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1. | हे बालकों, प्रभु में अपने माता पिता के आज्ञाकारी बनो, क्योंकि यह उचित है। |
2. | अपनी माता और पिता का आदर कर (यह पहिली आज्ञा है, जिस के साथ प्रतिज्ञा भी है)। |
3. | कि तेरा भला हो, और तू धरती पर बहुत दिन जीवित रहे। |
4. | और हे बच्चे वालों अपने बच्चों को रिस न दिलाओ परन्तु प्रभु की शिक्षा, और चितावनी देते हुए, उन का पालन-पोषण करो।। |
5. | हे दासो, जो लोग शरीर के अनुसार तुम्हारे स्वामी हैं, अपने मन की सीधाई से डरते, और कांपते हुए, जैसे मसीह की, वैसे ही उन की भी आज्ञा मानो। |
6. | और मनुष्यों को प्रसन्न करने वालों की नाईं दिखाने के लिये सेवा न करो, पर मसीह के दासों की नाईं मन से परमेश्वर की इच्छा पर चलो। |
7. | और उससेवा को मनुष्यों की नहीं, परन्तु प्रभु की जानकर सुइच्छा से करो। |
8. | क्योंकि तुम जानते हो, कि जो कोई जैसा अच्छा काम करेगा, चाहे दास हो, चाहे स्वतंत्र; प्रभु से वैसा ही पाएगा। |
9. | और हे स्वामियों, तुम भी धमकियां छोड़कर उन के साथ वैसा ही व्यवहार करो, क्योंकि जानते हो, कि उन का और तुम्हारा दोनों का स्वामी स्वर्ग में है, और वह किसी का पक्ष नहीं करता।। |
10. | निदान, प्रभु में और उस की शक्ति के प्रभाव में बलवन्त बनो। |
11. | परमेश्वर के सारे हथियार बान्ध लो; कि तुम शैतान की युक्तियों के साम्हने खड़े रह सको। |
12. | क्योंकि हमारा यह मल्लयुद्ध, लोहू और मांस से नहीं, परन्तु प्रधानों से और अधिकारियों से, और इस संसार के अन्धकार के हाकिमों से, और उस दुष्टता की आत्मिक सेनाओं से है जो आकाश में हैं। |
13. | इसलिये परमेश्वर के सारे हथियार बान्ध लो, कि तुम बुरे दिन में साम्हना कर सको, और सब कुछ पूरा कर के स्थिर रह सको। |
14. | सो सत्य से अपनी कमर कसकर, और धार्मीकता की झिलम पहिन कर। |
15. | और पांवों में मेल के सुसमाचार की तैयारी के जूते पहिन कर। |
16. | और उन सब के साथ विश्वास की ढाल ले कर स्थिर रहो जिस से तुम उस दुष्ट के सब जलते हुए तीरों को बुझा सको। |
17. | और उद्धार का टोप, और आत्मा की तलवार जो परमेश्वर का वचन है, ले लो। |
18. | और हर समय और हर प्रकार से आत्मा में प्रार्थना, और बिनती करते रहो, और इसी लिये जागते रहो, कि सब पवित्र लोगों के लिये लगातार बिनती किया करो। |
19. | और मेरे लिये भी, कि मुझे बोलने के समय ऐसा प्रबल वचन दिया जाए, कि मैं हियाव से सुसमाचार का भेद बता सकूं जिस के लिये मैं जंजीर से जकड़ा हुआ राजदूत हूं। |
20. | और यह भी कि मैं उस के विषय में जैसा मुझे चाहिए हियाव से बोलूं।। |
21. | और तुखिकुस जो प्रिय भाई और प्रभु में विश्वासयोग्य सेवक है तुम्हें सब बातें बताएगा, कि तुम भी मेरी दशा जानो कि मैं कैसा रहता हूं। |
22. | उसे मैं ने तुम्हारे पास इसी लिये भेजा है, कि तुम हमारी दशा को जानो, और वह तुम्हारे मनों को शान्ति दे।। |
23. | परमेश्वर पिता और प्रभु यीशु मसीह की ओर से भाइयों को शान्ति और विश्वास सहित प्रेम मिले। |
24. | जो हमारे प्रभु यीशु मसीह से सच्चा प्रेम रखते हैं, उन सब पर अनुग्रह होता रहे।। |
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