← Psalms (43/150) → |
1. | हे परमेस्वर, एक मनुष्य है जो तेरी अनुसरण नहीं करता वह मनुष्य दुष्ट है और झूठ बोलता है। हे परमेश्वर, मेरा मुकदमा लड़ और यह निर्णय कर कि कोन सत्य है। मुझे उस मनुष्य से बच ले। |
2. | हे परमेस्वर, तू ही मेरा शरणस्थल है! मुझको तूने क्यों बिसरा दिय तूने मुझको यह क्यों नहीं दिखाया कि मै अपने श्त्रुओं से कैसे बच निकलूँ? |
3. | हे परमेश्वर, तू अपनी ज्योति और अपने सत्य को मुझ पर प्रकाशित होने दे। मुझको तेरी ज्योति और सत्य राह दिखायेंगे। वे मुझे तेरे पवित्र पर्वत और अपने घर को ले चलेंगे। |
4. | मैं तो परमेस्वर की वेदी के पास जाऊँगा। परमेश्वर मैं तेरे पास आऊँगा। वह मुझे आनन्दित करता है। हे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, मैं वीणा पर तेरी स्तुति करँगा। |
5. | मैं इतना दु:खी क्यों हुँ? मैं क्यों इतना व्यकुल हूँ? मुझे परमेश्वर के सहारे की बाट जोहनी चाहिए। मुझे अब भी उसकी स्तुती का अवसर मिलेगा। वह मुझे बचाएगा। |
← Psalms (43/150) → |