Ezekiel (40/48)  

1. हमारी बंधुआई के पच्चीसवें वर्ष अर्थात यरूशलेम नगर के ले लिये जाने के बाद चौदहवें वर्ष के पहिले महीने के दसवें दिन को, यहोवा की शक्ति मुझ पर हुई, और उसने मुझे वहां पहुंचाया।
2. अपने दर्शनों में परमेश्वर ने मुझे इस्राएल के देश में पहुंचाया और वहां एक बहुत ऊंचे पहाड़ पर खड़ा किया, जिस पर दक्खिन ओर मानो किसी नगर का आकार था।
3. जब वह मुझे वहां ले गया, तो मैं ने क्या देखा कि पीतल का रूप धरे हुए और हाथ में सन का फीता और मापने का बांस लिये हुए एक पुरुष फाटक में खड़ा है।
4. उस पुरुष ने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, अपनी आंखों से देख, और अपने कानों से सुन; और जो कुछ मैं तुझे दिखाऊंगा उस सब पर ध्यान दे, क्योंकि तू इसलिये यहां पहुंचाया गया है कि मैं तुझे ये बातें दिखाऊं; और जो कुछ तू देखे वह इस्राएल के घराने को बताए।
5. और देखो, भवन के बाहर चारों ओर एक भीत थी, और उस पुरुष के हाथ में मापने का बांस था, जिसकी लम्बाई ऐसे छ: हाथ की थी जो साधारण हाथों से चौवा भर अधिक है; सो उसने भीत की मोटाई मापकर बांस भर की पाई, फिर उसकी ऊंचाई भी मापकर बांस भर की पाई।
6. तब वह उस फाटक के पास आया जिसका मुंह पूर्व की ओर था, और उसकी सीढ़ी पर चढ़कर फाटक की दोनों डेवढिय़ों की चौड़ाई मापकर एक एक बांस भर की पाई।
7. और पहरे वाली कोठरियां बांस भर लम्बी और बांस भर चौड़ी थी; और दो कोठरियों का अन्तर पांच हाथ का था; और फाटक की डेवढ़ी जो फाटक के ओसारे के पास भवन की ओर थी, वह भी बांस भर की थी।
8. तब उसने फाटक का वह ओसारा जो भवन के साम्हने था, मापकर बांस भर का पाया।
9. और उसने फाटक का ओसारा माप कर आठ हाथ का पाया, और उसके खम्भे दो दो हाथ के पाए, और फाटक का ओसारा भवन के साम्हने था।
10. और पूवीं फाटक की दोनों ओर तीन तीन पहरे वाली कोठरियां थीं जो सब एक ही माप की थीं, और दोनों ओर के खम्भे भी एक ही माप के थे।
11. फिर उस न फाटक के द्वार की चौड़ाई माप कर दस हाथ की पाई; और फाटक की लम्बाई माप कर तेरह हाथ की पाई।
12. और दोनों ओर की पहरे वाली कोठरियों के आगे हाथ भर का स्थान था और दोनों ओर कोठरियां छ: छ: हाथ की थीं।
13. फिर उसने फाटक को एक ओर की पहरे वाली कोठरी की छत से ले कर दूसरी ओर की पहरे वाली कोठरी की छत तक माप कर पच्चीस हाथ की दूरी पाई, और द्वार आम्हने-साम्हने थे।
14. फिर उसने साठ हाथ के खम्भे मापे, और आंगन, फाटक के आस पास, खम्भों तक था।
15. ओर फाटक के बाहरी द्वार के आगे से ले कर उसके भीतरी ओसारे के आगे तक पचास हाथ का अन्तर था।
16. और पहरे वाली कोठरियों में, और फाटक के भीतर चारों ओर कोठरियों के बीच के खम्भे के बीच बीच में झिलमिलीदार खिड़कियां थी, और खम्भों के ओसारे में भी वैसी ही थी; और फाटक के भीतर के चारों ओर खिड़कियां थीं; और हर एक खम्भे पर खजूर के पेड़ खुदे हुए थे।
17. तब वह मुझे बाहरी आंगन में ले गया; और उस आंगन के चारों ओर कोठरियां थीं; और एक फर्श बना हुआ था; जिस पर तीस कोठरियां बनी थीं।
18. और यह फर्श अर्थात निचला फर्श फाटकों से लगा हुआ था और उनकी लम्बाई के अनुसार था।
19. फिर उसने निचले फाटक के आगे से ले कर भीतरी आंगन के बाहर के आगे तक मापकर सौ हाथ पाए; वह पूर्व और उत्तर दोनों ओर ऐसा ही था।
20. तब बाहरी आंगन के उत्तरमुखी फाटक की लम्बाई और चौड़ाई उसने मापी।
21. और उसकी दोनों ओर तीन तीन पहरे वाली कोठरियां थीं, और इसके भी खम्भों के ओसारे की माप पहिले फाटक के अनुसार थी; इसकी लम्बाई पचास और चौड़ाई पच्चीस हाथ की थी।
22. और इसकी भी खिड़कियों और खम्भों के ओसारे और खजूरों की माप पूर्वमुखी फाटक की सी थी; और इस पर चढ़ने को सात सीढिय़ां थीं; और उनके साम्हने इसका ओसारा था।
23. और भीतरी आंगन की उत्तर और पूर्व ओर दूसरे फाटकों के साम्हने फाटक थे और उसने फाटकों की दूरी माप कर सौ हाथ की पाई।
24. फिर वह मुझे दक्खिन ओर ले गया, और दक्खिन ओर एक फाटक था; और उसने इसके खम्भे और खम्भों का ओसारा माप कर इनकी वैसी ही माप पाई।
25. और उन खिड़कियों की नाईं इसके और इसके खम्भों के ओसारों के चारों ओर भी खिड़कियां थीं; इसकी भी लम्बाई पचास और चौड़ाई पच्चीस हाथ की थी।
26. और इस में भी चढ़ने के लिये सात सीढिय़ां थीं और उनके साम्हने खम्भों का ओसारा था; और उसके दोनों ओर के खम्भों पर खजूर के पेड़ खुदे हुए थे।
27. और दक्खिन ओर भी भीतरी आंगन का एक फाटक था, और उसने दक्खिन ओर के दोनों फाटकों की दूरी माप कर सौ हाथ की पाई।
28. तब वह दक्खिनी फाटक से हो कर मुझे भीतरी आंगन में ले गया, और उसने दक्खिनी फाटक को माप कर वैसा ही पाया।
29. अर्थात इसकी भी पहरे वाली कोठरियां, और खम्भे, और खम्भों का ओसारा, सब वैसे ही थे; और इसके और इसके खम्भों के ओसारे के भी चारों ओर भी खिड़कियां थीं; और इसकी लम्बाई पचास और चौड़ाई पच्चीस हाथ की थी।
30. और इसके चारों ओर के खम्भों का ओसारा भी पच्चीस हाथ लम्बा, और पचास हाथ चौड़ा था।
31. और इसका खम्भों का ओसारा बाहरी आंगन की ओर था, और इसके खम्भों पर भी खजूर के पेड़ खुदे हुए थे, और इस पर चढ़ने को आठ सीढिय़ां थीं।
32. फिर वह पुरुष मुझे पूर्व की ओर भीतरी आंगन में ले गया, और उस ओर के फाटक को माप कर वैसा ही पाया।
33. और इसकी भी पहरे वाली कोठरियां और खम्भे और खम्भों का ओसारा, सब वैसे ही थे; और इसके और इसके खम्भों के ओसारे के चारों ओर भी खिड़कियां थीं; इसकी लम्बाई पचास और चौड़ाई पच्चीस हाथ की थी।
34. इसका ओसारा भी बाहरी आंगन की ओर था, और उसके दोनों ओर के खम्भों पर खजूर के पेड़ खुदे हुए थे; और इस पर भी चढ़ने को आठ सीढिय़ां थीं।
35. फिर उस पुरुष ने मुझे उत्तरी फाटक के पास ले जा कर उसे मापा, और उसकी भी माप वैसी ही पाई।
36. उसके भी पहरे वाली कोठरियां और खम्भे और उनका ओसारा था; और उसके भी चारों ओर खिड़कियां थीं; उसकी लम्बाई पचास और चौड़ाई पच्चीस हाथ की थी।
37. उसके खम्भे बाहरी आंगन की ओर थे, और उन पर भी दोनोंओर खजूर के पेड़ खुदे हुए थे; और उस में चढ़ने को आठ सीढिय़ां थीं।
38. फिर फाटकों के पास के खम्भों के निकट द्वार समेत कोठरी थी, जहां होमबलि धोया जाता था।
39. और होमबलि, पापबलि, और दोषबलि के पशुओं के वध करने के लिये फाटक के ओसारे के पास उसके दोनों ओर दो दो मेज़ें थीं।
40. और फाटक की एक बाहरी अलंग पर अर्थात उत्तरी फाटक के द्वार की चढ़ाई पर दो मेज़ें थीं; और उसकी दूसरी बाहरी अलंग पर भी, जो फाटक के ओसारे के पास थी, दो मेजें थीं।
41. फाटक की दोनों अलंगों पर चार चार मेजें थीं, सो सब मिलकर आठ मेज़ें थीं, जो बलिपशु वध करने के लिये थीं।
42. फिर होमबलि के लिये तराशे हुए पत्थर की चार मेज़ें थीं, जो डेढ़ हाथ लम्बी, डेढ़ हाथ चौड़ी, और हाथ भर ऊंची थीं; उन पर होमबलि और मेलबलि के पशुओं को वध करने के हथियार रखे जाते थे।
43. भीतर चारों ओर चौवे भर की अंकडिय़ां लगी थीं, और मेज़ों पर चढ़ावे का मांस रखा हुआ था।
44. और भीतरी आंगन की उत्तरी फाटक की अलंग के बाहर गाने वालों की कोठरियां थीं जिनके द्वार दक्खिन ओर थे; और पूवीं फाटक की अलंग पर एक कोठरी थी, जिसका द्वार उत्तर ओर था।
45. उसने मुझ से कहा, यह कोठरी, जिसका द्वार दक्खिन की ओर है, उन याजकों के लिये है जो भवन की चौकसी करते हैं,
46. और जिस कोठरी का द्वार उत्तर ओर है, वह उन याजकों के लिये है जो वेदी की चौकसी करते हैं; ये सादोक की सन्तान हैं; और लेवियों में से यहोवा की सेवा टहल करने को केवल ये ही उसके समीप जाते हैं।
47. फिर उसने आंगन को माप कर उसे चौकोना अर्थात सौ हाथ लम्बा और सौ हाथ चौड़ा पाया; और भवन के साम्हने वेदी थी।
48. फिर वह मुझे भवन के ओसारे में ले गया, और ओसारे के दोनों ओर के खम्भों को माप कर पांच पांच हाथ का पाया; और दोनों ओर फाटक की चौड़ाई तीन तीन हाथ की थी।
49. ओसारे की लम्बाई बीस हाथ और चौड़ाई ग्यारह हाथ की थी; और उस पर चढ़ने को सीढिय़ां थीं; और दोनों ओर के खम्भों के पास लाटें थीं।

  Ezekiel (40/48)