Deuteronomy (27/34)  

1. फिर इस्राएल के वृद्ध लोगों समेत मूसा ने प्रजा के लोगों को यह आज्ञा दी, कि जितनी आज्ञाएं मैं आज तुम्हें सुनाता हूं उन सब को मानना।
2. और जब तुम यरदन पार होके उस देश में पहुंचो, जो तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है, तब बड़े बड़े पत्थर खड़े कर लेना, और उन पर चूना पोतना;
3. और पार होने के बाद उन पर इस व्यवस्था के सारे वचनों को लिखना, इसलिये कि जो देश तेरे पूर्वजों का परमेश्वर यहोवा अपने वचन के अनुसार तुझे देता है, और जिस में दूध और मधु की धाराएं बहती हैं, उस देश में तू जाने पाए।
4. फिर जिन पत्थरों के विषय में मैं ने आज आज्ञा दी है, उन्हें तुम यरदन के पार हो कर एबाल पहाड़ पर खड़ा करना, और उन पर चूना पोतना।
5. और वहीं अपने परमेश्वर यहोवा के लिये पत्थरों की एक वेदी बनाना, उन पर कोई औजार न चलाना।
6. अपने परमेश्वर यहोवा की वेदी अनगढ़े पत्थरों की बनाकर उन पर उसके लिये होमबलि चढ़ाना;
7. और वहीं मेलबलि भी चढ़ाकर भोजन करना, और अपने परमेश्वर यहोवा के सम्मुख आनन्द करना।
8. और उन पत्थरों पर इस व्यवस्था के सब वचनों को शुद्ध रीति से लिख देना।।
9. फिर मूसा और लेवीय याजकों ने सब इस्राएलियों से यह भी कहा, कि हे इस्राएल, चुप रहकर सुन; आज के दिन तू अपने परमेश्वर यहोवा की प्रजा हो गया है।
10. इसलिये अपने परमेश्वर यहोवा की बात मानना, और उसकी जो जो आज्ञा और विधि मैं आज तुझे सुनाता हूं उनका पालन करना।
11. फिर उसी दिन मूसा ने प्रजा के लोगों को यह आज्ञा दी,
12. कि जब तुम यरदन पार हो जाओ तब शिमौन, लेवी, यहूदा, इस्साकार, युसुफ, और बिन्यामीन, ये गिरिज्जीम पहाड़ पर खडे हो कर आशीर्वाद सुनाएं।
13. और रूबेन, गाद, आशेर, जबूलून, दान, और नप्ताली, ये एबाल पहाड़ पर खड़े हो के शाप सुनाएं।
14. तब लेवीय लोग सब इस्राएली पुरूषों से पुकार के कहें,
15. कि शापित हो वह मनुष्य जो कोई मूर्ति कारीगर से खुदवाकर वा ढलवाकर निराले स्थान में स्थापन करे, क्योंकि इस से यहोवा को घृणा लगती है। तब सब लोग कहें, आमीन।।
16. शापित हो वह जो अपने पिता वा माता को तुच्छ जाने। तब सब लोग कहें, आमीन।।
17. शापित हो वह जो किसी दूसरे के सिवाने को हटाए। तब सब लोग कहें, आमीन।।
18. शापित हो वह जो अन्धे को मार्ग से भटका दे। तब सब लोग कहें, आमीन।।
19. शापित हो वह जो परदेशी, अनाथ, वा विधवा का न्याय बिगाड़े। तब सब लोग कहें आमीन।।
20. शापित हो वह जो अपनी सौतेली माता से कुकर्म करे, क्योकिं वह अपने पिता का ओढ़ना उघाड़ता है। तब सब लोग कहें, आमीन।।
21. शापित हो वह जो किसी प्रकार के पशु से कुकर्म करे। तब सब लोग कहें, आमीन।।
22. शापित हो वह जो अपनी बहिन, चाहे सगी हो चाहे सौतेली, उस से कुकर्म करे। तब सब लोग कहें, आमीन।।
23. शापित हो वह जो अपनी सास के संग कुकर्म करे। तब सब लोग कहें, आमीन।।
24. शापित हो वह जो किसी को छिपकर मारे। तब सब लोग कहें, आमीन।।
25. शापित हो वह जो निर्दोष जन के मार डालने के लिये धन ले। तब सब लोग कहें, आमीन।।
26. शापित हो वह जो इस व्यवस्था के वचनों को मानकर पूरा न करे। तब सब लोग कहें, आमीन।।

  Deuteronomy (27/34)