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1. | हे यहोवा, मेरे शब्द सुन और तू उसकी सुधि ले जिसको तुझसे कहने का मैं यत्न कर रहा हूँ। |
2. | मेरे राजा, मेरे परमेश्वर मेरी प्रार्थना सुन। |
3. | हे यहोवा, हर सुबह तुझको, मैं अपनी भेंटे अर्पित करता हूँ। तू ही मेरा सहायक है। मेरी दृष्टि तुझ पर लगी है और तू ही मेरी प्रार्थनाएँ हर सुबह सुनता है। |
4. | हे यहोवा, तुझ को बुरे लोगों की निकटता नहीं भाती है। तू नहीं चाहता कि तेरे मन्दिर में कोई भी पापी जन आये। |
5. | तेरे निकट अविश्वासी नहीं आ सकते। ऐसे मनुष्यों को तूने दूर भेज दिया जो सदा ही बुरे कर्म करते रहते हैं। |
6. | जो झूठ बोलते हैं उन्हें तू नष्ट करता है। यहोवा ऐसे मनुष्यों से घृणा करता है, जो दूसरों को हानि पहुँचाने का षड़यन्त्र रचते हैं। |
7. | किन्तु हे यहोवा, तेरी महा करुणा से मैं तेरे मन्दिर में आऊँगा। हे यहोवा, मुझ को तेरा डर है, मैं सम्मान तुझे देता हूँ। इसलिए मैं तेरे मन्दिर की ओर झुककर तुझे दण्डवत करुँगा। |
8. | हे यहोवा, तू मुझको अपनी नेकी का मार्ग दिखा। तू अपनी राह को मेरे सामने सीधी कर क्योंकि मैं शत्रुओं से घिरा हुआ हूँ। |
9. | वे लोग सत्य नहीं बोलते। वे झूठे हैं, जो सत्य को तोड़ते मरोड़ते रहते हैं। उनके मुख खुली कब्र के समान हैं। वे औरों से उत्तम चिकनी—चुपड़ी बातें करते किन्तु वे उन्हें बस जाल में फँसाना चाहते हैं। |
10. | हे परमेश्वर, उन्हें दण्ड दे। उनके अपने ही जालों में उनको उलझने दे। ये लोग तेरे विरुद्ध हो गये हैं, उन्हें उनके अपने ही बहुत से पापों का दण्ड दे। |
11. | किन्तु जो परमेश्वर के आस्थावान होते हैं, वे सभी प्रसन्न हों और वे सदा सर्वदा को आनन्दित रहें। हे परमेश्वर, तू उनकी रक्षा कर और उन्हें तू शक्ति दे जो जन तेरे नाम से प्रीति रखते हैं। |
12. | हे यहोवा, तू निश्चय ही धर्मी को वरदान देता है। अपनी कृपा से तू उनको एक बड़ी ढाल बन कर फिर ढक लेता है। |
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