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1. | हे परमेश्वर, मेरी सुन! मैं अपने शत्रुओं से भयभीत हूँ। मैं अपने जीवन के लिए डरा हुआ हूँ। |
2. | तू मुझको मेरे शत्रुओं के गहरे षड़यन्त्रों से बचा ले। मुझको तू उन दुष्ट लोगों से छिपा ले। |
3. | मेरे विषय में उन्होंने बहुत बुरा झूठ बोला है। उनकी जीभे तेज तलवार सी और उनके कटुशब्द बाणों से हैं। |
4. | वे छिप जाते हैं, और अपने बाणों का प्रहार सरल सच्चे जन पर फिर करते हैं। इसके पहले कि उसको पता चले, वह घायल हो जाता है। |
5. | उसको हराने को बुरे काम करते हैं। वे झूठ बोलते और अपने जाल फैलाते हैं। और वे सुनिश्चित हैं कि उन्हें कोई नहीं पकड़ेगा। |
6. | लोग बहुत कुटिल हो सकते हैं। वे लोग क्या सोच रहे हैं इसका समझ पाना कठिन है। |
7. | किन्तु परमेश्वर निज “बाण” मार सकता है! और इसके पहले कि उनको पता चले, वे दुष्ट लोग घायल हो जाते हैं। |
8. | दुष्ट जन दूसरों के साथ बुरा करने की योजना बनाते हैं। किन्तु परमेश्वर उनके कुचक्रों को चौपट कर सकता है। वह उन बुरी बातों कों स्वयं उनके ऊपर घटा देता है। फिर हर कोई जो उन्हें देखता अचरज से भरकर अपना सिर हिलाता है। |
9. | जो परमेश्वर ने किया है, लोग उन बातों को देखेंगे और वे उन बातों का वर्णन दूसरो से करेंगे, फिर तो हर कोई परमेश्वर के विषय में और अधिक जानेगा। वे उसका आदर करना और डरना सीखेंगे। |
10. | सज्जनों को चाहिए कि वे यहोवा में प्रसन्न हो। वे उस पर भरोसा रखे। अरे! ओ सज्जनों! तुम सभी यहोवा के गुण गाओ। |
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