← 1Chronicles (17/29) → |
1. | जब दाऊद अपने भवन में रहने लगा, तब दाऊद ने नातान नबी से कहा, देख, मैं तो देवदारु के बने हुए घर में रहता हूँ, परन्तु यहोवा की वाचा का सन्दूक तम्बू में रहता है। |
2. | नातान ने दाऊद से कहा, जो कुछ तेरे मन में हो उसे कर, क्योंकि परमेश्वर तेरे संग है। |
3. | उसी दिन रात को परमेश्वर का यह वचन नातान के पास पहुंचा, जा कर मेरे दास दाऊद से कह, |
4. | यहोवा यों कहता है, कि मेरे निवास के लिये तू घर बनवाने न पाएगा। |
5. | क्योंकि जिस दिन से मैं इस्राएलियों को मिस्र से ले आया, आज के दिन तक मैं कभी घर में नहीं रहा; परन्तु एक तम्बू से दूसरे तम्बू को ओर एक निवास से दूसरे निवास को आया जाया करता हूँ। |
6. | जहां जहां मैं ने सब इस्राएलियों के बीच आना जाना किया, क्या मैं ने इस्राएल के न्यायियों में से जिन को मैं ने अपनी प्रजा की चरवाही करने को ठहराया था, किसी से ऐसी बात कभी कही, कि तुम लोगों ने मेरे लिये देवदारु का घर क्यों नहीं बनवाया? |
7. | सो अब तू मेरे दास दाऊद से ऐसा कह, कि सेनाओं का यहोवा यों कहता है, कि मैं ने तो तुझ को भेड़शाला से और भेड़-बकरियों के पीछे पीछे फिरने से इस मनसा से बुला लिया, कि तू मेरी प्रजा इस्राएल का प्रधान हो जाए; |
8. | और जहां कहीं तू आया और गया, वहां मैं तेरे संग रहा, और तेरे सब शत्रुओं को तेरे साम्हने से नष्ट किया है। अब मैं तेरे नाम को पृथ्वी के बड़े बड़े लोगों के नामों के समान बड़ा कर दूंगा। |
9. | और मैं अपनी प्रजा इस्राएल के लिये एक स्थान ठहराऊंगा, और उसको स्थिर करूंगा कि वह अपने ही स्थान में बसी रहे और कभी चलायमान न हो; और कुटिल लोग उन को नाश न करने पाएंगे, जैसे कि पहिले दिनों में करते थे; |
10. | उस समय भी जब मैं अपनी प्रजा इस्राएल के ऊपर न्यायी ठहराता था; सो मैं तेरे सब शत्रुओं को दबा दूंगा। फिर मैं तुझे यह भी बताता हूँ, कि यहोवा तेरा घर बनाये रखेगा। |
11. | जब तेरी आयु पूरी हो जायेगी और तुझे अपने पितरों के संग जाना पड़ेगा, तब मैं तेरे बाद तेरे वंश को जो तेरे पुत्रों में से होगा, खड़ा कर के उसके राज्य को स्थिर करूंगा। |
12. | मेरे लिये एक घर वही बनाएगा, और मैं उसकी राजगद्दी को सदैव स्थिर रखूंगा। |
13. | मैं उसका पिता ठहरूंगा और वह मेरा पुत्र ठहरेगा; और जैसे मैं ने अपनी करुणा उस पर से जो तुझ से पहिले था हटाई, वैसे मैं उस पर से न हटाऊंगा, |
14. | वरन मैं उसको अपने घर और अपने राज्य में सदैव स्थिर रखूंगा और उसकी राजगद्दी सदैव अटल रहेगी। |
15. | इन सब बातों और इस दर्शन के अनुसार नातान ने दाऊद को समझा दिया। |
16. | तब दाऊद राजा भीतर जा कर यहोवा के सम्मुख बैठा, और कहने लगा, हे यहोवा परमेश्वर! मैं क्या हूँ? और मेरा घराना क्या है? कि तू ने मुझे यहां तक पहुंचाया है? |
17. | और हे परमेश्वर! यह तेरी दृष्टि में छोटी सी बात हुई, क्योंकि तू ने अपने दास के घराने के विषय भविष्य के बहुत दिनों तक की चर्चा की है, और हे यहोवा परमेश्वर! तू ने मुझे ऊंचे पद का मनुष्य सा जाना है। |
18. | जो महिमा तेरे दास पर दिखाई गई है, उसके विषय दाऊद तुझ से और क्या कह सकता है? तू तो अपने दास को जानता है। |
19. | हे यहोवा! तू ने अपने दास के निमित्त और अपने मन के अनुसार यह बड़ा काम किया है, कि तेरा दास उसको जान ले। |
20. | हे यहोवा! जो कुछ हम ने अपने कानों से सुना है, उसके अनुसार तेरे तुल्य कोई नहीं, और न तुझे छोड़ और कोई परमेश्वर है। |
21. | फिर तेरी प्रजा इस्राएल के भी तुल्य कौन है? वह तो पृथ्वी भर में एक ही जाति है, उसे परमेश्वर ने जा कर अपनी निज प्रजा करने को छुड़ाया, इसलिये कि तू बड़े और डरावने काम कर के अपना नाम करे, और अपनी प्रजा के साम्हने से जो तू ने मिस्र से छुड़ा ली थी, जाति जाति के लोगों को निकाल दे। |
22. | क्योंकि तू ने अपनी प्रजा इस्राएल को अपनी सदा की प्रजा होने के लिये ठहराया, और हे यहोवा! तू आप उसका परमेश्वर ठहरा। |
23. | इसलिये, अब हे यहोवा, तू ने जो वचन अपने दास के और उसके घराने के विषय दिया है, वह सदैव अटल रहे, और अपने वचन के अनुसार ही कर। |
24. | और तेरा नाम सदैव अटल रहे, और यह कह कर तेरी बड़ाई सदा की जाए, कि सेनाओं का यहोवा इस्राएल का परमेश्वर है, वरन वह इस्राएल ही के लिये परमेश्वर है, और तेरा दास दाऊद का घराना तेरे साम्हने स्थिर रहे। |
25. | क्योंकि हे मेरे परमेश्वर, तू ने यह कह कर अपने दास पर प्रगट किया है कि मैं तेरा घर बनाए रखूंगा, इस कारण तेरे दास को तेरे सम्मुख प्रार्थना करने का हियाव हुआ है। |
26. | और अब हे यहोवा तू ही परमेश्वर है, और तू ने अपने दास को यह भलाई करने का वचन दिया है। |
27. | और अब तू ने प्रसन्न हो कर, अपने दास के घराने पर ऐसी आशीष दी है, कि वह तेरे सम्मुख सदैव बना रहे, क्योंकि हे यहोवा, तू आशीष दे चुका है, इसलिये वह सदैव आशीषित बना रहे। |
← 1Chronicles (17/29) → |