Esther (2/10)  

1. इन बातों के बाद जब राजा क्षयर्ष की जलजलाहट ठंडी हो गई, तब उसने रानी वशती की, और जो काम उसने किया था, और जो उसके विषय में आज्ञा निकली थी उसकी भी सुधि ली।
2. तब राजा के सेवक जो उसके टहलुए थे, कहने लगे, राजा के लिये सुन्दर तथा युवती कुंवारियां ढूंढी जाएं।
3. और राजा ने अपने राज्य के सब प्रान्तों में लोगों को इसलिये नियुक्त किया कि वे सब सुन्दर युवती कुंवारियों को शूशन गढ़ के रनवास में इकट्ठा करें और स्त्रियों के रखवाले हेगे को जो राजा का खोजा था सौप दें; और शुद्ध करने के योग्य वस्तुएं उन्हें दी जाएं।
4. तब उन में से जो कुंवारी राजा की दृष्टि में उत्तम ठहरे, वह रानी वशती के स्थान पर पटरानी बनाई जाए। यह बात राजा को पसन्द आई और उसने ऐसा ही किया।
5. शूशन गढ़ में मोर्दकै नाम एक यहूदी रहता था, जो कीश नाम के एक बिन्यामीनी का परपोता, शिमी का पोता, और याईर का पुत्र था।
6. वह उन बन्धुओं के साथ यरूशलेम से बन्धुआई में गया था, जिन्हें बाबेल का राजा नबूकदनेस्सर, यहूदा के राजा यकोन्याह के संग बन्धुआ कर के ले गया था।
7. उसने हदस्सा नाम अपनी चचेरी बहिन को, जो एस्तेर भी कहलाती थी, पाला-पोसा था; क्योंकि उसके माता-मिता कोई न थे, और वह लड़की सुन्दर और रूपवती थी, और जब उसके माता-पिता मर गए, तब मोर्दकै ने उसको अपनी बेटी कर के पाला।
8. जब राजा की आज्ञा और नियम सुनाए गए, और बहुत सी युवती स्त्रियां, शूशन गढ़ में हेगे के अधिकार में इकट्ठी की गई, तब एस्तेर भी राजभवन में स्त्रियों के रखवाले हेगे के अधिकार में सौंपी गई।
9. और वह युवती स्त्री उसकी दृष्टि में अच्छी लगी; और वह उस से प्रसन्न हुआ, तब उसने बिना विलम्ब उसे राजभवन में से शुद्ध करने की वस्तुएं, और उसका भोजन, और उसके लिये चुनी हुई सात सहेलियां भी दीं, और उसको और उसकी सहेलियों को रनवास में सब से अच्छा रहने का स्थान दिया।
10. एस्तेर ने न अपनी जाति बताई थी, न अपना कुल; क्योंकि मोर्दकै ने उसको आज्ञा दी थी, कि उसे न बताना।
11. मोर्दकै तो प्रतिदिन रनवास के आंगन के साम्हने टहलता था ताकि जाने की एस्तेर कैसी है और उसके साथ क्या होगा?
12. जब एक एक कन्या की बारी हुई, कि वह क्षयर्ष राजा के पास जाए, ( और यह उस समय हुउा जब उसके साथ स्त्रियों के लिये ठहराए हुए नियम के अनुसार बारह माह तक व्यवहार किया गया था; अर्थात उनके शुद्ध करने के दिन इस रीति से बीत गए, कि छ: माह तक गन्धरस का तेल लगाया जाता था, और छ: माह तक सुगन्धदव्य, और स्त्रियों के शुद्ध करने का और और सामान लगाया जाता था )।
13. इस प्रकार से वह कन्या जब राजा के पास जाती थी, तब जो कुछ वह चाहती कि रनवास से राजभवन में ले जाए, वह उसको दिया जाता था।
14. सांझ को तो वह जाती थी और बिहान को वह लौट कर रनवास के दूसरे घर में जा कर रखेलियों के रखवाले राजा के खोजे शाशगज के अधिकार में हो जाती थी, और राजा के पास फिर नहीं जाती थी। और यदि राजा उस से प्रसन्न हो जाता था, तब वह नाम ले कर बुलाई जाती थी।
15. जब मोर्दकै के चाचा अबीहैल की बेटी एस्तेर, जिस को मोर्दकै ने बेटी मान कर रखा था, उसकी बारी आई कि राजा के पास जाए, तब जो कुछ स्त्रियों के रखवाले राजा के खोजे हेगे ने उसके लिये ठहराया था, उस से अधिक उसने और कुछ न मांगा। और जितनों ने एस्तेर को देखा, वे सब उस से प्रसन्न हुए।
16. यों एस्तेर राजभवन में राजा क्षयर्ष के पास उसके राज्य के सातवें वर्ष के तेबेत नाम दसवें महीने में पहुंचाई गई।
17. और राजा ने एस्तेर को और सब स्त्रियों से अधिक प्यार किया, और और सब कुंवारियों से अधिक उसके अनुग्रह और कृपा की दृष्टि उसी पर हुई, इस कारण उसने उसके सिर पर राजमुकुट रखा और उसको वशती के स्थान पर रानी बनाया।
18. तब राजा ने अपने सब हाकिमों और कर्मचारियों की बड़ी जेवनार कर के, उसे एस्तेर की जेवनार कहा; और प्रान्तोंमें छुट्टी दिलाई, और अपनी उदारता के योग्य इनाम भी बांटे।
19. जब कुंवारियां दूसरी बार इकट्ठी की गई, तब मोर्दकै राजभवन के फाटक में बैठा था।
20. और एस्तेर ने अपनी जाति और कुल का पता नहीं दिया था, क्योंकि मोर्दकै ने उसको ऐसी आज्ञा दी थी कि न बताए; और एस्तेर मोर्दकै की बात ऐसी मानती थी जैसे कि उसके यहां अपने पालन पोषण के समय मानती थी।
21. उन्हीं दिनों में जब मोर्दकै राजा के राजभवन के फाटक में बैठा करता था, तब राजा के खोजे जो द्वारपाल भी थे, उन में से बिकतान और तेरेश नाम दो जनों ने राजा क्षयर्ष से रूठकर उस पर हाथ चलाने की युक्ति की।
22. यह बात मोर्दकै को मालूम हुई, और उसने एस्तेर रानी को यह बात बताई, और एस्तेर ने मोर्दकै का नाम ले कर राजा को चितौनी दी।
23. तब जांच पड़ताल होने पर यह बात सच निकली और वे दोनों वृक्ष पर लटका दिए गए, और यह वृत्तान्त राजा के साम्हने इतिहास की पुस्तक में लिख लिया गया।

  Esther (2/10)