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1. | फिर उसने पीतल की एक वेदी बनाई, उसकी लम्बाई और चौड़ाई बीस बीस हाथ की और ऊंचाई दस हाथ की थी। |
2. | फिर उसने एक ढाला हुआ हौद बनवाया; जो छोर से छोर तक दस हाथ तक चौड़ा था, उसका आकार गोल था, और उसकी ऊंचाई पांच हाथ की थी, और उसके चारों ओर का घेर तीस हाथ के नाप का था। |
3. | और उसके तले, उसके चारों ओर, एक एक हाथ में दस दस बैलों की प्रतिमाएं बनी थीं, जो हौद को घेरे थीं; जब वह ढाला गया, तब ये बैल भी दो पांति कर के ढाले गए। |
4. | और वह बारह बने हुए बैलों पर धरा गया, जिन में से तीन उत्तर, तीन पश्चिम, तीन दक्खिन और तीन पूर्व की ओर मुंह किए हुए थे; और इनके ऊपर हौद घरा था, और उन सभों के पिछले अंग भीतरी भाग में पड़ते थे। |
5. | और हौद की मोटाई चौवा भर की थी, और उसका मोहड़ा कटोरे के मोहड़े की नाईं, सोसन के फूलों के काम से बना था, और उस में तीन हजार बत भरकर समाता था। |
6. | फिर उसने धोने के लिये दस हौदी बनवा कर, पांच दाहिनी और पांच बाई ओर रख दीं। उन में होमबलि की वस्तुएं धोई जाती थीं, परन्तु याजकों के धोने के लिये बड़ा हौद था। |
7. | फिर उसने सोने की दस दीवट विधि के अनुसार बनवाई, और पांच दाहिनी ओर और पांच बाई ओर मन्दिर में रखवा दीं। |
8. | फिर उसने दस मेज बनवा कर पांच दाहिनी ओर और पाच बाईं ओर मन्दिर में रखवा दीं। और उसने सोने के एक सौ कटोरे बनवाए। |
9. | फिर उसने याजकों के आंगन और बड़े आंगन को बनवाया, और इस आंगन में फाटक बनवा कर उनके किवाड़ों पर पीतल मढ़वाया। |
10. | और उसने हौद को भवन की दाहिनी ओर अर्थात पूर्व और दक्खिन के कोने की ओर रखवा दिया। |
11. | और हूराम ने हण्डों, फावडिय़ों, और कटोरों को बनाया। और हूराम ने राजा सुलैमान के लिये परमेश्वर के भवन में जो काम करना था उसे निपटा दिया: |
12. | अर्थात दो खम्भे और गोलों समेत वे कंगनियां जो खम्भों के सिरों पर थीं, और खम्भों के सिरों पर के गोलों को ढांपने के लिये जालियों की दो दो पांति; |
13. | और दोनों जालियों के लिये चार सौ अनार और जो गोले खम्भों के सिरों पर थे, उन को ढांपनेवाली एक एक जाली के लिये अनारों की दो दो पांति बनाईं। |
14. | फिर उस न कुसिर्यां और कुसिर्यों पर की हौदियां, |
15. | और उनके नीचे के बारह बैल बनाए। |
16. | फिर हूराम-अबी ने हण्डों, फावडिय़ों, कांटों और इनके सब सामान को यहोवा के भवन के लिये राजा सुलैमान की आज्ञा से झलकाए हुए पीतल के बनवाए। |
17. | राजा ने उसको यरदन की तराई में अर्थात सुक्कोत और सरेदा के बीच की चिकनी मिट्टीवाली भूमि में ढलवाया। |
18. | सुलैमान ने ये सब पात्र बहुत बनवाए, यहां तक कि पीतल के तौल का हिसाब न था। |
19. | और सुलैमान ने परमेश्वर के भवन के सब पात्र, सोने की वेदी, और वे मेज जिन पर भेंट की रोटी रखी जाती थीं, |
20. | और दीपकों समेत चोखे सोने की दीवटें, जो विधि के अनुसार भीतरी कोठरी के साम्हने जला करतीं थीं। |
21. | और सोने वरन निरे सोने के फूल, दीपक और चिमटे; |
22. | और चोखे सोने की कैंचियां, कटोरे, धूपदान और करछे बनवाए। फिर भवन के द्वार और परम पवित्र स्थान के भीतरी किवाड़ और भवन अर्थात मन्दिर के किवाड़ सोने के बने। |
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