग यहां कैसे कैसे और अति घृणित काम कर रहे हैं। |
10. | सो मैं ने भीतर जा कर देखा कि चारों ओर की भीत पर जाति जाति के रेंगने वाले जन्तुओं और घृणित पशुओं और इस्राएल के घराने की सब मूरतों के चित्र खिंचे हुए हैं। |
11. | और इस्राएल के घराने के पुरनियों में से सत्तर पुरुष जिन के बीच में शापान का पुत्र याजन्याह भी है, वे उन चित्रों के साम्हने खड़े हैं, और हर एक पुरुष अपने हाथ में घूपदान लिये हुए है; और धूप के धूएं के बादल की सुगन्ध उठ रही है। |
12. | तब उसने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, क्या तू ने देखा है कि इस्राएल के घराने के पुरनिये अपनी अपनी नक्काशी वाली कोठरियों के भीतर अर्थात अन्धियारे में क्या कर रहे हैं? वे कहते हैं कि यहोवा हम को नहीं देखता; यहोवा ने देश को त्याग दिया है। |
13. | फिर उसने मुझ से कहा, तू इन से और भी अति घृणित काम देखेगा जो वे करते हैं। |
14. | तब वह मुझे यहोवा के भवन के उस फाटक के पास ले गया जो उत्तर की ओर था और वहां स्त्रियाँ बैठी हुई तम्मूज के लिये रो रही थीं। |
15. | तब उसने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, क्या तू ने यह देखा है? फिर इन से भी बड़े घृणित काम तू देखेगा। |
16. | तब वह मुझे यहोवा के भवन के भीतरी आंगन में ले गया; और वहां यहोवा के भवन के द्वार के पास ओसारे और वेदी के बीच कोई पच्चीस पुरुष अपनी पीठ यहोवा के भवन की ओर और अपने मुख पूर्व की ओर किए हुए थे; और वे पूर्व दिशा की ओर सूर्य को दण्डवत कर रहे थे। |
17. | तब उसने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, क्या तू ने यह देखा? क्या यहूदा के घराने के लिये घृणित कामों का करना जो वे यहां करते हैं छोटी बात है? उन्होंने अपने देश को उपद्रव से भर दिया, और फिर यहां आकर मुझे रिस दिलाते हैं। वरन वे डाली को अपनी नाक के आगे लिये रहते हैं। |
18. | इसलिये मैं भी जलजलाहट के साथ काम करूंगा, न मैं दया करूंगा और न मैं कोमलता करूंगा; और चाहे वे मेरे कानों में ऊंचे शब्द से पुकारें, तौभी मैं उनकी बात न सुनूंगा। |
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