← Psalms (59/150) → |
1. | हे परमेश्वर, तू मुझको मेरे शत्रुओं से बचा ले। मेरी सहायता उनसे विजयी बनने में कर जो मेरे विरूद्ध में युद्ध करने आये हैं। |
2. | ऐसे उन लोगों से, तू मुझको बचा ले। तू उन हत्यारों से मुझको बचा ले जो बुरे कामों को करते रहते हैं। |
3. | देख! मेरी घात में बलवान लोग हैं। वे मुझे मार डालने की बाट जोह रहे हैं। इसलिए नहीं कि मैंने कोई पाप किया अथवा मुझसे कोई अपराध बन पड़ा है। |
4. | वे मेरे पीछे पड़े हैं, किन्तु मैंने कोई भी बुरा काम नहीं किया है। हे यहोवा, आ! तू स्वयं अपने आप देख ले! |
5. | हे परमेश्वर! इस्राएल के परमेश्वर! तू सर्वशक्ति शाली है। तू उठ और उन लोगों को दण्डित कर। उन विश्वासघातियों उन दुर्जनों पर किंचित भी दया मत दिखा। |
6. | वे दुर्जन साँझ के होते ही नगर में घुस आते हैं। वे लोग गुरर्ते कुत्तों से नगर के बीच में घूमते रहते हैं। |
7. | तू उनकी धमकियों और अपमानों को सुन। वे ऐसी क्रूर बातें कहा करते हैं। वे इस बात की चिंता तक नहीं करते कि उनकी कौन सुनता है। |
8. | हे यहोवा, तू उनका उपहास करके उन सभी लोगों को मजाक बना दे। |
9. | हे परमेश्वर, तू मेरी शक्ति है। मैं तेरी बाट जोह रहा हूँ। हे परमेश्वर, तू ऊँचे पहाड़ों पर मेरा सुरक्षा स्थान है। |
10. | परमेश्वर, मुझसे प्रेम करता है, और वह जीतने में मेरा सहाय होगा। वह मेरे शत्रुओं को पराजित करने में मेरी सहायता करेगा। |
11. | हे परमेश्वर, बस उनको मत मार डाल। नहीं तो सम्भव है मेरे लोग भूल जायें। हे मेरे स्वमी और संरक्षक, तू अपनी शक्ति से उनको बिखेर दे और हरा दे। |
12. | वे बुरे लोग कोसते और झूठ बोलते रहते हैं। उन बुरी बातों का दण्ड उनको दे, जो उन्होंने कही हैं। उनको अपने अभिमान में फँसने दे। |
13. | तू अपने क्रोध से उनको नष्ट कर। उन्हें पूरी तरह नष्ट कर! लोग तभी जानेंगे कि परमेश्वर, याकूब के लोगों का और वह सारे संसर का राजा है। |
14. | फिर यदि वे लोग शाम को इधर—उधर घूमते गुरर्तें कुत्तों से नगर में आवें, |
15. | तो वे खाने को कोई वस्तु ढूँढते फिरेंगे, और खाने को कुछ भी नहीं पायेंगे और न ही सोने का कोई ठौर पायेंगे। |
16. | किन्तु मैं तेरी प्रशंसा के गीत गाऊँगा। हर सुबह मैं तेरे प्रेम में आनन्दित होऊँगा। क्यों क्योंकि तू पर्वतों के ऊपर मेरा शरणस्थल है। मैं तेरे पास आ सकता हूँ, जब मुझे विपत्तियाँ घेरेंगी। |
17. | मैं अपने गीतों को तेरी प्रशंसा में गाऊँगा क्योंकि पर्वतों के ऊपर मेरा शरणस्थल है। तू परमेश्वर है, जो मुझको प्रेम करता है! |
← Psalms (59/150) → |