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1. | हे सज्जन लोगों, यहोवा में आनन्द मनाओ! सज्जनो सत पुरुषों, उसकी स्तुति करो! |
2. | वीणा बजाओ और उसकी स्तुति करो! यहोवा के लिए दस तार वाले सांरगी बजाओ। |
3. | अब उसके लिये नया गीत गाओ। खुशी की धुन सुन्दरता से बजाओ! |
4. | परमेश्वर का वचन सत्य है। जो भी वह करता है उसका तुम भरोसा कर सकते हो। |
5. | नेकी और निष्पक्षता परमेश्वर को भाती है। यहोवा ने अपने निज करुणा से इस धरती को भर दिया है। |
6. | यहोवा ने आदेश दिया और सृष्टि तुरंत अस्तित्व में आई। परमेश्वर के श्वास ने धरती पर हर वस्तु रची। |
7. | परमेश्वर ने सागर में एक ही स्थान पर जल समेटा। वह सागर को अपने स्थान पर रखता है। |
8. | धरती के हर मनुष्य को यहोवा का आदर करना और डरना चाहिए। इस विश्व में जो भी मनुष्य बसे हैं, उनको चाहिए कि वे उससे डरें। |
9. | क्योंकि परमेश्वर को केवल बात भर कहनी है, और वह बात तुरंत घट जाती है। यदि वह किसी को रुकने का आदेश दे, तो वह तुरंत थम दाती है। |
10. | परमेश्वर चाहे तो सभी सुझाव व्यर्थ करे। वह किसी भी जन के सब कुचक्रों को व्यर्थ कर सकता है। |
11. | किन्तु यहोवा के उपदेश सदा ही खरे होते है। उसकी योजनाएँ पीढी पर पीढी खरी होती हैं। |
12. | धन्य हैं वे मनुष्य जिनका परमेश्वर यहोवा है। परमेश्वर ने उन्हें अपने ही मनुष्य होने को चुना है। |
13. | यहोवा स्वर्ग से नीचे देखता रहता है। वह सभी लोगों को देखता रहता है। |
14. | वह ऊपर ऊँचे पर संस्थापित आसन से धरती पर रहने वाले सब मनुष्यों को देखता रहता है। |
15. | परमेश्वर ने हर किसी का मन रचा है। सो कोई क्या सोच रहा है वह समझता है। |
16. | राजा की रक्षा उसके महाबल से नहीं होती है, और कोई सैनिक अपने निज शक्ति से सुरक्षित नहीं रहता। |
17. | युद्ध में सचमुच अश्वबल विजय नहीं देता। सचमुच तुम उनकी शक्ति से बच नहीं सकते। |
18. | जो जन यहोवा का अनुसरण करते हैं, उन्हें यहोवा देखता है और रखवाली करता है। जो मनुष्य उसकी आराधना करते हैं, उनको उसका महान प्रेम बचाता है। |
19. | उन लोगों को मृत्यु से बचाता है। वे जब भूखे होते तब वह उन्हें शक्ति देता है। |
20. | इसलिए हम यहोवा की बाट जोहेंगे। वह हमारी सहायता और हमारी ढाल है। |
21. | परमेश्वर मुझको आनन्दित करता है। मुझे सचमुच उसके पवित्र नाम पर भरोसा है। |
22. | हे यहोवा, हम सचमुच तेरी आराधना करते हैं! सो तू हम पर अपना महान प्रेम दिखा। |
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